‘गदर 2’ के मनीष वाधवा को अनिल शर्मा ने कहा था ‘चाणक्य’, एक्टर ने बताया कैसे मिला था आर्मी चीफ का रोल

पर्दे के ‘चाणक्य’ मनीष वाधवा का कहना है कि अगर कॉन्टेंट अच्छा होगा तो फिर नुक्कड़ नाटक भी चल जाएगा। ‘गदर-2’ में उनके द्वारा निभाए विलेन (हामिद इकबाल) के किरदार की तारीफ हो रही है। दरअसल, वह रोल उन्हें महज तीन मिनट में मिल गया था। ज्यादातर अपना सीक्वेंस लखनऊ में शूट करने वाले एक्टर बीते दिनों फिर एक बार यहां आए तो उनकी पुरानी यादें ताजा हो गईं। काम की विविधता पर जोर देने वाले एक्टर के मुताबिक, जीवन जीने के लिए बहुत सारी चाणक्य नीति काम आती हैं। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।सनी बहुत प्यार से बात करतें हैंमेरा रिफरेंस इस फिल्म के लिए फाइट मास्टर रवि वर्मा जी ने दिया था। अनिल शर्मा (डायरेक्टर) सर ने पहली मीटिंग में ही मेरा चयन कर लिया था। उन्होंने मुझसे आते ही कहा कि आप तो हमारे यहां के ‘चाणक्य’ हैं। मैंने आपका काम देख रखा है। मुझे जो अपने रोल के लिए चाहिए, आपकी आवाज, पर्सनैलिटी और लंबाई सब कुछ सही है। बस एक औपचारिकता है कि सनी देओल से मिलना है। फिर मेरी और सनी सर की तीन मिनट की मुलाकात हुई। सच बताऊं तो पर्दे के सामने उनका गुस्सैल मिजाज दिखता है। असल में, वह मुस्कुराते हुए मिलते हैं और बहुत प्यार से बात करते हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि ‘गदर’ को अशरफ अली (अमरीश पुरी) के बिना नहीं सोचा जा सकता। ऐसे में यह हमारे लिए बड़ी जिम्मेदारी है। क्या आपको लगता है कि आप इसके लिए तैयार हैं। मैंने उनसे अपना सौ फीसदी देने का वादा किया। मुझे उम्मीद थी कि अनिल सर और सनी सर के मार्गदर्शन में मैं कर लूंगा।’गदर 2′ में विलेन बने मनीष वाधवा की पत्नी का नाम प्रियंका वाधवा है। वहीं बेटी वंशिका और बेटे का नाम आश्रित वाधवा है।लखनऊ आने पर शूट की यादें ताजा हो गईंमेरा लखनऊ में लगातार शूट नहीं था, जिस वजह से बीच-बीच में यहां आना होता था। हालांकि, मैंने अपना ज्यादातर सीक्वेंस इसी शहर में शूट किया था। ला-मार्टिनियर कॉलेज में काफी शूटिंग की थी। जेल वाला हिस्सा बाराबंकी में शूट किया था। फिर एक बार जब लखनऊ से मुखातिब होने का मौका मिला तो वह पहले वाला माहौल ही लग रहा था। हम और अनिल शर्मा सर भी शूटिंग के दिनों की यादें ताजा कर रहे थे। जब पता चला कि फिल्म की टीम लखनऊ जा रही है तो मैंने खुद भी सबके साथ आने का इरादा बना लिया। शहर के लोगों से बहुत प्यार मिलता है। अदब, तहजीब-तमीज दिल छू लेती है।अमरीश पुरी सर से अपने किरदार की तुलना को लेकर मन में किसी तरह का डर नहीं था। एक तरह से तुलना से खुशी भी हुई कि लोग मुझे इस लायक समझ रहे कि मेरी तुलना इतने बड़े ऐक्टर के साथ की जा रही, जबकि मैं खुद को अभी उस लायक नहीं मानता। सफल निर्देशन और अच्छी कहानी की वजह से सब कुछ आसानी से होता चला गया।मनीष वाधवा, एक्टर।काम में विविधता बहुत जरूरी हैहम कलाकार हैं और हमारे काम में विविधता होनी बहुत जरूरी है। एक जगह कोई बंधकर रह जाता है तो यह ठीक बात नहीं है। जब एक अध्याय खत्म होता है, तब ही एक नया उदय होता है। आप एक नई किताब में पुराना सब्जेक्ट नहीं डाल सकते। मैं मानता हूं कि अगर कोई नया विषय है तो फिर काम भी नए सिरे से होना चाहिए। फिर मैं पुराना सब कुछ भूल जाता हूं। कोई भी किरदार जब आप जीते हैं तो फिर तो मजे-मजे में चीजें बेहतर होती चली जाती हैं। मैं कभी यह नहीं सोचता हूं कि किस तरह के किरदार निभाने हैं। जैसे ‘चाणक्य’ के बाद नेगेटिव रोल किए। मिक्स ग्रे शेड्स किए, फिर पॉजिटिव किरदार मिले। मेरा प्रयास यही रहता है कि जो भी काम मिले, उसमें बिल्कुल रम जाऊं। फिर बस उस किरदार की बात होनी चाहिए, वह सकारात्मक है या नकारात्मक, इस ओर ध्यान नहीं देता।वह कई चर्चित टीवी शोज जैसे ‘छत्रसाल’, ‘हीरेो: गायब मोड ऑन’, ‘परमावतरा श्री कृष्ण’, ‘पेशवा बाजीराव’, ‘सिया के राम’, ‘दहलीज’, ‘इस प्यार को क्या नाम दूं एक बार फिर’, ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ समेत अन्य में अहम भूमिका निभा चुके हैं।हर किसी को सही से निभानी होगी जिम्मेदारीसब कुछ कॉन्टेंट के आधार पर ही निर्भर करता है। मैं मानता हूं कि कोई भी टीवी शो, फिल्म, वेब सीरीज ये सब कुछ कॉन्टेंट के मोहताज हैं। अच्छा कॉन्टेंट होगा तो सब कुछ चलेगा। फिर यह फर्क नहीं पड़ता कि वह किस प्लैटफॉर्म पर है। यहां तक कि नुक्कड़ नाटक भी चल जाएगा। अच्छी चीज लोग ढूंढ़कर देखेंगे। अगर आप एक्टर हैं तो अपने किरदार में ढल जाएं, लेखक हैं तो कहानी को जितना बेहतर करने का प्रयास हो सके करें। कुल मिलाकर हर किसी को अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से निभाने की जरूरत है।’गदर 2′ में पाकिस्तान आर्मी प्रमुख का रोल निभाया है मनीष वाधवा ने।‘जीवन में बहुत सारी चाणक्य नीति काम आती हैं’पर्दे के ‘चाणक्य’ कहते हैं कि जीवन जीने के लिए कोई एक नहीं बल्कि बहुत सारी चाणक्य नीति की जरूरत होती है। उनकी एक बहुत अच्छी लाइन हैं, जब वह चंद्रगुप्त से कहते हैं कि मेरी जो बातें हैं, वो तुम्हारे साथ हैं लेकिन रणभूमि में मैं नहीं रहूंगा। उसमें तुम्हें ही प्रतिक्रिया देनी होगी। वहां बस मेरी बातें तुम्हें याद आएंगी। मैं इससे कभी नहीं हिचकता हूं कि मुझे किसी छोटे से कुछ सीखने को मिल रहा या कोई बड़ा मुझे कुछ सिखा रहा है। वह मेरा शत्रु है या मित्र, मैं इस बारे में नहीं सोचता। अपना शत-प्रतिशत देने वाली बात मुझे उनकी हमेशा याद रहती है।