इस्लामाबाद: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने चुनाव को पास आता देखकर पाकिस्तानी सेना से दूरियां बनानी शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि मैं इस्टैब्लिशमेंट का आदमी नहीं हूं। पाकिस्तान में सेना को इस्टैब्लिशमेंट कहा जाता है। शहबाज शरीफ ने यह भी कहा कि अपने 38 साल के राजनीतिक जीवन के दौरान उन्होंने विभिन्न सेना प्रमुखों के साथ जो बैठक की हैं, उनका उद्देश्य केवल देश हित रहा है, व्यक्तिगत लाभ नहीं। उन्होंने कहा कि सैन्य नेतृत्व के साथ बैठक राजनेताओं और सेना की संस्था के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए थी। हालांकि, वर्तमान समय में शहबाज शरीफ को पाकिस्तानी सेना का खास बताया जा रहा है। शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार का कार्यकाल 12 अगस्त को समाप्त होने वाला है।शरीफ ने इस्लामाबाद में भारा काहू बाईपास के उद्घाटन समारोह में अपने संबोधन के दौरान खुद को पाकिस्तानी सेना से अलग दिखाने की कोशिश की। सवा छह अरब रुपये की इस परियोजना का उद्देश्य पहाड़ी रिसॉर्ट मुरी और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की ओर जाने वाले लोगों के लिए यात्रा के समय को कम करना है।डान अखबार ने 71 वर्षीय शरीफ के हवाले से कहा, “उन बैठकों का एकमात्र उद्देश्य यह था कि राजनेता और संस्थाएं देश को पाकिस्तान में बदलने के लिए मिलकर काम करें, जिसके लिए कई मुसलमानों ने अपनी जान दे दी।” शरीफ ने कहा, “लोग मुझे प्रतिष्ठान (सेना) का आदमी कहकर ताना मारते हैं। लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्यों? क्योंकि…मेरा कोई व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने का इरादा नहीं था।”शरीफ ने कहा कि लोग यह भी कहते हैं कि वह पूर्व सेना प्रमुख और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के करीबी थे लेकिन जब उनके परिवार को प्रताड़ित करने की बात आई तो इसका कोई मतलब नहीं रहा। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री और उनके बड़े भाई का जिक्र करते हुए कहा, “लेकिन क्या मुझे कुछ मिला? नवाज शरीफ जेल गए और मैं भी। नवाज शरीफ अटक (जेल) गए और मैं भी। नवाज शरीफ लांधी जेल गए और मैं भी। नवाज शरीफ को निर्वासन में भेजा गया और मुझे और मेरे परिवार को भी। तो मुझे क्या मिला?”