कहां गुम हुए किशोर, लता, आशा भोंसले और संगीत का वो सुनहरा दौर, अदनान बोले- अब तो गानों की ऐसी-तैसी कर देते हैं

विकास का तकाजा है कि चीजें समय के साथ बेहतर हों, लेकिन हिंदी फिल्म संगीत के मामले में यह कह पाना मुश्किल हो जाता है। कभी अपने मधुर धुनों, सुरीले गानों और किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, आशा भोंसले जैसे लेजेंडरी गायकों के लिए मशहूर रही म्यूजिक इंडस्ट्री में अब ऐसे नाम सुनाई देना सपना बन चुका है। हाल ही में किशोर दा की जयंती बीती है, तो 8 सितंबर को आशा ताई अपना 90वां जन्मदिन मना रही हैं। इसी उपलक्ष्य में संगीत के इस बदलते दौर पर एक खास रिपोर्ट:’एक ओर तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं’ जैसा संजीदा गीत, तो दूसरी ओर ‘जाते थे जापान पहुंच गए चीन’ जैसे खिलंदड़ अंदाज का गाना, ‘कभी चिंगारी कोई भड़के’ जैसा दर्द भरा नग्मा तो कभी ‘ओ मेरे दिल के चैन’ जैसा प्रेम गीत, किशोर दा के कंठ ने जिन गीतों को छुआ, वो पीढ़ियों के लिए विरासत बन गए। हमेशा गुनगुनाए, गाए और याद किए जाने वाले ऐसे अमर गीत, जो आज के दौर में सिर्फ रीमेक, रीक्रिएट या दोहराए जा सकते हैं, रचे नहीं जा सकते। किशोर दा ही नहीं, सत्तर-अस्सी के दौर में लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश, आशा भोसले जैसे नगीनों ने हिंदी फिल्म संगीत को जो बुलंदी बख्शी, उसके बाद की पीढ़ी उस ओर सिर्फ दूर से ताकती रह गई। आखिर उस दौर को संगीत का सुनहरा दौर यूं ही थोड़ी कहा जाता है। कभी कभी संगीत सुधियों के मन में सवाल भी उठता है कि सालों बाद भी संगीत जगत को दूसरा किशोर कुमार या लता मंगेशकर क्यों नहीं मिल पाया? क्योंकिविकास के मायने ही यही है कि चीजें पहले के दौर से लगातार बेहतर हों, लेकिन गानों के मामले में यह बात उल्टी नजर आती है।’दुनिया पित्तल दी’ में गुम हुआ सुरीला संगीतमोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मुकेश, आशा भोंसले जैसे लीजेंड्स के गाए हजारों गाने आज भी उनकी आवाज से पहचाने जाते हैं। रीमेक किए जाते हैं, रिएलिटी शोज में छाए रहते हैं। उनकी बाद की पीढ़ी में देखें, तो उदित नारायण, कुमार सानू, अलका याज्ञनिक, सोनू निगम, सुनिधि चौहान, शान, श्रेया घोषाल जैसे गायकों ने अपनी आवाज से एक मान, सम्मान और पहचान हासिल किया, लेकिन आज जबकि इतने सारे रिएलिटी शोज हैं, इतने सारे सिंगर्स की खेप हर साल आ रही है, फिर भी अरिजित सिंह जैसे एकाध अपवादों को छोड़ दें, तो न उनके नाम याद रहते हैं, न उनके गाए गाने। सवाल उठता है ऐसा क्यों? क्यों कभी इतनी समृद्ध रही म्यूजिक इंडस्ट्री लगातार अपनी धार खोती जा रही है।क्या है कारणवजहें कई हैं। पहले तो किशोर, लता या रफी जैसे लिजेंड्स रोज-रोज नहीं पैदा होते। दूसरे, म्यूजिक इंडस्ट्री में वक्त के साथ आते गए बदलाव भी इसके लिए जिम्मेदार है। पहले गाने फिल्मों का अहम हिस्सा होते थे, वहीं बाद में उन्हें फिल्म प्रमोशन का जरिया माना जाने लगा। लिहाजा, ऐसे गाने बनाओ, जो झट से लोगों का ध्यान खींच सकें। इसके चलते झमाझम, झन्नाटेदार म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट सांजिदों और सुरों पर हावी होते गए। फिर हनी सिंह और बादशाह जैसे रैपर्स की उदय के बाद गानों के बोलों से भी ठहराव गायब हो गया। उस पर किसी का और दिमाग चला, तो उसने नई बोतल में पुरानी शराब के तर्ज पर पुराने गानों को ही रीमेक करना शुरू कर दिया। अब उसी रीक्रिएशन के आसान रास्ते पूरी फिल्म म्यूजिक इंडस्ट्री चल रही है कि किसी पुराने गाने हिट की हुकलाइन उठाओ, उसमें तेज बीट्स वाला म्यूजिक जोड़ो, थोड़े नए अंतरे बनाओ और बजाओ। अब सोचिए, जब गाने ही पुराने होंगे, तो नए गायकों का नाम लोगों की जुबान पर भला कैसे चढ़ेगा ! ऐसे में कहना गलत न होगा कि संगीत का वह सुनहरा दौर ‘दुनिया पित्तल दी’ में कहीं गुम हो गया।अदनान सामी इसे मानते हैं बहुत ही अनहेल्दी ट्रेंडवैसे, ओरिजिनल गानों पर रीक्रिएशन वाले गानों को तरजीह देने खिलाफ तो कई जाने-माने गायक और संगीतकार तक आवाज उठा चुके हैं। सिंगर-कंपोजर अदनान सामी इसे बहुत ही अनहेल्दी ट्रेंड मानते हैं। बकौल अदनान, ‘कुछ फिल्ममेकर्स बहुत ज्यादा सेफ खेलने के चक्कर में ऑलरेडी हिट गाने की ऐसी-तैसी करके उसे नए अवतार में ले आते हैं। इससे वे ऑरिजिनैलिटी को मार रहे हैं। इस चक्कर में वे नई मेलडी को मौका नहीं देते हैं। इसे मैं बहुत अनहेल्दी ट्रेंड मानता हूं। आज हमारी युवा पीढ़ी के पास उनके गाने नहीं हैं, यह बहुत दुख की बात है।’ जानी-मानी गायिका सुनिधि चौहान कहती हैं, ‘हम एक चीज निश्चित तौर गलत कर रहे हैं कि हम ओरिजिनल म्यूजिक को सपोर्ट नहीं कर रहे हैं। जैसे, हम अच्छी फसल के लिए खेती करते हैं, वैसे ही अगर हम ओरिजिनल म्यूजिक को पानी नहीं देंगे, पोषण नहीं देंगे, तो हमें अच्छा रिजल्ट कैसे मिलेगा। आने वाले युग के लिए सदाबहार गाने कैसे बनेंगे? मुझे लगता है कि यहां पर थोड़ा सा लोगों को समझना चाहिए। रीमिक्स या रीक्रिएशन अच्छी बात है, पर इस कीमत पर नहीं कि नए गानों पर बिल्कुल ध्यान ही न दें, जैसा आजकल थोड़ा हो रहा है।’रियाज नहीं, ऑटो ट्यूनर से सेट होती आवाजइधर, समय के साथ तकनीक मजबूत हुई, तो संगीत जगत को ऑटो ट्यूनर का तोहफा भी मिल गया। फिर क्या था, सिंगर तो सिंगर सारे ऐक्टर्स भी गायक बन गए। ऐसे में, भला सालोंसाल रियाज करने वाले सिंगर्स की कौन कद्र करे। कभी सिंगर बनने का सपना संजोने वाली कमीडियन सुंगधा मिश्रा कहती हैं, ‘मैं किशोर दा को अपना आइडल मानती हूं। वे सिंगर थे, ऐक्टर थे, कमीडियन भी थे। मैं भी मल्टी टास्किंग कर लेती हूं। बाकी, आप खुद देखिए, अब कैसा प्लेबैक हो रहा है। आप इतने गाने सुनते हैं, आपको पता भी नहीं चलता कि किसने गाया है। सारी आवाजें एक सी लगती है। वह टाइम अलग था कि लता जी, आशा जी या अलका जी पूरे अलबम गाती थीं। तब सिंगर्स का एक नाम था। अब तो सिंगर्स एक-एक दो-दो लाइन गाते हैं। ऐक्टर्स भी गा रहे हैं। आज ऑटोट्यूनर होता है। कोई भी गा रहा है। सुर देखा नहीं जाता है। मैंने खुद घंटों रियाज किया है, लेकिन अब कोई क्यों करेगा, जब आपको पता है कि मशीन है, वह ऑटोमैटिकली ट्यून कर देगी।’इस बदलते मौसम पर शान क्या बताते हैंवहीं, सिंगर शान मानते हैं कि हमारे फिल्मी म्यूजिक की क्वॉलिटी में वक्त के साथ गिरावट आई है। बकौल शान, ’80 और 90 के जो परफॉमर्स थे, उनकी क्या स्केल थी। जबकि, आज के परफॉमर्स एक ही स्केल में, पता नहीं बोले जा रहे हैं या गाए जा रहे हैं। दरअसल, म्यूजिक आज सिर्फ एंटरटेनमेंट बन चुका है और इतनी आसानी से अवेलबल है। वो पोयट्री, पेंटिंग या दूसरे कई आर्ट फॉर्म के मुकाबले काफी ज्यादा लोगों तक पहुंच रहा है तो डिमांड ये है कि एक लोएस्ट कॉमन डिनॉमिनेटर कहते हैं न कि सबसे कम म्यूजिक समझने वाले को भी समझ आना चाहिए।’ वह आगे कहते हैं-ये एक नंबर गेम हो गया है कि दो पर्सेंट लोग अगर म्यूजिक समझते हैं, तो क्या 98 पर्सेंट लोग म्यूजिक नहीं सुनेंगे। उनके लिए भी तो बनना है तो उन दो पर्सेंट म्यूजिक समझने वालों को छोड़ दो, उन 98 पर्सेंट लोगों के लिए बनाओ, सिंपल सिंपल। अब मैं अगर उनको राशिद खां साहब का कोई गाना सुनाऊंगा तो कहेंगे कि यार क्या सुना रहा है। म्यूजिक पिछड़ा है क्योंकि मास के लिए उसे पिछड़ना ही होगा।शान