जाने-माने कलाकार अनुपम खेर अपने बचपन में एनसीसी कैडेट हुआ करते थे और फौज में जाने की तमन्ना भी रखते थे। हालांकि एक्टिंग की दुनिया में आने के चलते वह अपना सपना पूरा नहीं कर पाए। हमसे खास बातचीत में अनुपम ने यी भी बताया कि वह अपनी मां के साथ सोशल मीडिया पर विडियो क्यों पोस्ट करते हैं।अपनी हालिया रिलीज फिल्म आईबी 71 सन में आप सन 1971 की लड़ाई के दौरान खुफिया एजेंसी चीफ के रोल में दिखे। क्या उस युद्ध की कुछ यादें आपके जेहन में हैं?सन 1947 में देश आजाद हुआ था और 1955 में मेरा जन्म हुआ था। इस तरह मैं अपने देश से 8 साल छोटा हूं। सन 62 के चाइना युद्ध की भी कुछ यादें हैं मेरे पास। इसके अलावा सन 65 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध की भी कुछ यादें हैं। मगर 1971 में तो मेरी उम्र 16 साल की थी और मैं एनसीसी में हुआ करता था। मैं अपने मोहल्ले का गार्ड हुआ करता था। हमारा काम था कि जब रात को सायरन बजता था, तो जो हमने गड्ढे खोदकर जगह बनाई थी छुपने की वहां छुप जाना, हमने जो रोशनदान पर अखबार लगाए थे, उसे चेक करना और सब तरफ दौरा करना। मैं उस समय खुद को बहुत जिम्मेदार नागरिक महसूस करता था। इसलिए जब भी देश के बारे में कोई बात होती है, तो मैं बढ़-चढ़ कर बोलता हूं, क्योंकि मैंने वो दौर देखा है। मैंने बतौर युवा वह समय देखा है। मेरे जहन में वह सब है।Satish Kaushik daughter: सतीश कौशिक की बेटी वंशिका ने शेयर किया पहला रील, अनुपम खेर के साथ दिखी खास बॉन्डिंगक्या आपको खुफिया एजेंसियों के बारे भी कोई जानकारी थी?शिमला में वेस्टर्न कमांड का हेड ऑफिस था, मैंने अपने फौजियों को देखा है। लोगों को जवानों के लिए खून देते देखा है। लेकिन मुझे आईबी 71 वाली घटना के बारे में नहीं पता, क्योंकि ये अनसंग हीरोज हैं, जिनके बारे में कोई नहीं जानता। हाल ही में किसी ने मुझे मेसेज भेजकर बताया कि इस मिशन का जो पायलट था, वह एक कश्मीरी पंडित था। 50 साल लग गए हमें इन 30 लोगों की कहानी सुनाने में। मेरे चाचा प्यारे लाल खेर जी मेरे पिता के सबसे छोटे भाई वह खुद इंटेलिजेंस ब्यूरो में असिस्टेंट डायरेक्टर पद से रिटायर हुए, लेकिन मुझे या मेरे पिता-मां व परिवार में से किसी को नहीं पता था कि वह क्या करते थे। वो 30 लोग जो पाकिस्तान चले गए, इस हाइजैक प्लेन में, जो खुद इंटेलिजेंस ब्यूरो ने ही कराया था, उनको फिल्म में देखने के बाद हमारे तो रोंगटे खड़े हो गए थे कि कैसे उन्होंने ये किया बिना किसी हथियार के। 30 के 30 लोग वापस भारत वापस आ गए थे। क्या दिमाग था उनका, उनके बारे में कोई जानता नहीं है। हमें अपनी सेनाओं पर गर्व है, साथ ही हमें इंटेलिजेंस ब्यूरो पर भी गर्व है।अनुपम खेर ने चंपी करते हुए ऐसा मरोड़ा था कान कि चीख पड़े थे सतीश कौशिकआपने कहा कि आप एनसीसी में थे, सेना के जवानों को देखा आपने। तो क्या आपको खयाल आया कि मुझे फौज में जाना चाहिए?मैं सेना में जाना चाहता था, लेकिन मुझे ऐक्टिंग ज्यादा अच्छी लगती थी। हां लेकिन मैं जाना चाहता था। मैंने जवानों के लिए खून भी दिया। 1971 वॉर के दौरान हमारे कॉलेज में एक मेजर आए और उन्होंने एक स्पीच दी। उस समय मैं बहुत पतला हुआ करता था एक स्टिक की तरह। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि आप देश के जवानों के लिए खून दें, वे आपके लिए लड़ रहे हैं। वहां एक बस आई थी, जो छात्रों और टीचर को ब्लड डोनेशन कैंप ले जाने वाली थी। मैं उस बस में चढ़ने लगा, तो मेजर बोले कि क्या आपको लगता है कि आप खून दे पाएंगे? मैंने कहा कि हां मैं खून देना चाहता हूं। जब मैं डॉक्टर के पास पहुंचा, तो उन्होंने भी यही पूछा कि क्या आप सच में खून देना चाहते हैं? तब भी मैंने कहा कि मैं देश के जवानों के लिए खून देना चाहता हूं। उन्होंने मेरा थोड़ा ही खून निकाला, तो मैं उठ ही नहीं पाया। फिर मुझे वापस खून चढ़ाया, तब जाकर मैं उठ पाया। कहने का मतलब यह है कि मैंने यह सब अनुभव किया है। आज की जेनरेशन को भी यह महसूस करना चाहिए और जानना चाहिए।अनुपम खेर Exclusive: 534 फिल्में करने के बाद भी मैं अभी तक किराये के घर में रहता हूंआपने बताया कि 50 साल लग गए इस तरह की कहानी को पर्दे पर लाने में। पीछे हमने इस तरह की कुछ अनसंग हीरोज की कहानियां भी फिल्मी पर्दे पर देखी हैं। तो क्या लगता है कि इतना वक्त क्यों लग गया इन कहानियों को सामने लाने में?दरअसल, ये क्लासिफाइड चीजें हैं। मुझे नहीं लगता कि लोग इस बारे में बात करना चाहते हैं। लेकिन अब ये कहानी बन रही हैं, तो यह बड़ी बात है। मुझे खुशी है कि विद्युत जामवाल ने इस स्टोरी को प्रड्यूस किया है। ठीक है अब इसको बनाने में समय लग गया, तो कोई बात नहीं। हमें कश्मीर फाइल्स को बनाने में 32 साल लग गए, जबकि वो घटना सबके सामने थी।Anupam Kher Exclusive: ‘द कश्मीर फाइल्स’ को बकवास कहने वाले प्रकाश राज को अनुपम खेर का मुंहतोड़ जवाबआप अक्सर अपनी माताजी के साथ विडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। उम्र के साथ मां के साथ मजबूत होती अपनी बॉन्डिंग के बारे में कुछ बताएं?माता-पिता का आशीर्वाद सबसे अच्छा तोहफा होता है, जो बच्चों को मिल सकता है। यह बहुत अच्छा है कि इस उम्र में मुझे अपनी मां के साथ वक्त बिताने का मौका मिलता है। मां-बाप अकेले ऐसे दुनिया के अजूबे होते हैं, तो हर हालात में आपके साथ होते हैं, फिर चाहे बुरा हो या अच्छा। वो कभी आपसे कुछ उम्मीद नहीं करते हैं। वे सिर्फ आपके लिए अच्छा ही सोचते हैं। मेरी मां रोज सुबह 8:30 बजे मुझे फोन करती हैं। अगर मैं कहीं बाहर होता हूं, तो उन्हें फिक्र हो जाती है। मुझे अच्छा लगा कि मैं अपनी मां दुलारी जी के साथ जो विडियो बनाता हूं, वह दुनिया का एक प्रतिशत लोगों का भी मन बदल पाएं, तो मुझे अच्छा लगेगा और ऐसा हुआ भी है। मुझे ऐसे लोग अच्छे नहीं लगते, जो सिर्फ इसलिए अपने मां-बाप को कोने में बैठाकर रखते हैं, क्योंकि वे बुजुर्ग हो गए हैं। भगवान के बाद मां-बाप का दर्जा होता है। जैसे मंदिर होता है, वैसे ही अगला दर्जा उनका भी होना चाहिए।