नयी दिल्ली, 11 फरवरी (भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को बजट के बारे में विपक्ष की आलोचनाओं को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इसमें किये गये प्रावधानों से महामारी से जूझ रही अर्थव्यवस्था में स्थिरता आएगी और सार्वजनिक व्यय से रोजगार अवसर सृजित होंगे। देश में महंगाई को लेकर विपक्ष के आरोपों पर उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में आई 9.57 लाख करोड़ रुपये की भारी गिरावट के बावजूद खुदरा मुद्रास्फीति 6.0 प्रतिशत से थोड़ी ही अधिक रही। महंगाई दर का यह आंकड़ा 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय की मुद्रास्फीति से कहीं कम है जबकि उस समय उतना प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव भी नहीं पड़ा था। वित्त मंत्री ने राज्यसभा में 2022-23 के बजट पर चली चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था में नरमी या मंदी का सवाल ही नहीं है क्योंकि चालू वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है।अर्थव्यवस्था के ‘ट्रेडमिल’ पर दौड़ने के आरोप पर उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था का आकार सात साल पहले के 110 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 232 लाख करोड़ रुपये हो गया है। उन्होंने कहा कि यह बजट आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के साथ अर्थव्यवस्था में निरंतरता तथा कराधान के मामले में भरोसा लाने के लिए है। सीतारमण ने कहा, ‘‘बजट का मकसद आर्थिक पुनरूद्धार में निरंतरता है। निरंतरता सार्वजनिक व्यय के माध्यम से प्रोत्साहन देने को लेकर है। हम स्थिरता और टिकाऊ पुनरूद्धार भी चाहते हैं। इसकी हमें जरूरत है।’’ बजट में 7.5 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय के तहत बुनियादी ढांचा निर्माण में सार्वजनिक व्यय से स्थिर और सतत पुनरूद्धार सुनिश्चित होगा। निजीकरण के संदर्भ में बजट में अधूरी योजनाओं के लिये मार्गदर्शन के अभाव से जुड़ी आलोचना का जवाब देते हुए सीतारमण ने कहा कि सरकार के लिये निरंतरता का सिद्धांत मार्गदर्शक है। पिछले बजट में निजीकरण पर अच्छा-खासा जोर दिया गया था, लेकिन इस बार इसका अभाव है। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी से दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा प्रभावित हुई है। 1972-73 में तेल संकट से अर्थव्यवस्था में 0.6 प्रतिशत की गिरावट आयी जबकि 1979-80 में ईरान-इराक युद्ध के कारण 5.2 प्रतिशत का संकुचन हुआ था। वित्त मंत्री ने कहा कि 2020-21 में 6.6 प्रतिशत की गिरावट 2008-09 के वित्तीय संकट के दौरान हुए संकुचन की तुलना में कहीं बड़ी गिरावट थी। उन्होंने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था में इस प्रकार की गिरावट की कोई तुलना नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि 2008-09 में अर्थव्यवस्था का आकार 2.12 लाख करोड़ रुपये घटा था जबकि मौजूदा महामारी में इसमें 9.57 लाख करोड़ रुपये की कमी आयी। ‘‘अत: यह संकट बड़ा है, जीडीपी में नुकसान काफी अधिक है।’’ सीतारमण ने कहा कि रिकार्ड गिरावट और प्रोत्साहन पैकेज के बावजूद मुद्रास्फीति दर 6.2 प्रतिशत रही जो 2008-09 के संकट के समय की 9.1 प्रतिशत मुद्रास्फीति से काफी कम है। उन्होंने कहा, ‘‘ सम्मानित विपक्षी दल के सदस्य अक्सर महंगाई का मुद्दा उठाते रहते हैं। उनके लिये यह बताना चाहती हूं कि अपेक्षाकृत कम बड़े संकट के दौरान आप मुद्रास्फीति को काबू में नहीं रख सके और इसे 9.1 प्रतिशत तक जाने दिया। हम इसका ध्यान रख रहे हैं और यह केवल 6 से 6.1 प्रतिशत पर बना रहा।’’ वित्त मंत्री ने हालांकि इस बात से सहमति जतायी कि मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये कदम उठाने की जरूरत है लेकिन यह भी कहा कि पूर्व के मुकाबले महंगाई का प्रबंधन बेहतर तरीके से हो रहा है। उन्होंने विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘‘बहुत अनुभवी वित्त मंत्रियों के होने के बावजूद आप छोटे संकट से बेहतर तरीके से निपट नहीं सके….।’’ सीतरमण ने कहा कि बुनियादी ढांचे पर सार्वजनिक व्यय का व्यापक प्रभाव पड़ता है जबकि राजस्व व्यय का वैसा असर नहीं होता। एक रुपये के पूंजी व्यय का तत्काल निर्धारित अवधि में 2.45 रुपया का प्रभाव पड़ता है। जबकि राजस्व व्यय का तत्काल 45 पैसा और बाद में 10 पैसे का गुणक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘‘इसीलिए हमने वृद्धि को गति देने के लिये पूंजीगत व्यय का रास्ता चुना और इस मद में खर्च 5.54 लाख करोड़ (चालू वित्त वर्ष में) से बढ़ाकर अगले वित्त वर्ष में 7.50 लाख करोड़ रुपये किया गया।’’ सीतारमण ने यह भी कहा कि आर्थिक समीक्षा और बजट में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर के अनुमान को लेकर अंतर होना कोई चिंता की बात नहीं है। इस अंतर का कारण अलग-अलग स्रोत से लिये गये आंकड़े हैं। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के लिये कम आवंटन के बारे में उन्होंने कहा कि यह मांग आधारित कार्यक्रम है। इसके लिये 73,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है और अगर मांग बढ़ती है तो राशि बढ़ायी जाएगी। सीतारमण ने कहा कि उर्वरक सब्सिडी के लिये 2021-22 के बजट में 79,530 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था जो संशोधित अनुमान में बढ़कर 1.4 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह बताता है कि सरकार जरूरत का ध्यान रखती है और आवश्कता अनुसार कदम उठाती है। रोजगार सृजन के बारे में उन्होंने कह कि बजट में 60 लाख नौकरियों की बात केवल 14 क्षेत्रों में विनिर्माण इकाइयां लगाने को लेकर उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना से संबंधित है। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचे में 7.5 लाख करोड़ रुपये के व्यय से और रोजगार सृजित होंगे।