हीरोइनें केवल सजावटी गुड़िया नहीं, बॉलिवुडवाले औरतों की बढ़ती हैसियत को देने लगे हैं मान : now Bollywood started

एक अर्से से बॉलिवुड मसाला फिल्मों में महिला किरदारों को नाजुक, बेचारी या फिर सजावटी गुड़िया की तरह पेश किया जाता रहा है। लेकिन वक्त के साथ अब कमर्शल फिल्मों में भी मजबूत और प्रगतिशील महिला किरदार गढ़े जा रहे हैं। इस बदलाव पर एक रिपोर्ट:फिल्ममेकर करण जौहर की फिल्म हो, तो उसमें आकर्षक सेट, आलीशान बंगले, डिजाइनर कपड़ों में ख्वाब से दिखते, खूबसूरत वादियों में रोमांटिक गाने गाते हीरो-हीरोइन यानी भव्यता की फुल गारंटी। उनकी नई फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में भी ये सारी चीजें कूट-कूटकर भरी हैं पर यहां जो बात नई और सुखद है वो यह कि कभी कुछ कुछ होता है में मिनी स्कर्ट या शिफॉन साड़ी में लिपटी लंबे बालों वाली लड़की को हॉट और टॉम बॉय लुक वाली लड़की को अनाकर्षक का टैग देने वाले, कभी खुशी कभी गम में पति के ‘बस कह दिया ना’ पर पत्नी का मुंह सिल देने वाले करण खुद इन पुरुष सत्तात्मक संस्कृति के खिलाफ खड़े हैं। यहां उनकी रानी ना किसी सेक्सिस्ट राहुल के प्यार में पागल है, ना किसी बाबू जी यशवर्धन रायचंद के गलत होने पर भी उनके पांव पड़ने को बेचैन। वह अपने पिता के अपमान पर रॉकी से दूर जाने को तैयार है, तो होने वाले रूढ़िवादी ससुर का हाथ झटकने से भी परहेज नहीं करती।बॉलिवुड सही ट्रैक पर आ रहा हैइससे पहले एक अच्छा बदलाव फिल्म तू झूठी मैं मक्कार में भी देखने को मिला। हालांकि, यहां भी कहानी हीरो के नजरिए से है, तो जीत भी उसी की सोच की होती है, फिर भी अपनी दूसरी फिल्मों की तरह यहां उन्होंने ससुराल वालों से अलग होकर सिर्फ पति के साथ घर बसाने की सोच रखने वाली नायिका टिन्नी को विलेन नहीं बनाया है। दूसरे, फिल्म में नायक मिकी के परिवार में उसकी दादी, मां, बहन, भांजी सभी महिला किरदारों को जैसा प्रोग्रेसिव दिखाया है, उसकी भी तारीफ बनती है। यही नहीं, इन फिल्ममेकर्स के नजरिए में अपनी नायिकाओं और फीमेल किरदारों के प्रति आए इस बदलाव को देखकर ये भी लगता है कि देर से ही सही, लंबे समय तक खुद पैट्रिआर्की को पोषित करता रहा बॉलिवुड सही ट्रैक पर आ रहा है।पैट्रिआर्की के खिलाफ औरतों के साथबेशक बॉलिवुड में एक तरफ ‘मदर इंडिया’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अंकुर’, ‘सीता और गीता’, ‘चालबाज’ जैसी मजबूत फीमेल किरदारों वाली फिल्मों की परंपरा रही है। अब भी सशक्त महिला किरदारों वाली कई फिल्में बन रही हैं। मगर मेनस्ट्रीम कमर्शल सिनेमा में उनकी हैसियत बेचारी, त्याग की देवी या फिर हीरो संग नाचते वाली सजावटी गुड़िया की ही रही है। लंबे समय तक इन मसाला फिल्मों में महिला किरदारों की आवाज, उनकी सोच को महत्व नहीं दिया गया है। इसीलिए, ‘तू झूठी मैं मक्कार’ और ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ जैसी फिल्मों में महिलाओं का बढ़ता कद एक सकारात्मक बदलाव है। करण जौहर की फिल्म में ”एक ऐसी दादी जामिनी (शबाना आजमी) है, जिसे शादीशुदा होते हुए भी किसी और के प्यार में पड़ने का कोई अफसोस नहीं है। जामिनी के जरिए करण ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर और डोमेस्टिक वायलेंस जैसे मुद्दों को नाजुक तरीके से छुआ है। वहीं, आज की पीढ़ी की रानी (आलिया भट्ट) पुरानी दकियानूसी सोच को ढो रहे बड़ों की हर बात को सही नहीं मानती है। वह अपनी होने वाली दादी सास धनलक्ष्मी (जया बच्चन) के घर की बाकी महिलाओं को दबाकर रखने के खिलाफ खुला बिगुल बजाते हुए कहती है- खेला होबे। ना कि उसके हिसाब से ढलकर, अच्छी बनकर उनका दिल जीतने की कोशिश करती है। इसी तरह, तू झूठी मैं मक्कार में मिकी (रणबीर कपूर) के घर की महिलाएं उसे इसलिए डांटती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उसने टिन्नी (श्रद्धा कपूर) पर पारंपरिक कपड़े पहनने का दबाव डाला है। ऐसे में, ये देखना अच्छा लगता है कि बदलते वक्त के साथ फिल्म निर्देशक भी अब औरतों के साथ खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं।अंडरगारमेंट और सेक्सुअल डिजायर की बातें’रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में रॉकी (रणवीर सिंह) का अपनी होने वाली सास के साथ अंडर गारमेंट खरीदने वाला सीन भी काफी चर्चा में रहा। बाद में एक सीन में रॉकी अपनी सास की ब्रा सुखाते हुए दिखा। कई मर्दवादी लोग इस सीन की आलोचना करते भी दिखे कि एक फैमिली फिल्म में हीरो अपनी होने वाली सास की ब्रा कैसे सुखा सकता है? बात सही भी हैं कि हमारे समाज में ऐसा नहीं होता। औरतों की ब्रा-पेंटी कोई रहस्यमयी चीज समझी जाती है, जिसे छिपा कर रखने की हिदायत दी जाती है, मर्द भला ब्रा-पेंटी कैसे सुखा सकता है? मगर यही तो पॉइंट है कि सुखाना चाहिए। दूसरे कपड़ों की तरह, उन्हें भी कपड़ा ही समझना चाहिए। अच्छी बात ये है कि अब बॉलिवुड फिल्में टैबू माने वाले वाले पीरियड्स (पैडमैन, फुल्लू), औरतों की सेक्सुअल डिजायर्स (वीरे दी वेडिंग, लिपस्टिक अंडर माय बुर्का) जैसे विषयों पर बात करने लगी हैं।अब महंगा पड़ेगा टुनटुन का मजाकएक मोटा इंसान खासकर औरत हमारे समाज में मजाक के लिए आसान साधन बनती रही है। फिल्मों में भी यही दिखाया जाता रहा है कि टुनटुन को कॉमिक रिलीफ के लिए ले लो। उन्हें हर वक्त खाना ठूंसते दिखाओ और जो चाहे जोक बनाओ। लेकिन अब फैट शेमिंग और रेसिज्म आदि को लेकर भी बॉलिवुड संवेदनशील हुआ है। ‘शानदार’, ‘उजड़ा चमन’, ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ जैसी फिल्मों में बॉडी शेमिंग के मुद्दे को मजबूती से उठाया गया है, तो गिप्पी, दम लगाके हइशा और डबल एक्सेल जैसी फिल्में ही इस मुद्दे पर हैं। फिल्म डबल एक्सेल की निर्माता और ऐक्ट्रेस हुमा कुरैशी कहती हैं, ‘औरतें कोई चीज नहीं हैं। उनकी अपनी सोच है, अपनी जर्नी है, अपनी कहानी है, अपना अस्तित्व है। मगर औरत को एक ऑब्जेक्ट की तरह ट्रीट किया जाता है। ये बहुत गलत सोच है।’ अच्छी बात ये है कि समाज में बदलाव आने में भले अभी और समय लगे, पर बॉलिवुडवाले औरतों की इस बढ़ती हैसियत को मान देने लगे हैं।