COP28 Dubai News In Hindi: India Can Make COP28 Successful To Be Held In UAE Big Opportunity In G20 Summit

सीमा जावेद, नई दिल्‍ली: भारत इस वर्ष G20 की अध्यक्षता कर रहा है, जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। साथ ही वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 80% प्रतिनिधित्व करता है। 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में आगामी G20 नेताओं का शिखर सम्मेलन इस वर्ष संयुक्‍त राष्‍ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्‍मेलन COP28 में सार्थक, व्यावहारिक और प्रभावशाली परिणामों को आकार देने के लिए महत्वपूर्ण है। यह तय करेगा कि जी20 समूह के देश ऊर्जा और वित्त, वार्ता के दो प्रमुख मुद्दों में किस बात पर सहमत हैं। दुनिया उस दोराहे पर है जहां पेरिस समझौते को सात साल हो चुके हैं और साल 2030 तक अपने उत्सर्जन पर लगाम कसने में तथा उसमें 43% कटौती करने में अभी सात साल बाकी हैं।दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक रखने के लिए 2030 तक 43% उत्सर्जन में कटौती ज़रूरी है। यह अत्यंत आवश्यक है क्योंकि जलवायु संकट नई वास्तविकता बनता जा रहा है और हम दैनिक आधार पर इसके परिणामों से निपटने के लिए मजबूर हैं। एक ऐसे वक्‍त में जब जलवायु संकट दिन-ब-दिन और गहरा रहा है , इससे निपटने के लिए सस्टेनेबिलिटी, एडेप्टेशन और मिटिगेशन सुनिश्चित करने और प्रदूषणकारी तत्‍वों के उत्‍सर्जन को कम करने के लिये उठाये जा रहे कदमों की रफ्तार बेइंतहा धीमी है।पहाड़ों से लेकर समुद्र की गहराई तक दिख रहा ग्लोबल वार्मिंग, भारत पर क्या हो रहा असर? व‍िशेषज्ञ से समझेंकार्बन से मुक्ति के लिए दुनिया को पैसे की जरूरतभारत की अध्‍यक्षता में जी20 देशों की ऊर्जा, जलवायु एवं पर्यावरण से सम्‍बन्धित बैठकें पिछले महीने पूरी हुईं। इन बैठकों में व्‍यापक मसलों का हल निकालने के लिये कड़ी मेहनत की गयी जिनसे यह तय होगा कि जी20 देशों का यह समूह क्‍या ऊर्जा और वित्‍त -दो सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं के इर्द-गिर्द खड़े मुद्दों को लेकर COP28 में किसी नतीजे तक पहुंच पाता है। वैश्विक रिन्यूबल एनेर्जी क्षमता को तीन गुना करने, जीवाश्‍म ईंधन के इस्‍तेमाल को धीरे-धीरे बंद करने, ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने और वैश्विक स्‍तर पर उत्‍सर्जन को वर्ष 2025 के बाद शीर्ष पर नहीं पहुंचने देने के लिये एक सहमति बनाने को लेकर जी20 देशों के बीच एक राय नहीं है।दरअसल, दुनिया में डीकार्बनेशन के लिए जितने धन की जरूरत है, क्या विकसित देश विकाशील देशों को उतना उपलब्ध करा पायेंगे? इसीलिए ब्‍लेंडेड फाइनेंस का सवाल खड़ा होता है। दुनिया को डीकार्बनाइजेशन के लिए पूंजी की जरूरत है। इसके लिये ब्लेंडेड कैपिटल, दानदाता संगठन और डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीटयूशन (DFI) को साथ लाकर काम करना होगा। संयुक्त राष्ट्र ने विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के लिए अधिक निवेश आकर्षित करने में सक्षम बनाने के लिए तत्काल समर्थन का आह्वान किया है।जलवायु परिवर्तन की करारी मार, भारत अब नहीं रहा धान का कटोरा, दुनिया में मचा हुआ है हाहाकारभारत निभा सकता है बड़ी भूमिकासाल 2030 तक जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए विकासशील देशों में टिकाऊ ऊर्जा प्रणालियों में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही यह ही सऊदी अरब में 30 नवंबर से 12 दिसंबर के बीच होने जा रही आगामी COP28 की सफलता की कुंजी है। विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कम जिम्‍मेदार हैं लेकिन इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतते हैं। भले ही क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते में अधिक वित्तीय संसाधनों वाले विकसित देशों से आर्थिक कठनाइयों से जूझ रहे गरीब, अधिक असुरक्षित और विकासशील देशों को वित्तीय सहायता देने का आह्वान किया। लेकिन जलवायु वित्त के माध्यम से विकासशील देशों को बहुत कम और अपर्याप्त सहायता मिली है। COP27 में जलवायु वित्त पर परिभाषात्मक स्पष्टता की कमी के कारण विफल वादों के लिए कोई जवाबदेही नहीं बची है।अब अगले महीने आयोजित होने जा रहे जी20 शिखर सम्‍मेलन में भारत के पास वित्‍तीय सुधारों में आसानी पैदा करने वाला देश बनने का मौका है। बशर्ते वह वित्‍त के उपयोग को बढ़ाने और उसका प्रावधान कराने से सम्‍बन्धित किसी समझौते को सामने लाने में निर्णायक भूमिका निभा सके। भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि जी20 देश जलवायु महत्वाकांक्षा में वृद्धि की दिशा में आगे बढ़ें। संभवत: भारत अब अपनी बात को ज्यादा व्यापक फलक तक पहुंचाने में निश्चित रूप से सक्षम हो चुका है। जी20 सम्‍मेलन निकट भविष्‍य में होने वाली सीओपी28 शिखर बैठक में वैश्विक मुद्दों की पहचान की दिशा में काम करने के लिए अच्छी स्थितियां प्रदान करेगा।सीमा जावेद, लेखिका वरिष्‍ठ स्‍तंभकार हैं और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर लिखती रहती हैं।