केंद्र सरकार ने जब से सिनेमेटोग्राफ ऐक्ट 2021 (Cinematograph Act) को नए प्रावधानों के साथ पेश किया है, फिल्ममेकर्स और ऐक्टर्स में इसको लेकर नाराजगी है। कमल हासन ने जहां ट्विटर पर इसके खिलाफ विरोध जताते हुए यहां तक कह दिया कि वह ‘गांधी जी के तीन बंदर की तरह’ सबकुछ देखते-सुनते नहीं रह सकते, वहीं अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap), हंसल मेहता (Hansal Mehta), वेत्री मारन, नंदिता दास (Nandita Das), शबाना आजमी (Shabana Azmi), फरहान अख्तर (Farhan Akhtar), जोया अख्तर (Zoya Akhtar) और दिबाकर बनर्जी (Dibakar Banerjee) जैसे दिग्गजों ने सरकार के नाम एक ओपन लेटर लिख दिया है। इन फिल्मी धुरंधरों का कहना है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 1952 के सिनेमेटोग्राफ ऐक्ट में जिन बदलावों की बात की है वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक असहमति को खतरे में डालना वाला है। फिल्मेकर्स ने मंत्रालय को जो चिट्ठी लिखी है उसमें 5 सुझाव भी दिए गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस कानून में संसोधन पर इतना बवाल है, क्यों? आइए एक-एक कर के समझते हैं।केंद्र सरकार ने 2 जुलाई तक मांगी है जनता से रायकेंद्र सरकार ने इसी महीने सिनेमेटोग्राफ (संसोधन) बिल 2021 का मसौदा जारी किया है। इस पर 2 जुलाई तक जनता से राय मांगी गई है। मोटे तौर पर समझे तो नए मसौदे में 1952 के सिनेमेटोग्राफ अधिनियम में संशोधन का जो प्रस्ताव है वह केंद्र सरकार को कुछ नई शक्तियां देता है। इसके तहत सरकार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) यानी सेंसर बोर्ड द्वारा मंजूरी के बाद भी फिल्मों की ‘फिर से जांच’ कर सकती है। फिल्म को मिले सर्टिफिकेट में बदलाव कर सकती है और उस पर अपनी इच्छा के अनुरूप ऐक्शन भी ले सकती है।सर्टिफिकेशन में बदलाव के अधिकार पर बवाल पूरे बिल में सबसे ज्यादा बहस ‘सर्टिफिकेशन में बदलाव’ के अधिकार को लेकर ही है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अधिनियम में एक प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव किया है, जो धारा 5बी(1) (फिल्मों को प्रमाणित करने में मार्गदर्शन के सिद्धांत) के उल्लंघन के कारण केंद्र को रिविजनरी पावर्स यानी उसकी फिर से जांच और बदलाव की शक्तियां देता है। हालांकि अभी जो अधिनियम है, उसमें भी धारा 6 में केंद्र को किसी फिल्म के सर्टिफिकेशन के संबंध में कॉल फोर प्रोसिडिंग्स यानी कार्यवाही के रिकॉर्ड के लिए आदेश देने की शक्ति देता है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित संशोधन का अर्थ है कि यदि ऐसी कोई स्थिति आती है तो केंद्र सरकार के पास सेंसर बोर्ड के निर्णय को उलटने की शक्ति होगी।क्या कहता है मौजूदा लागू अधिनियमअभी जो अधिनियम लागू है, उसमे कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले के कारण, जिसे नवंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा, केंद्र सरकार उन फिल्मों की दोबारा जांच नहीं कर सकती, जिन्हें सेंसर बोर्ड ने पहले ही सर्टिफिकेट दे दिया है। पहले ट्रिब्यूनल खत्म किया, अब नया कानूनयहां एक बात गौर करने वाली यह भी है कि सरकार की ओर से यह मसौदा ऐसे समय में आया है, जब हाल ही फिल्म सर्टिफिकेट अपेलेट ट्रिब्यूनल यानी फिल्म प्रमाणपत्र अपीलीय न्यायाधिकरण को खत्म कर दिया गया। यह ट्रिब्यूनल फिल्म निर्माताओं को यह अधिकार देता था कि यदि वह अपनी किसी फिल्म को सेंसर बोर्ड से मिले सर्टिफिकेट से खुश नहीं हैं तो वह इसके खिलाफ अपील कर सकते हैं।उम्र के हिसाब से सर्टिफिकेशन चाहती है सरकारनए मसौदे में उम्र को आधार बनाकर फिल्मों को कैटेगरी में बांटने की भी बात कही गई है। इसे इस तरह समझिए कि अभी तक फिल्मों को तीन तरह के सर्टिफिकेट मिलते थे- U, U/A और A. यानी U वाली फिल्मों को कोई भी देख सकता है। U/A, जिसे 12 साल से कम उम्र के बच्चे अपने माता-पिता के साथ ही देख सकते हैं और A यानी जो केवल वयस्कों के लिए है। अब नए मसौदे में इन सर्टिफिकेट कैटिगरी को उम्र के हिसाब से बांटने की बात है। प्रस्ताव में U/A 7+, U/A 13+ और U/A 16+ के रूप में फिल्मों को बांटने की बात कही गई है। यहां हर अंक एक उम्र है। इसके साथ ही स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म यानी OTT प्लेटफॉर्म को भी सर्टिफिकेशन की जरूरत होगी। इस नियम का कमोबेश सभी ने स्वागत ही किया है।पायरेसी पर लगाम लगाने की तैयारीसरकार ने नए मसौदे में पायरेसी पर लगाम लगाने के लिए भी नियमों को सख्त बनाने पर जोर दिया है। मंत्रालय का कहना है कि अभी के सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 में फिल्म पायरेसी को रोकने के लिए कोई प्रभावी प्रावधान नहीं हैं। मसौदे में धारा 6AA जोड़ने का प्रस्ताव है जो बिना अधिकार के फिल्मों की रिकॉर्डिंग पर बैन लगाता है। इसमें कहा गया है, ‘किसी भी कानून के लागू होने के बावजूद, किसी भी व्यक्ति को, लेखक के लिखित ऑथोराइजेशन के बिना, किसी भी ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग डिवाइस को जानबूझकर बनाने या प्रसारित करने या बनाने का प्रयास करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।’ मसौदे में इस कानून के उल्लंघन पर कम से कम तीन महीने जेल का प्रावधान है, जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा कम से कम 3 लाख रुपये जुर्माना लगेगा।फिल्ममेकर्स की चिट्ठी में दिए गए हैं ये 5 सुझावकुल मिलाकर फिल्ममेकर्स की मूल चिंता सरकार को दी जाने वाली उस शक्ति से है, जो उन्हें सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेशन के बाद ही फिल्म पर लगाम कसने का मौका देती है। सर्टिफिकेशन और पायरेसी को लेकर सरकार के मसौदे पर फिल्ममेकर्स ने एक तरह से सहमति ही दिखाई है। मेकर्स ने सरकार को जो ओपन लेटर लिखा है, उसमें पांच सुझाव भी दिए हैं। मेकर्स चाहते हैं कि सरकार इसे अपने मसौदे में शामिल करे। 1. सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक 2021 में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की भूमिका स्पष्ट किया जाए। इसे एक ऐसी बॉडी के रूप में रखा जाए तो फिल्मों को उसके कॉन्टेंट के लिहाज से सर्टिफिकेशन दे, न कि फिल्म को सेंसर करे। उसमें काट-छांट करे। 2. फिल्म के सर्टिफिकेट के रिव्यू या दोबारा जांच के लिए सरकार को मसौदे में जो शक्तियां दी गई हैं, उन्हें रद्द किया जाए। मेकर्स का कहना है कि हम सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की भावना से सहमत हैं, जिसमें कहा गया था कि यह हमारे लोकतंत्र में शक्तियों के विभाजन के नियम का उल्लंघन होगा।3. मेकर्स इस बात से सहमत हैं कि फिल्म पायरेसी वास्तविक चुनौतीहै। लेकिन प्रस्तावित संशोधन सिर्फ सजा का प्रावधान पेश करता है, जबकि इस चिंता को प्रभावी ढंग से निपटाने की जरूरत है। यदि इसे पेश किया जाता है, तो जो इमसें उचित उपयोग, न्यूनतम उपयोग और फिल्मों के लिए काम करने वाले कुछ खास चीजों को अपवाद बनाया जाना चाहिए। 4. मेकर्स ने फिल्म सर्टिफिकेट अपेलेट ट्रिब्यूनल को दोबार बहाल करने की मांग की है, क्योंकि यह फिल्म निर्माताओं को एक सुलभ और कम खर्चीला अधिकार देता है।5. मेकर्स का कहना है कि पब्लिक एग्जीबिशन की अधिनियम में स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिए। इसके दायरे में केवल कमर्शियल फिल्मों और नाटकीय प्रदर्शनियों से जुड़े राजस्व मॉडल को भी शामिल किया जाना चाहिए।