ऐसे बहुत कम कलाकार होंगे, जिन्होंने जिस फिल्म में चाइल्ड आर्टिस्ट का रोल किया हो, 22 साल बाद उसी फिल्म के सीक्वल में मुख्य भूमिका में नजर आए। लेकिन उत्कर्ष शर्मा ऐसे खुशनसीब एक्टर हैं, जो सुपरहिट फिल्म ‘गदर’ के मासूम से बच्चे ‘जीते’ के रूप में अपनी छाप छोड़ने के बाद अब उसके सीक्वल ‘गदर 2’ में धमाल मचाएंगे। पेश हैं उनसे ये खास बातचीत:अपनी पहली फिल्म ‘जीनियस’ के पांच साल बाद आप दोबारा पर्दे पर आ रहे हैं, वो भी फिर अपने पापा अनिल शर्मा की ही फिल्म से। इतने लंबे गैप की क्या वजह रही?जीनियस के बाद कई फिल्मों के ऑफर आए थे। मैं कर भी रहा था, पर तभी लॉकडाउन आ गया था तो प्रोजेक्ट्स को लेकर एक अनिश्चितता थी कि क्या किया जाए, क्या नहीं। सारी चीजें बहुत अनिश्चित थीं और एक अपकमिंग एक्टर के तौर पर कहीं न कहीं उसका नुकसान होता ही है। वैसे, मैं खुश हूं कि मैंने वो फिल्में नहीं कीं, क्योंकि वे फिल्में मैं सिर्फ दिखने के लिए करता और मैं वो नहीं करना चाहता था। मैं ऐसी फिल्में करना चाहता हूं कि जिससे ऑडियंस एंटरटेन हों, इमोशनली जुड़ाव महसूस करें और कल्चरली कुछ साथ ले जा सकें, तो मुझे भी सोचने का मौका मिला कि नहीं, मुझे कुछ भी नहीं करना है। मैंने तय किया कि नहीं, मैं धैर्य रखूंगा और किस्मत से उसी दौरान ‘गदर 2’ की कहानी आई।फिल्म ‘गदर’ में आप चाइल्ड आर्टिस्ट थे, जबकि ‘गदर 2′ में तारा सिंह यानी सनी देओल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। तो इस बार जिम्मेदारी कितनी बड़ी थी? क्या चुनौतियां रहीं?’गदर’ में उत्कर्ष शर्माआपने सही कहा, ‘गदर’ में मैं सिर्फ 5-6 साल का था। हालांकि, जिम्मेदारी अभी भी तारा सिंह के कंधों पर है, लेकिन अब बेटा बड़ा हो गया है तो थोड़ी जिम्मेदारी मेरी भी है। हम इस जिम्मेदारी को समझते हैं कि इतनी बड़ी फिल्म का सीक्वल आ रहा है, तो एक भी डायलॉग, एक भी सीन फीका नहीं जाना चाहिए। सभी की कोशिश यही रही है कि यह फिल्म लोगों को ‘गदर’ से कम पसंद नहीं आनी चाहिए। इसलिए, हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती स्क्रिप्ट की थी। ‘गदर’ को 22 साल गुजर गए हैं, पर उसकी रीकॉल वैल्यू बहुत ज्यादा है क्योंकि टीवी पर लगभग सभी ने देखी है। पापा को सालों से लोग सीक्वल बनाने को बोलते थे। कई ने स्क्रिप्ट भी सुनाई लेकिन पापा ऐसे ही कोई कहानी लेकर ‘गदर 2’ बनाना नहीं चाहते थे। उनका कहना था कि कहानी ‘गदर’ के मुकाबले की होनी चाहिए पर वैसी कहानी मिली ही नहीं तो सीक्वल का चैप्टर ही क्लोज हो गया था। फिर अचानक लॉकडाउन में शक्तिमान जी एक लाइन की कहानी लेकर आए जो पापा को बड़ी पसंद आई। उस एक ही लाइन में इतना इमोशन था कि उसका कद वन के बराबर था। दूसरे, इसके गाने बहुत हिट थे, फिल्म कास्ट और टेक्निशियन से बहुत जुड़ी हुई थी तो हम कुछ भी इधर-उधर करते तो लोग निराश होते, ये सब चीजें दिमाग में रखकर फिल्म बनाई गई है। जो गाना रीक्रिएट भी किया है, वो बहुत कम बदलाव के साथ किया गया है। कास्ट के साथ भी ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की गई है। वही सनी सर, वही अमीषा जी, मैं और कई और अहम किरदार पुराने वाले ही हैं, कुछ नए चेहरे भी हैं।कई फैंस का मानना है कि ‘गदर’ और उन जैसी यादगार फिल्मों को नहीं छेड़ना चाहिए, उनका सीक्वल वगैरह नहीं बनाना चाहिए। इस पर क्या कहेंगे?हम भी इसी माइंडसेट के थे, इसलिए हमने इतना इंतजार किया। अगर हम सिर्फ ‘गदर’ की सफलता को भुनाना चाहते तो कब का ‘गदर 2’ बना लेते, लेकिन जब लोग किसी फिल्म को इतना प्यार देते हैं, उसे दोबारा पार्ट 2 में देखना चाहते हैं। फिर भी हमने कभी ऐसे नहीं सोचा कि हमें बनाना ही बनाना है, पर जब कहानी अपने आप आई और ऐसी कहानी आई जो इन किरदारों के आगे की जर्नी ही हो सकती थी। जैसे ‘गॉडफादर 2’ और ‘गॉडफादर 3’, ‘गॉडफादर 1’ का एक्सटेंशन है, वैसे ही ‘गदर 2′ में भी कहानी वन से आगे बढ़ती है।अब थिएटर में फिल्में पहले जैसा बिजनेस नहीं कर पा रही हैं। क्या अब ओटीटी और रील्स से ही लोग इतने एंटरटेन हो जा रहे हैं कि थिएटर जाने की जहमत नहीं उठा रहे?’गदर’ में सनी देओल के साथ उत्कर्षनहीं, मेरी राय एकदम उल्टी है। मुझे लगता है कि महामारी से पहले ‘द कश्मीर फाइल्स’ या ‘द केरला स्टोरी’ जैसी कम बजट की फिल्म कभी इतना बड़ा बिजनेस नहीं कर सकती थी, जैसी उन्होंने की। ऐसे ही, ‘पुष्पा’ या ‘कंतारा’ जैसी साउथ की फिल्में इतनी नहीं चलतीं, तो अगर इमोशन सही हैं, तो लोग फिल्म देखने जा रहे हैं। अभी तीन रॉमकॉम हिट हो गई हैं। ये दिखाता है कि सिनेमा तो सिनेमा ही रहेगा। रील या ओटीटी आपके टीवी टाइम को कंज्यूम करता है, ये सभी घर बैठे एंटरटेनमेंट के माध्यम हैं। फिल्में चलेंगी, पर लोगों को उसमें इंट्रेस्ट होना चाहिए और वह एक्साइटमेंट क्रिएट करना फिल्म और फिल्ममेकर का काम है।’गदर’ के डायलॉग बहुत हिट रहे थे। ‘गदर 2’ में भी पाकिस्तान के खिलाफ कई आक्रामक डायलॉग हैं। आपको लगता है कि आज के समय में यह जिंगोइज्म (कट्टर राष्ट्रवाद) सही है?मेरा सिंपल सा कहना ये है कि हिंदी फिल्में अपने डायलॉग्स की वजह से जानी जाती हैं। ये इकलौती इंडस्ट्री है, जहां डायलॉग के अवॉर्ड दिए जाते हैं। ‘गदर’ के डायलॉग बहुत हिट थे, तो ‘गदर 2’ में भी हमें उसी लेवल के डायलॉग रखने थे। इसमें जिंगोइजम की बातें है ही नहीं, ये तो देशभक्ति की बाते हैं और फैक्ट बातें हैं। फिल्म में हम 1971 का दौर दिखा रहे हैं। हालांकि, ‘गदर’ हमेशा एक प्रेमकथा रही है और पार्ट 2 भी एक प्रेमकथा है, पर वो जिस दौर में सेट है, वो नफरत का दौर है, युद्ध का समय है तो आप सोच सकती हैं कि दोनों देशों के रिश्ते किस हद तक खराब थे तो ये जिंगोइजम की बात नहीं है। यह जयगाथा है। यह एक देशभक्ति फिल्म है। हम देशप्रेम की बात कर रहे हैं, नफरत या अंधभक्ति नहीं कर रहे हैं।