अमरीश पुरी। भारतीय सिनेमा की दुनिया में यह सिर्फ एक नाम नहीं है। अमरीश पुरी (Amrish Puri) अपने आप में हिंदी सिनेमाई पर्दे पर एक युग की तरह थे, जो उनके साथ बीत गया। बॉलिवुड के सबसे मशहूर, सबसे सफल विलन, जिनके जाने के बाद पर्दे पर कोई और ऐक्टर कभी वैसे दमदार विलन नहीं बन गया। अमरीश पुरी ने 350 से अधिक फिल्मों में काम किया। पर्दे पर उनकी एक झलक और गुर्राती आवाज ही दर्शकों के दिल की धड़कन बढ़ा देती थी। एक ऐसी शख्सियत जो पर्दे पर सबसे बड़े विलन थे, तो असल जिंदगी में उतने ही सौम्य और सहज इंसान। वो जिसने ‘परदेस’ फिल्म में हम सभी को ‘ये मेरा इंडिया, आई लव माय इंडिया’ गाना सिखाया। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कभी उसी ‘द अमरीश पुरी’ को इस देश में ‘एंटी नैशनल’ (Anti-National) यानी राष्ट्र विरोधी करार दे दिया गया था।40 की उम्र में फिल्मों में रखा था कदमअमरीश पुरी ने 40 साल की उम्र में सिनेमाई पर्दे पर कदम रखा था। वह उम्र जब आम तौर पर बहुत से ऐक्टर्स का करियर ढलान पर चला जाता है, अमरीश पुरी ने वहीं से शुरुआत की थी। फिर चाहे ‘मिस्टर इंडिया’ में मोगैम्बो का किरदार हो या ‘शक्ति’ में जेके का। ‘मेरी जंग’ का ठकराल हो या ‘त्रिदेव’ का ‘भुजंग’, ‘घायल’ में बलवंत राय का रोल हो या ‘करण अर्जुन’ में ठाकुर दुर्जन सिंह का। अमरीश पुरी ने हर बार सिनेमाई पर्दे पर नेगेटिव रोल का नया अध्याय लिखा। अमरीश पुरी ने पर्दे पर सिर्फ विलन की भूमिका ही नहीं निभाई, वह कई पॉजिटिव कैरेक्टर्स में भी नजर आए। 1967-2005 तक उन जैसा न कोई था और ना ही उनके बाद कोई वैसा दमदार ऐक्टर हुआ।भाई मदन पुरी की राह पर बढ़ते हुए पहुंचे मुंबईपंजाब के नवांशहर में 22 जून 1932 को पैदा हुए अमरीश पुरी पांच भाई-बहन थे। उनके दोनों बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी पहले ही बॉलिवुड में अपने कदम जमा चुके थे। उसी राह पर चलते हुए अमरीश पुरी भी मुंबई में ऐक्टिंग की दुनिया में किस्मत आजमाने पहुंचे थे। कई छोटे-मोटे किरदार करने के बाद 1980 में रिलीज ‘हम पांच’ में उन्हें पहली बार नोटिस किया गया। इसके बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1987 में शेखर कपूर की ‘मिस्टर इंडिया’ रिलीज हुई थी। इस फिल्म में मोगैम्बो के किरदार ने अमरीश पुरी को सफलता के शिखर पर पहुंचाया। लेकिन यह भी जबरदस्त बात है कि इससे तीन साल पहले ही वह हॉलिवुड की फिल्म में नजर आ चुके थे। वो भी स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म, जिसमें काम करना किसी भी ऐक्टर का सपना होता है। लेकिन दिलचस्प यह भी है कि इसी दौरान उन्हें ‘एंटी नैशनल’ तक कहा गया।स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म और ‘मोला राम’ का किरदारसाल 1984 में स्टीवन स्पीलबर्ग (Steven Spielberg) की फिल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ डूम’ (Indiana Jones and the Temple of Doom) रिलीज हुई थी। यह ‘इंडियाना जोन्स फ्रेंचाइजी’ की दूसरी फिल्म थी। फिल्म में अमरीश पुरी ने ‘मोला राम’ का किरदार निभाया था। वह इस फिल्म में भी मेन विलन बने थे। अमरीश पुरी ने इस किरदार के लिए अपना सिर मुंडवाया था। यह पहला मौका था, जब उन्होंने अपने बाल पूरी तरह हटवाए थे। उन्हें अपना यह लुक इस कदर पसंद आया कि इसके बाद उन्होंने अपना यही लुक बनाए रखा। तब स्टीवन स्पीलबर्ग ने भी एक इंटरव्यू में कहा था, ‘अमरीश मेरे सबसे पसंदीदा विलन हैं। दुनिया में सबसे बेहतरीन, उनके जैसा न कोई हुआ है, न कोई कभी होगा।”यह लाइफटाइम मौका था, मुझे कोई पछतावा नहीं’इस फिल्म की कहानी के केंद्र में हिंदुस्तान है। कहानी एक भारतीय गांव की है, जहां गांव के गरीब लोग एक ठगी पंथ मोला राम से परेशान हैं। वह काला जादू जानता है। इंसानों की बलि देता है। बच्चों को अपना दास बनाता है। ठगी करता है। हताश गांव वाले इंडियाना जोन्स को एक रहस्यमय पत्थर ढूंढ़ने और ठगी पंथ मोला राम से बचाने के लिए कहते हैं। अमरीश पुरी अपनी बायोग्राफी ‘ऐक्ट ऑफ लाइफ’ में इस फिल्म से जुड़े अपने अनुभव बताते हैं। वह कहते हैं कि इस दौरान उन ‘एंटी नैशनल’ होने का टैग भी लगा था। अमरीश किताब में बताते हैं, ‘यह स्पीलबर्ग के साथ काम करने का एक लाइफटाइम मौका था। मुझे एक पल के लिए भी इसका पछतावा नहीं है। मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ भी राष्ट्र-विरोधी किया है। इसे इतनी गंभीरता से लेना और इस पर कुछ करना या कहना वास्तव में मूर्खतापूर्ण है।’फिल्म पर भारत में लगाया गया था बैनदरअसल, अमरीश पुरी की इस फिल्म पर खूब विवाद हुआ था। आरोप था कि इस फिल्म में भारतीय संस्कृति का मजाक बनाया गया है। जानबूझकर देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया गया है। यहां तब कि तब सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर बैन भी लगाया था। यही कारण है कि यह फिल्म तब हिंदुस्तान में थिएटर्स में रिलीज नहीं हुई। किताब में अमरीश पुरी कहते हैं, ‘यह फिल्म एक प्राचीन पंथ पर आधारित थी जो भारत में मौजूद था। फिर इसे फिल्म में एक कल्पना की तरह बनाया गया था। यदि आप याद करें तो शंघाई के पंकोट पैलेस जैसे उन कई ऐसे स्थानों का नाम जेहन में आता है, जहां के बारे में कहा जाता है कि वहां विमान टूट जाता है और यात्री बाहर कूदने के लिए एक बेड़े का उपयोग करते हैं। पहाड़ी से नीचे उतरते हैं और भारत पहुंचते हैं। लेकिन क्या कभी ऐसा कभी हो सकता है? लेकिन ये हमारी कल्पनाएं हैं, हमारे पंचतंत्र और लोककथाओं की तरह। मुझे पता है कि हम अपनी सांस्कृतिक पहचान के प्रति संवेदनशील हैं, लेकिन हम अपनी फिल्मों में खुद भी ऐसा बहुत कुछ करते हैं। लेकिन जब कोई विदेशी डायरेक्टर ऐसा करते हैं, तब हम गाली-गलौज करने लगते हैं।’पर्दे पर आखिरी फिल्म थी ‘किसना’अमरीश पुरी आखिरी बार सिनेमाई पर्दे पर साल 2005 में फिल्म ‘किसना’ में नजर आए। जबकि उससे एक साल पहले 2004 में उनकी 12 फिल्में रिलीज हुई थीं। इनमें सलमान खान के साथ ‘गर्व: प्राइड एंड ऑनर’ और ‘मुझसे शादी करोगी’, ओम पुरी के साथ ‘देव’, रितिक रोशन के साथ ‘लक्ष्य’ और अक्षय कुमार-प्रियंका चोपड़ा के साथ ‘ऐतराज’ जैसी फिल्में शामिल हैं। अमरीश पुरी एक दुर्लभ ब्लड कैंसर ‘मायलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम’ से पीड़ित थे।…और वो अपने पीछे एक शून्य छोड़ गएसाल 2004 में ही 27 दिसंबर को उनकी तबीयत अचानक बहुत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें हिंदुजा अस्पताल में भर्ती किया गया। उनके ब्रेन की सर्जरी हुई थी। ब्रेन में खून जमा हो गया था। इसके बाद 12 जनवरी 2005 की सुबह 7:30 बजे वह इस दुनिया से हमेशा के लिए चले गए। उनकी मौत करोड़ों फैन्स और सिनेमा की दुनिया के लिए जैसे एक गहरा झटका था। एक ऐसा शून्य जो उनके बाद आज तक नहीं भर पाया है।