नई दिल्ली: भारत के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग कर ली है। इस लैंडिंग के साथ ही भारतीय तिरंगा चांद के उस हिस्से में पहुंच गया है जहां पर अभी तक कोई भी नहीं पहुंचा है। चंद्रयान-3 ने साउथ पोल के मैन्जिनस सी और सिम्पेलियस एन क्रेटर के करीब लैंडिंग की है। 14 जुलाई को लॉन्च हुआ यह मिशन अब पूरी दुनिया के लिए सफलता की कहानी बन गया है। जानिए इन दोनों क्रेटर्स के बारे में सबकुछ। दिलचस्प बात है कि साल 2019 में भारत का चंद्रयान-2 मिशन जब फेल हो गया था तो कई लोगों ने भारत का मजाक भी उड़ाया था।दक्षिणी ध्रुव पर उतरा चंद्रयानभारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का चंद्रयान -3 का लैंडर विक्रम ने चंद्रमा के करीब 70.8 डिग्री दक्षिण अक्षांश पर मैन्जिनस सी और सिम्पेलियस एन क्रेटर के बीच टचडाउन किया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरफ से बताया गया है कि यह जगह दक्षिणी ध्रुव से करीब 600 किलोमीटर दूर स्थित है। नासा का लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) चंद्रयान-2 के लैंडर के मलबे को नहीं देख सका था। इसलिए उसने निष्कर्ष निकाला कि लैंडर छाया में छिपा होगा।दिसंबर 2019 में एलआरओ को लैंडर का मलबा लैंडिंग साइट पर बिखरा हुआ मिला। खास बात है कि इन दोनों ही जगहों का अभी तक कोई नाम नहीं था लेकिन अगले कुछ ही दिनों में यह चंद्रमा की सतह पर सबसे महत्वपूर्ण जगह बनने वाला है। साल 2019 में चंद्रयान-2 को भी इसी जगह पर लैंड करना था।क्या है दक्षिणी ध्रुव का रहस्यचंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अभी भी काफी हद तक रहस्यमय क्षेत्र है। यहां अभी तक कोई और लैंडिंग नहीं कर सका है। मिशन अपने रोवर और लैंडर को लगभग 70° दक्षिण के अक्षांश पर दो क्रेटरों – मैन्ज़िनस सी और सिम्पेलियस एन – के बीच एक ऊंचे मैदान में सॉफ्ट लैंडिंग कराने का प्रयास करेगा। अमेरिका का अपोलो मिशन हो या फिर कोई और सभी मिशनों ने चंद्रमा के भूमध्यरेखीय क्षेत्र को लक्षित किया था। इसरो की तरफ से कहा गया है कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि यहां छाया में रहने वाला सतह क्षेत्र चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव की तुलना में बहुत बड़ा है। इसका मतलब यह है कि जो क्षेत्र स्थायी रूप से छायाग्रस्त हैं, वहां पानी जमा होने की संभावना है।