नई दिल्ली/सीमा जावेद: प्रशांत महासागर में कभी गर्म और कभी ठंडे पानी के कारण पड़ने वाले अल-नीनो एवं ला-नीना (El Nino and La Nina) का असर ना सिर्फ़ एशियाई मौसम बल्कि मॉनसून व बारिश पर भी पड़ता है। लेकिन भारत में पिछली सदी के दौरान इन दोनों के रिश्तों के रंग बदल चुके हैं। पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के वैज्ञानिक रोक्सी मैथ्यू कोल की अगुवाई में साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार उत्तरी, मध्य और दक्षिण भारत में अल नीनो और मॉनसून के आपसी रिश्तों में उल्लेखनीय बदलाव है, जिसमें पाया गया कि समय बीतने के साथ अल नीनो और ला नीना के बीच व्यवहार में एक नया बदलाव आया है।इस नये अध्ययन में पता चला है कि पिछले कुछ दशकों में उत्तर भारत के मॉनसून पर अल नीनो और ला नीना प्रभाव ‘असामान्य रूप से शाक्तिशाली’ हुआ है जबकि मध्य भारत क्षेत्र में यह कमजोर हुआ है। यह एक बड़ा महत्वपूर्ण बदलाव है क्योंकि इन क्षेत्रों में कृषि मौसमी बारिश पर निर्भर है। बीसवीं सदी के पहले 40 वर्षों में (1901 से 1940 तक) यह मज़बूत हुआ और फिर अगले 40 साल यानी 1980 तक स्थिर रहा और उसके बाद कमजोर हुआ है।शोधकर्ताओं ने पाया कि जहां दक्षिण भारत में अल नीनो-मॉनसून संबंध मध्यम रूप से मजबूत और स्थिर रहा, वहीं इसी दौरान उत्तर भारत में यह अप्रत्याशित रूप से ज्यादा मजबूत हो गया। इसके अलावा हाल के दशकों में मध्य भारत के क्षेत्रों (कोर मॉनसून जोन) में यह सम्बन्ध उल्लेखनीय रूप से कमजोर और अस्तित्वहीन हो गया है।क्या है अल-नीनो और ला-नीनासामान्य परिस्थितियों के दौरान, ट्रेड विंड्स भूमध्य रेखा के साथ पश्चिम की ओर बहती हैं, जो समुद्र के गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं। उस गर्म पानी को सामान्य करने के लिए, ठंडा पानी गहराई से ऊपर आता है। यह नेचुरल प्रक्रिया ही अल-नीनो और ला-नीना जैसे दो विपरीत जलवायु पैटर्न को जन्म देती है। जब यह ट्रेड विंड्स सशक्त होती हैं तो ज्यादा गर्म पानी एशिया की तरफ खींच कर लाती है। जिसको ठंडा करने के लिए समुद्र की गहराई से ज़्यादा ठंडा पानी ऊपर खींच कर आता है। इसे वैज्ञानिक अल-नीनो के नाम से बुलाते हैं। इसके चलते वातावर्ण में एक कूलिंग प्रभाव बनता है। वहीं इसके विपरीत जब यह ट्रेड विंड्स कमजोर होती हैं तो यह बहुत कम मात्रा में गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं। इसके चलते समुद्र की गहरायी से ठंडा पानी ऊपर नहीं आता और यह एक गर्म प्रभाव को जन्म देता है, जिसे ला नीना के नाम से जाना जाता है।मॉनसून और अल-नीनो का रिश्ताभारतीय मॉनसून में समय के साथ उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। मॉनसून के साल-दर-साल उतार-चढ़ाव काफी हद तक प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में होने वाले उतार-चढ़ाव से नियंत्रित होते हैं। प्रशांत महासागर में इन दोलनों पर मध्य-पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में गर्म और ठंडे पानी के चरणों यानी अल नीनो और ला नीना का दबदबा होता है। इन्हें अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ENSO) के रूप में जाना जाता है। आमतौर पर अल नीनो प्रभाव की वजह से प्रशांत क्षेत्र में बहने वाली ट्रेड विंड्स कमजोर होती हैं। ये हवाएँ भारत में नमी से भरी मॉनसूनी हवाओं से जुड़ी होती हैं। इस तरह मॉनसून यह को भी धीमा कर देती हैं, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा कम हो जाती है। ऐतिहासिक रूप से, अल नीनो के कम से कम आधे वर्ष मॉनसून के लिहाज से सूखे थे।कब-कब बदला इस रिश्ते का रंगभारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर ENSO प्रभाव हर जगह एक समान नहीं रहता। ENSO और मॉनसून के बीच संबंध वर्ष 1901 से लेकर अब तक एक ही जैसा नहीं रहा है। शोधकर्ताओं ने यह पाया कि ENSO और मॉनसून का आपसी संबंध वर्ष 1901 से 1940 के बीच मजबूत होता गया। वर्ष 1941 से 1980 तक यह स्थिर रहा और उसके बाद हाल की अवधि (1981 और उसके बाद) में यह कमजोर हुआ है।ENSO और मॉनसून के संबंधों में यह बदलाव क्षेत्रीय स्तर पर एक समान नहीं है। दक्षिण भारत के क्षेत्र में ENSO-मॉनसून संबंधों पर कोई भी उल्लेखनीय बदलाव नजर नहीं आता। वहीं, उत्तर भारत में हाल के दशकों में यह संबंध और मजबूत हो रहा है। इसके विपरीत मध्य भारत में ENSO और वर्षा का संबंध हाल के वर्षों में बहुत कमजोर हुआ है। मॉनसूनी बारिश पर मॉनसून ट्रफ की मजबूती तथा उनकी वजह से मॉनसूनी डिप्रेशन (दबाव) में होने वाले बदलाव का भी असर पड़ता है। मॉनसून ट्रफ और दबाव संबंधी विभिन्नता मध्य भारत में वर्षा की तर्ज में भिन्नता के मुख्य कारण के तौर पर उभर कर सामने आई है और यह ENSO के दबदबे से आगे निकल गयी है।दक्षिण भारत में वर्षा के लिए ENSO का प्रभाव और मॉनसून ट्रफ तथा दबाव की तीव्रता संपूर्ण अवधि के दौरान निरंतरता भरी रही। उत्तर भारत पर वर्षा की तर्ज में भिन्नता ईएनएसओ पर पहले से ज्यादा निर्भर हो गई है। वहीं, मॉनसून ट्रफ और दबाव की भूमिका कम हो रही है। हो सकता है कि मॉनसून की तीव्रता में यह गिरावट हिंद महासागर के गर्म होने और हाल के दशकों में उत्तर भारत के क्षेत्र में मॉनसून के डिप्रेशन की कमजोर होती पहुंच के चलते आ रही हो।सीमा जावेद, लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं जो पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लिखती रहती है।