मेलबर्न: भारत की राजधानी नयी दिल्ली में इस सप्ताहांत होने जा रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में रूस और चीन के राष्ट्राध्यक्ष शामिल नहीं हो रहे हैं । लेकिन उनकी अनुपस्थिति और यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेद का बड़ा असर पूरे सम्मेलन पर देखने को मिलेगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे, लेकिन सम्मेलन पर उनके और रूस-यूक्रेन युद्ध का असर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनुपस्थिति से भी अधिक होने की आशंका है। विश्व नेताओं के नौ-10 सितंबर को होने जा रहे शिखर सम्मेलन के लिए नयी दिल्ली में एकत्र होने की तैयारियों से महज कुछ दिन पहले, खबर आई कि चीन के राष्ट्रपति ने इस सम्मेलन में शामिल नहीं होने का फैसला किया है।जिनपिंग की अनुपस्थिति निस्संदेह वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों पर प्रगति को बाधित करेगी। हालांकि, जी-20 सम्मेलन में पुतिन और यूक्रेन में युद्ध के मुद्दे के हावी होने से पहले संगठन के समक्ष पहले से लंबित जरूरी मुद्दों पर प्रगति में बाधा उत्पन्न होने की आशंका है। सदस्य के तौर पर रूस का यह कदम कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन जी20 की संरचना – जिसमें पश्चिमी देश और वैश्विक दक्षिण यानी ग्लोबल साउथ के प्रमुख देश शामिल हैं – ने संगठन के लिए प्रभावी ढंग से कार्य करना और भी कठिन बना दिया है। ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। जी-20, नेताओं के दो दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन से कहीं अधिक अहम है।भारत बनाम इंडिया की बहस में कूदा चीन का ग्लोबल टाइम्स, जी20 पर दिया ज्ञान, अपने कर्म भूल गया ड्रैगनरूस और यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर बंटे हुए हैं जी 20 देशइसका अधिकांश कार्य पृष्ठभूमि में, तकनीकी जानकारों और नीति निर्माताओं के नेटवर्क के माध्यम से होता है, जो समस्याओं को हल करने के तरीके ढूंढ सकते हैं, भले ही उनके नेताओं के बीच संबंध खराब हो जाएं। चल रहे संघर्ष के मुद्दे के अलावा भी इस साल जी-20 के एजेंडे में कई अन्य मुद्दे हैं। वैश्विक मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है, और विकास गति धीमी और ऐतिहासिक रुझानों से कम है। चीन की आर्थिक वृद्धि में कमी, अपस्फीति (डिफ्लेशन) और आवास बाजार संकट की अपनी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसका बाकी दुनिया पर अहम प्रभाव पड़ सकता है। कई अर्थव्यवस्थाएं कर्ज संकट से जूझ रही हैं। दुनिया के लगभग आधे विकासशील देशों को तत्काल वित्तीय सहायता की आवश्यकता है क्योंकि महामारी का उनपर नकारात्मक असर पड़ा है।ये वे मुद्दे हैं जिनपर जलवायु परिवर्तन या सतत विकास जैसे दीर्घकालिक मुद्दों पर विचार करने से पहले बात की जानी है। दोनों मोर्चों पर प्रगति तय समय से पिछड़ रही है। वास्तव में जी20 इन्हीं मुद्दों से निपटने के लिए बनाया गया था। यह दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार में 75 प्रतिशत और दुनिया की आबादी में दो-तिहाई कर योगदान करते हैं। दुनिया में जो वैश्विक शासन है वह जी-20 है। सहमति के लिए संघर्ष रूस और यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर, जी-20 के भीतर तीन अलग-अलग गुट हैं। पहला, रूस है, जिसने जी20 में युद्ध पर चर्चा की वैधता को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि एक आर्थिक निकाय के रूप में सुरक्षा मामलों पर विचार करना उसका कोई काम नहीं है। जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है, चीन के रुख भी बदलाव आ रहा है क्योंकि वह रूस के करीब आ रहा है।ब्रिक्स में शामिल होने वाले चीनी राष्ट्रपति जी20 में नहीं आएंगे भारत, दोनों देशों में बढ़ चुकी है खाई? समझें संकेतभारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या अपनाया रास्तादूसरा गुट पश्चिमी देशों का है जिन्होंने शुरू में रूस को संगठन से निष्कासित करने के लिए जी20 पर दबाव बनाया था जिसका संगठन में कोई प्रावधान नहीं है। इन देशों ने यह नहीं होने पर इस बात पर जोर दिया है कि वह रूस और यूक्रेन पर हुए हमले की कड़े शब्दों में निंदा करे। अंतत: तीसरा एवं सबसे बड़ा गुट वैश्विक दक्षिणी देशों का है जो इस पूरे संघर्ष से तटस्थ रहने क कोशिश कर रहे हैं। इस गुट के देश युद्ध के परिणामों के बारे में अधिक चिंतित हैं, जिसमें भोजन और ऊर्जा की कीमतों पर इसका प्रभाव भी शामिल है, जो विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करता है। इन अंतरों के साथ जी20 को आम सहमति तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। इस वर्ष के अध्यक्ष भारत द्वारा आयोजित कोई भी मंत्री-स्तरीय बैठक सामान्य विज्ञप्ति के साथ समाप्त नहीं हुई है जो चर्चा किए गए विषयों पर समूह की आम सहमति का सारांश देती है।इसके बजाय, भारत ने ‘अध्यक्ष का सारांश और परिणाम’ दस्तावेज़ जारी किए हैं जो केवल चर्चाओं का सारांश बताते हैं और असहमतियों को नोट करते हैं। नयी दिल्ली में आयोजित होने जा रहे शिखर सम्मेलन से पहले, राजनयिक फिर से अंतिम विज्ञप्ति के लिए शब्दों का चयन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ताकि उसे सभी पक्षों द्वारा स्वीकार किया जाए। लेकिन जी-20 के इतिहास में पहली बार ऐसा करने में विफल होने की आशंका दिख रही है। प्रगति के संकेत इन असहमतियों के बावजूद जी20 कुछ मुद्दों पर प्रगति करने में कामयाब रहा है। जी20 बैठकें उन मुख्य मंचों में से एक रही हैं जिनके माध्यम से बहुपक्षीय विकास बैंकों के सुधार पर चर्चा की गई है। प्रस्तावों में विश्व बैंक और अन्य विकास बैंकों की आंतरिक नीतियों में सुधार करना शामिल है ताकि उन्हें अधिक पूंजी उधार लेने और रियायती दरों पर उधार देने की अनुमति मिल सके, विशेष रूप से जलवायु परियोजनाओं के लिए। साथ ही अग्रणी देशों द्वारा वित्त पोषण में वृद्धि का मुद्दा भी शामिल है।जी-20 ने बातचीत को जारी रखने में साबित की उपयोगिताअमेरिका ने हाल ही में अपने अंशदान में 50 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि करने का वादा किया है। उसने अपने सहयोगियों से कुल मिलाकर 200 अरब डॉलर तक अंशदान बढ़ाने का आह्वान किया है। हालांकि शिखर सम्मेलन में सुधारों को अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा, लेकिन जी-20 ने बातचीत को जारी रखने और आगे बढ़ाने के मामले में खुद को एक उपयोगी मंच साबित किया है। पिछले दो वर्षों में, जी-20 की अध्यक्षता विकासशील देशों इंडोनेशिया और भारत ने की है। अपनी तटस्थता के कारण, जब ये देश पश्चिम और रूस के बीच गतिरोध को दूर करने का प्रयास करते हैं तो उनकी विश्वसनीयता अधिक होती है। अगले दो मेजबान दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील हैं जिनका झुकाव समान है और उम्मीद है कि जी-20 में चल रहीं कोशिशें जारी रह सकती है। भले ही जटिल वैश्विक समस्याएं समाधान करने की क्षमता से परे साबित हों। बंटी हुई दुनिया में यह सर्वोच्च उपलब्धि हो सकती है जिसे हासिल किया जा सकता है।(टॉम शोडर, मोनाश विश्वविद्यालय, मेलबर्न)