नई दिल्ली/काबुलअफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद इस देश के भविष्य को लेकर काफी अटकलें लगाई जा रही हैं। कई लोगों का मानना है कि इससे तालिबान को मजबूती मिलेगी और वह फिर से अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी कर सकता है। वहीं, कई का यह भी कहना है कि अफगान सरकार पर जबतक अमेरिका का हाथ बना रहा, तबतक तालिबान सत्ता पर काबिज नहीं हो सकता है। इन सभी अटकलों के बीच भारत के पूर्व राजदूत योगेश गुप्ता ने अफगानिस्तान में तालिबान, पाकिस्तान, अमेरिका और भारत की भूमिका को लेकर विस्तार से जानकारी दी है।50 से अधिक जिलों पर तालिबान का नियंत्रणउन्होंने बताया कि 2020 की शुरुआत में अमेरिकी सैनिकों की वापसी की आहट ने ही तालिबान को अफगानिस्तान पर पूर्ण कब्जे के लिए प्रोत्साहित किया है। जिसके बाद से तालिबान ने अपने सशस्त्र अभियान को तेज कर दिया है। कुछ अनुमानों के अनुसार, मई 2021 तक तालिबान ने अफगानिस्तान के 50 से अधिक जिलों पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने अफगानिस्तान के चार प्रमुख शहरों को भी घेरा हुआ है। सेना नहीं संभाल सकती देश की सुरक्षादेश की सुरक्षा की बागडोर संभालने वाली अफगान नेशनल आर्मी और पुलिसबल कमजोर मनोबल, भ्रष्टाचार से जूझ रही है। काबुल से मिलने वाली सहायता में कमी के कारण सुरक्षाबलों ने पहले ही तालिबान के सामने आत्मसमर्पण किया हुआ है। जो बचे हैं, वे तालिबान के आत्मघाती कार बम और आईईडी हमलों का सामना करने में असमर्थ हैं।इस्लामिक शासन स्थापित करना चाहता है तालिबानतालिबान अपने नियंत्रण का विस्तार करने और फिर ताकतवर बनने के दृढ़ संकल्पित हैं। वे अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात को स्थापित करना अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं। अभी तक उन्होंने कोई वास्तविक सरकार बनाने में अपनी रूचि नहीं दिखाई है। अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और वरिष्ठ नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला वर्तमान में राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलने के लिए अमेरिका के दौरे पर हैं। वे अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी में देरी करने के लिए बाइडन को मना रहे हैं। बाइडन प्रशासन ने भी संकेत दिया है कि वे अफगान सरकार को राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान करना जारी रखेंगे। काबुल पर कब्जा कर सकता है तालिबानऐसे में अफगानिस्तान का भाग्य अब अपने ही लोगों के हाथों में होगा। अमेरिकी एयर सपोर्ट, सलाहकारों और हथियारों के अभाव में ऐसी संभावना है कि राजधानी काबुल थोड़े समय में तालिबानों के हाथ में आ जाएगा। हालांकि, अफगान राष्ट्रपति अधिक आशावादी बने हुए हैं। अगर ईरान, रूस और अन्य देशों द्वारा समर्थित हजारा, ताजिक और उजबेक नेताओं जैसे अन्य जातीय समूह तालिबान के खिलाफ सक्रिय रूप से लड़ते हैं, तो अफगानिस्तान में गृह युद्ध लंबा खिंच सकता है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान गठजोड़पाकिस्तान, अफगानिस्तान में अपना दोहरा खेल जारी रखे हुए है। वह कहता कुछ और है और जमीन पर कुछ और ही करता है। पाकिस्तान के पीएम इमरान खान का कहना है कि उनका देश अफगानिस्तान के किसी भी सैन्य सरकार का विरोध करता है, लेकिन पाकिस्तान की सेना तालिबान का गुपचुप समर्थन जारी रखे हुए है। पाकिस्तान ने तालिबानों और उनके परिवारों को सुरक्षित पनाहगाह, हथियार, प्रशिक्षण और सैन्य सहायता प्रदान की है। इसके बिना, तालिबान अफगानिस्तान की सेना को हराने और देश पर कब्जा करने में सफल नहीं हो सकते।तालिबान आतंकियों की संख्या 60000 से 80000 होने का अनुमान है, जो एएनए की लगभग 350000 की संख्या से बहुत कम है। विशेष रूप से बलूचिस्तान में पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों का उपयोग अमेरिकियों को करने की अनुमति देने पर पाकिस्तान और तालिबान नेताओं के बीच कुछ मतभेदों की खबरें आई हैं। पाकिस्तान सरकार ने आधिकारिक तौर पर इन ठिकानों के उपयोग की अनुमति देने से इनकार कर दिया है, लेकिन तालिबान ने एक बयान जारी किया है जिसमें पाकिस्तान (पाकिस्तान का नाम लिए बिना) को इस तरह का समर्थन प्रदान करने की आलोचना की गई है।अफगानिस्तान में भारत की भूमिकाभारत ने अफगानिस्तान को प्रोफेशनल्स, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, ट्रांसपोर्ट और सिक्योरिटी के लिए बड़ी आर्थिक सहायता प्रदान की है। भारतीय बाजारों में अफगान उत्पादों के शुल्क मुक्त पहुंच ने इस देश को और मजबूत बनाने में मदद की है। 2018-19 में भारत और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 1.5 अरब डॉलर का था। भारत अफगानिस्तान में भारत एक व्यापक आधार वाली प्रतिनिधि सरकार की स्थापना चाहता है। जो शांति, स्थिरता और समावेशी शासन प्रदान कर सके और यह सुनिश्चित कर सके कि पिछले 20 वर्षों की प्रगति सुरक्षित है। भारत तालिबान सहित अफगानिस्तान के सभी प्रमुख पक्षों के संपर्क में है। यह अफगान लोगों के समर्थन और संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य देशों के सहयोग से उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।(योगेश गुप्ता पूर्व राजदूत हैं।)