नई दिल्ली: पिछले हफ्ते इतिहासकार अंगुस मेडीसन के काम से मैंने साबित किया कि हिंदू शासनकाल (साल 1-1000) भारत का स्वर्णकाल नहीं था जैसा कि अक्सर दावा किया जाता है। एक हजार साल तक देश की जीडीपी 33.7 अरब डॉलर पर ठहरी रही। मुस्लिम शासनकाल (1000 से 1700) में देश की जीडीपी करीब तिगुनी होकर 90 अरब डॉलर पहुंची लेकिन बढ़ती आबादी के कारण इसका फायदा नहीं मिला। अब अंग्रेजों के जमाने की बात करते हैं। अपनी बेस्टसेलर किताब An Era of Darkness: The British Empire in India में शशि थरूर ने मेडीसन के काम का व्यापक हवाला दिया है।एक शॉर्ट कॉलम में उन्हें लंबी थीसिस पर पूरी तरह से चर्चा नहीं की जा सकती है लेकिन हम इसमें मेडीसन के काम के उल्लेख पर तो बात कर ही सकते हैं। मेडीसन की मशहूर किताब Contours of the World Economy, 1-2030 AD में दिए गए आंकड़े थरूर से थोड़े अलग हैं। मेडीसन के मुताबिक अंग्रेजों की हुकूमत से पहले साल 1700 में दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 24.4 फीसदी थी जो 1950 में गिरकर 4.2 परसेंट रह गई। थरूर कहते हैं, इसका कारण सीधा सा है। ब्रिटेन के फायदे के लिए भारत पर राज हो रहा था। 200 साल तक ब्रिटेन के उभार की कीमत भारत से वसूल की गई।मेडीसन के आंकड़ेक्या मेडीसन के असली आंकड़े भारत को सपोर्ट करते हैं? साल 1700 से 1950 तक भारत की जीडीपी 90 अरब डॉलर से 222 अरब डॉलर पहुंची जो अब तक की सबसे तेज रफ्तार थी। दुनिया की जीडीपी में भारत का हिस्सा इसलिए नहीं गिरा क्योंकि वह गरीब हो गया। बल्कि इसकी वजह औद्योगिक क्रांति थी जिसके कारण दूसरे देश तेजी से आगे बढ़े। स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार और अंग्रेजों की पहल पर विभिन्न रियासतों के बीच शांति से देश की आबादी 16.5 करोड़ से 35.9 करोड़ पहुंच गई। इसके उलट हिंदू शासनकाल में देश की आबादी नहीं बढ़ी। यह इस बात का प्रमाण है कि अंग्रेजी हुकूमत से पहले चीजें कितनी मुश्किल थी।क्या भारत की लो इनकम और ब्रिटेन की हाई इनकम के लिए अंग्रेजों की हुकूमत जिम्मेदार थी? मेडीसन के आंकड़े इस दावे का समर्थन नहीं करते हैं। अंग्रेजों के आने से पहले साल 1000 से 1500 तक ब्रिटेन की सालाना प्रति व्यक्ति इनकम ग्रोथ भारत की 0.04 परसेंट की तुलना में तीन गुना थी। 1500 से 1820 तक भारत की पर कैपिटा ग्रोथ निगेटिव में 0.01 परसेंट थी जबकि ब्रिटेन की 0.27 परसेंट थी। 1820 से 1870 तक ईस्ट इंडिया कंपनी की लूट चरम पर थी। इस दौरान भारत का ग्रोथ जीरो था जबकि ब्रिटेन की ग्रोथ 1.26 परसेंट थी। 1870 से 1913 तक अंग्रेजों के दौर में भारत का सालाना ग्रोथ रेट 0.54 परसेंट था जो सबसे अधिक था। लेकिन जब अंग्रेजी हुकूमत देश में अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी तो 1913 से 1950 तक यह माइनस 0.24 परसेंट में रही। इस दौरान महामंदी ने भारत को भी प्रभावित किया और खाने-पीने की चीजों की उपलब्धता में भारी गिरावट आई।Swaminomics: अब आया है भारत का स्वर्णकाल, पहले नहीं था सोने की चिड़िया! देख लीजिए आंकड़ेब्रिटेन का हालब्रिटेन की अपनी सालाना पर कैपिटा इनकम ग्रोथ 1870 से 1950 के दौर में एक परसेंट से भी नीचे चली गई। यह इस बात का संकेत है कि उसे उपनिवेश से कोई बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ। 1950 से 1973 के बीच जब एक-एक करके उसने अपने उपनिवेश गंवाए तो ब्रिटेन की पर कैपिटा इनकम ग्रोथ 2.4 परसेंट के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। यह उस थीसिस के उल्टा है कि गुलाम देशों की लूट से ब्रिटेन की समृद्धि बढ़ी। इसकी ग्रोथ का कारण प्रॉडक्टिविटी में बढ़ोतरी था। उपनिवेश से उसे फायदा हुआ लेकिन ज्यादा नहीं।जहां तक भारत से ब्रिटेन तक धन के प्रवाह की बात है तो थरूर ने इसमें मेडीसन के काम का हवाला देते हैं, इसमें कोई शक नहीं है कि 190 साल तक भारत से भारी मात्रा में ब्रिटेन के लिए फाइनेंशियल फ्लो हुआ। अगर इन पैसों को भारत में ही निवेश किया जाता तो इससे बहुत बड़ा फर्क पैदा हो सकता था। यह बिल्कुल सही है। लेकिन भारत का इतिहास दिखाता है कि टैक्स रेवेन्यू को भारत में निवेश नहीं किया गया बल्कि अधिकारियों की विलासिता और लगातार हो रही लड़ाइयों पर बर्बाद किया गया। इससे कई शासक अपने सैनिकों को समय पर तनख्वाह नहीं दे पाए और लूट को प्रोत्साहन मिला। इस कारण देश की जीडीपी सुस्त चाल से बढ़ी।Swaminomics: झुकेगा नहीं… 75 साल के जिम्मी लाई को क्यों मिलना चाहिए इस साल का नोबेल शांति पुरस्कारकंपनी की लूटईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के अमीरों को लूटा। लेकिन इससे भारत के जनमानस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उनके लिए टैक्स में कोई बदलाव नहीं आया। अंग्रेजी हुकूमत में 40 परसेंट भारत पर रजवाड़ों का शासन था। उन्होंने अपना रेवेन्यू अंग्रेजों के हवाले नहीं किया लेकिन उनकी इकनॉमिक ग्रोथ कमजोर रही। इसमें त्रावणकोर जैसी रियासतें अपवाद रहीं। इससे साबित होता है कि टैक्स रेवेन्यू को भारत में ही रखने से आम लोगों या इकनॉमिक ग्रोथ को कोई फायदा नहीं हुआ। हैदराबाद के निजाम को दुनिया का सबसे अमीर शख्स माना जाता था लेकिन उसके शासन वाले इलाकों देश के गरीब इलाकों में थे। राष्ट्रवादी इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत नहीं होती तो भारत की औद्योगिक क्रांति तेजी से होती। लेकिन देश की रियासतों खासकर सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद कुछ और ही कहानी बयां करती है।थरूर कहते हैं कि अंग्रेजों का टैक्स बहुत ज्यादा था लेकिन मेडीसन के मुताबिक मुगलकाल में जीडीपी में किसानों के टैक्स की हिस्सेदारी 15 परसेंट थी जो अंग्रेजी हुकूमत के अंत में गिरकर तीन परसेंट रह गई। ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगलों की ही तरह टैक्स रखा लेकिन जब देश की कमान सीधे अंग्रेजी हुकूमत के हाथों में आई तो टैक्स को नॉमिनल टर्म्स में फिक्स किया गया। इससे किसानों पर टैक्स का बोझ कम हुआ। इससे अंग्रेजों के लिए मुनाफा खत्म हो गया। अंग्रेजों के भारत छोड़ने का यह भी एक कारण था।इस कॉलम में भारत में अंग्रेजों के शासन या थरूर की किताब का पूरा आकलन नहीं है। लेकिन इससे साबित होता है कि थरूर ने मेडीसन की किताब से केवल अपने मतलब की चीजें उठाई हैं ताकि अपनी थीसिस को मजबूत किया जा सके। मेडीसन ने भारत में ब्रितानी हुकूमत की ज्यादा आलोचना नहीं की है। उनका कहना है कि अंग्रेजी राज में भारत में सिंचाई में आठ गुना तेजी आई। इस पर बहस जारी है।