काबुलअफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा बढ़ता जा रहा है और अफगान सेना के साथ उसकी जंग गहराने का खतरा भी गहरा गया है। अमेरिकी सेना के देश छोड़ने के बाद अब लग रहा है कि तालिबान उसके साथ हुए शांति समझौते को भी नहीं मान रहा। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तालिबान के साथ लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों के लड़ाके मैदान में हैं। इसके साथ ही भारत के लिए जम्मू-कश्मीर को लेकर अलर्ट रहना और जरूरी हो गया है।सुरक्षा एजेंसियों के हवाले से हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अफगानिस्तान के कुनार और नंगरहार प्रांत से लेकर हेलमंद और कांधार में भी ये आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इन चारों इलाकों की सीमा पाकिस्तान से लगती है। रिपोर्ट के मुताबिक तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-झांगवी, जमात-उल-अरहर, लश्कर-ए-इस्लाम और अल-बद्र के लड़ाके भी बड़ी संख्या में देखे गए हैं।साथ मिलकर कर रहे कामइनमें से लश्कर-ए-तैयबा के 7 हजार से ज्यादा आतंकी सक्रिय बताए गए हैं। इन संगठनों ने अफगानिस्तान के लिए नई भर्ती भी की है और अफगान तालिबान का सैन्य चीफ मुल्ला मोहम्मद याकूब लश्कर और जैश के साथ मिलकर काम कर रहा है। दावे के मुताबिक तालिबान लड़ाके पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के हैदराबाद में लश्कर के कैंप में ट्रेनिंग ले रहे हैं जिसमें पाकिस्तान की सेना भी मदद पहुंचा रही है। पाक खुफिया एजेंसियां भीइनकी 200 आतंकियों की टुकड़ियां बनाई गई हैं जिनमें 5-8 आत्मघाती हमलावर भी हैं। इनके साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के अधिकारी भी काम कर रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि तालिबान और पाकिस्तान में पनपने वाले इन आतंकी संगठनों के बीच साठ-गांठ की ये रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है जब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने पाकिस्तान पर निशाना साधा था।Durand Line Dispute: पाकिस्तान पर निशाना, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति का तालिबान से सवाल- ‘देश के लिए लड़ाई या किसी बाहरी के लिए?’गनी का पाकिस्तान पर निशानागनी ने तालिबान से कहा था कि अगर वह अफगानिस्तान से प्यार करता है तो डूरंड लाइन को नहीं मानेगा। डूरंड लाइन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच ब्रिटिश द्वारा खींची गई रेखा है जिसे काबुल नहीं मानता है। उन्होंने यह भी सवाल किया था कि तालिबान देश के लिए लड़ रहा है या किसी और देश के कहने पर चल रहा है। जाहिर है पाकिस्तान के साथ उसकी मिलीभगत किसी से छिपी नहीं है। भारत को रहना होगा अलर्टपाकिस्तानी सेना, खुफिया एजेंसियों और आतंकी संगठनों को अफगान तालिबान का साथ मिलना भारत के लिए चिंताजनक हो सकता है। इस पर पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा की जा चुकी है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल दुनिया के दूसरे हिस्सों में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। दक्षिण एशिया, खासकर पाकिस्तान के साथ तनाव को देखते हुए भारत की सुरक्षा के लिए अफगानिस्तान में शांति बेहद अहम है।