बीजिंग: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) अब सवालों के घेरे में आ गया है। इटली की तरफ से जिस तरह से इस प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े किए गए हैं उसके बाद अब विशेषज्ञ इसके भविष्य पर चर्चा करने लगे हैं। साल 2013 में इस प्रोजेक्ट को जिनपिंग ने बड़े अरमानों के साथ लॉन्च किया था। लेकिन अब इस प्रोजेक्ट को लेकर चिंताएं शुरू हो गई हैं। जिस तरह से प्रोजेक्ट के लिए कर्ज दिया गया है उसकी स्थिरता और चीन की अर्थव्यवस्था के बाद एक्सपर्ट्स इस प्रोजेक्ट पर कई तरह की आशंकाएं जताने लगे हैं।क्या था मकसद और क्या है नतीजाबीआरआई को इस मकसद से लॉन्च किया गया था कि यह एशिया को अफ्रीका और यूरोप से जोड़ सकेगा। इन्हें जोड़ने के लिए रेल नेटवर्क्स, राजमार्ग, बंदरगाहों और दूसरे इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को भी शुरू किया गया। इन प्रोजेक्ट्स से चीन को उम्मीद थी कि जो देश इसमें शामिल हैं वो व्यापार, निवेश और आर्थिक तरक्की में योगदान करेंगे।चीनी अधिकारियों ने इसे ग्लोबलाइजेशन का नया मॉडल तक कह दिया था जिसमें सभी शामिल पार्टियों को फायदा होने की बात कही गई थी। लेकिन आज 10 साल के बाद हालात अलग हैं। बीआरआई को एक ऐसा प्रोजेक्ट माना गया था जिसने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और एकीकरण को बढ़ावा देने का काम किया। साथ ही इसमें शामिल देशों में आर्थिक विकास की बातें भी कही गई थीं। मगर अब यह प्रोजेक्ट कई चुनौतियों में घिरा हुआ है। सबसे बड़ी चुनौतियां ऋण स्थिरता और चीन की आर्थिक मंदी हैं।मंदी की वजह से अटके प्रोजेक्ट्सचीन इस समय विकास दर में गिरावट और बढ़ते ऋण स्तर के साथ मंदी का अनुभव कर रहा है। इसकी वजह से अब विशेषज्ञ यह सवाल करने लगे हैं कि बीआरआई कितना स्थिर है और किस हद तक इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए निवेश जारी रख सकता है? चीन में आई आर्थिक मंदी की वजह से अब बीआरआई के तहत आने वाले चीनी निवेशों पर खासी नजर रखी जा रही है। वजह है बीआरआई परियोजनाओं का धीमा होना। कुछ परियोजनाओं में देरी हुई है या फिर उन्हें रोक दिया गया है।चीन नए निवेश को लेकर अधिक सतर्क हो गया है। आलोचकों ने न केवल परियोजनाओं की वित्तीय स्थिरता, बल्कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में भी चिंता जताई है। इससे चीन के लिए मेजबान देशों का समर्थन और सहयोग हासिल करना अधिक कठिन हो गया है, जो बीआरआई की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।बीआरआई बना कर्ज जालबीआरआई को इसके आलोचक सबसे बड़ा कर्ज जाल करार देते हैं। उनका कहना है कि चीन, विकासशील देशों को इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए कर्ज देता है जिसे वे चुकाने में असमर्थ हैं। आलोचकों का मानना है कि इससे कई देश चीन के कर्ज जाल में फंस जाते हैं और उस पर पूरी तरह से निर्भर हो जाते हैं। इस वजह से उनकी संप्रभुता कमजोर हो सकती है। साथ ही साथ चीन की तरफ से आर्थिक और राजनीतिक दबाव भी बढ़ सकता है। बीआरआई के सामने ऋण स्थिरता और चीन की आर्थिक मंदी सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। बीआरआई का भविष्य इन चुनौतियों से निपटने की चीन की क्षमता और इसमें शामिल सभी पक्षों को होने वाले फायदे पर निर्भर है।कई देश कर्ज चुकाने में असफलबीआरआई की वजह से कर्ज का अनुभव करने वाले देशों के उदाहरण सामने हैं। उदाहरण के लिए, श्रीलंका हंबनटोटा बंदरगाह परियोजना के लिए अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ रहा और उसे बंदरगाह का नियंत्रण 99 साल की लीज पर चीन को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा। जिबूती के संघर्ष ने भी दुनिया को दिखाया है कि किस तरह से विकासशील देश चीन के कर्ज जाल में फंस रहे हैं। चीन की वजह से पाकिस्तान का कर्ज भी बढ़ रहा है। परियोजनाओं की वित्तीय स्थिरता और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं। बीआरआई ने लाओस में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भारी निवेश किया है। इसकी उच्च लागत और पर्यावरण पर बुरे नतीजों की संभावना की वजह से इसकी आलोचना की जा रही है।