India vetoed Alegeria’s entry into BRICS at the request of France दोस्‍त भारत की मदद से फ्रांस ने लिया अल्‍जीरिया से बदला, पीएम मोदी की एक चाल से फेल हो गया चीन का दांव

पेरिस: भारत और फ्रांस, अब दोनों देश एक मजबूत गठबंधन के तौर पर उभर रहे हैं। दोनों देशों की दोस्‍ती दिन पर दिन और गहरी होती जा रही है। इस दोस्‍ती का नमूना ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में भी देखने को मिला। फ्रांस यूं तो इस संगठन का सदस्‍य नहीं है लेकिन इसका असर दक्षिण अफ्रीका के जोहान्‍सबर्ग में भी महसूस किया गया। यहां पर भारत ने अपनी दोस्‍ती की मिसाल पेश की और अल्‍जीरिया की एंट्री को ब्‍लॉक कर दिया। एशिया की राजनीति पर नजर रखने वाली वेबसाइट द क्रडाल की एक रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो फ्रांस के अनुरोध पर भारत ने उत्तरी अफ्रीकी देश अल्‍जीरिया के खिलाफ अपनी वीटो पावर का प्रयोग किया। ऐसे में अल्‍जीरिया को संगठन में शामिल नहीं किया जा सका।टूट गया अल्‍जीरिया का दिलअल्जीरिया पिछले काफी समय से ब्रिक्‍स में शामिल होने का इंतजार कर रहा था। अल्जीरिया की दजायर ट्यूब ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि फ्रांस की इंटेलीजेंस एजेंसी ने ब्रिक्‍स सम्मेलन से पहले अपने भारतीय समकक्षों से संपर्क किया था। फ्रांस ने भारत से अल्जीरिया के संगठन में प्रवेश को रोकने की रिक्‍वेस्‍ट की थी। उसका मदद इस कदम का मकसद सहेल क्षेत्र में अल्जीरिया के बढ़ते प्रभाव को रोकना था। साथ ही चीन और अल्‍जीरिया के बीच भी संबंध मजबूत हो रहे हैं। फ्रांस नहीं चाहता था कि उसकी कीमत पर अल्‍जीरिया, अपने क्षेत्र में चीन को मजबूत करे। इस कदम को फ्रांस का अल्‍जीरिया से लिया हुआ एक तरह का बदला करार दिया जा रहा है।फ्रांस और अल्‍जीरिया में टेंशनपेरिस और अल्जीरिया के बीच नाइजर में तख्‍तापलट के बाद से तनाव बढ़ गया है। नाइजर में हुआ तख्‍तापलट सहेल क्षेत्र में पश्चिम विरोधी आंदोलन का ताजा उदाहरण है। तब से, अल्जीरिया ने नाइजर में इकोवास (ECOWAS) के सैन्य अभियान का विरोध किया है। साथ ही देश ने संकट के शांतिपूर्ण समाधान में बातचीत की भूमिका पर जोर दिया है। इसके अलावा उसने फ्रांस के सैन्य विमानों को अल्जीरियाई हवाई क्षेत्र में उड़ने की अनुमति नहीं दी है। फ्रांस की इस साजिश का खुलासा दक्षिण अफ्रीका में शिखर सम्मेलन में हुआ।भारत के लिए एक मौकाक्रडाल मैगजीन ने लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैनुएल मैंक्रो के अनुरोध में एक मौका देखा। बताया जा रहा है कि अधिकारियों को पश्चिमी मदद की पेशकश की गई थी ताकि फ्रांस के पूर्व उपनिवेशों के तौर पर छोड़ी गई इन जगहों में भारत अपने प्रभाव को बढ़ा सकें। फ्रांस ने दशकों से भारत की सरकारों के साथ संबंध मजबूत रखे हैं। सन् 1998 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किए तो उस समय संयुक्त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में फ्रांस अकेला देश था जिसने भारत का समर्थन किया था। इसके बाद जब साल 2019 में कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्‍म किया गया तो भी संयुक्त राष्‍ट्र में फ्रांस ने इस कदम का समर्थन किया। इसके अलावा भारत के साथ हुए कई रक्षा समझौतों की मदद से भी दोनों देश काफी करीब हुए हैं।