बीजिंग: दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में सबकी नजरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच होने वाली मुलाकात पर टिकी होंगी। दशकों से, चीन ने भारत को एक ऐसे देश के तौर पर देखा है जो भू-राजनीति में तेजी से उभर रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो चीन भारत को एक ऐसे देश के तौर पर देखता है जिसे कभी-कभार सैन्य और कूटनीतिक सबक के जरिए दबाकर रखा जा सके। ब्रिक्स में पीएम मोदी और जिनपिंग मिलेंगे या नहीं, यह तो आने वाले कुछ दिनों में पता चल जाएगा।पीएम मोदी और जिनपिंग की मीटिंग!विदेश नीति के जानकरों की मानें तो चीन को यह बात समझनी होगी कि भारत एक उभरती हुआ शक्ति है। वहीं उसके उदय और तरक्की पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। ब्रिक्स के बाद जी-20 एक बड़ा सम्मेलन है जिसकी मेजबानी इस बार भारत कर रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब जी-20 सम्मेलन के लिए आएंगे तो भी उनकी मुलाकात पीएम मोदी से होगी। जानकारों की मानें तो दोनों नेताओं के बीच होने वाली बैठकें, व्यावहारिक और कूटनीतिक शिष्टाचार से रहित होंगी क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर टकराव जारी है। जब शी, नौ सितंबर, 2023 को जी20 के प्रमुखों के शिखर सम्मेलन के लिए नई दिल्ली में पहुंचेंगे, तो उनका सामना एक नई वास्तवकिता से होगा।क्या दक्षिण अफ्रीका में होगा पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग का हैंडशेक, ब्रिक्स सम्मेलन पर सबकी नजरेंचीन को नहीं मिलेगा किसी का साथचीन के आर्थिक विकास पर ब्रेक लग गया जोकि अस्थायी नहीं है। चीन के चार सुनहरे दशक, जब जीडीपी विकास साल में अक्सर 10 फीसदी से ज्यादा हो जाती थी, अब खत्म हो चुके हैं। लेकिन धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था ही जिनपिंग के लिए चिंता का अकेला विषय नहीं है। चीन को इसके साथ ही अमेरिकी से मिलती चुनौती को भी झेलना पड़ रहा है। जी20 शिखर सम्मेलन में, दुनिया के सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से छह शी के खिलाफ खड़े होंगी- अमेरिका, जापान, जर्मनी, भारत, ब्रिटेन और फ्रांस। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शी के लिए मौजूद नहीं होंगे। जबकि बाकी जैसे सऊदी अरब के मोहम्मद बिन-सलमान और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा अपनी मौजूदगी को मजबूत करने में लग जाएंगे।भारत की रणनीति के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका, ब्रिक्स के विस्तार पर किया चीन का समर्थनक्या टूट जाएगा जिनपिंग का सपनाविशेषज्ञों का कहना है कि जिनपिंग जानते हैं कि चीन बूढ़ा हो रहा है। इसका सार्वजनिक ऋण जीडीपी का 282 फीसदी से ज्यादा है। साल 2012 में जब जिनपिंग राष्ट्रपति बने, तो चीन की शानदार वृद्धि के पांच साल का मौका खत्म हो गया। साल 2006 में, चीन की जीडीपी 2.75 ट्रिलियन डॉलर थी। साल 2011 में यह जीडीपी तीन गुना बढ़कर 7.55 ट्रिलियन डॉलर हो गई। जिनपिंग का लक्ष्य है कि वह साल 2049 तक चीन को दुनिया की अग्रणी महाशक्ति बनाया जाए। यह कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की शताब्दी वर्ष है। जिनपिंग को मालूम है कि उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए चीन को पहले एशिया में एक अद्वितीय क्षेत्रीय शक्ति बनाना है।भारत कमजोर नहींभारत ने कूटनीति के जरिए यह बात चीन को समझा दी है कि उसकी स्थिति कमजोर नहीं है। इसलिए जिनपिंग भारत पर दूसरे तरीकों से दबाव डालने की कोशिशों में हैं। जून 2020 में गलवान हिंसा चीन के लिए बड़ा झटका थी। एलएसी में भारत की मजबूती सैन्य तैयारियों ने चीन को चौंका दिया था। चीन को लगता था कि भारत जो तिब्बत और ताइवान पर हमेशा शांत रहता है, इस बार भी चुप रहेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, साल 2022-23 में भारत की जीडीपी क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर 13,033 डॉलर थी, जबकि चीन की 33,014 डॉलर थी। अब यह अंतर ढाई गुना है। साफ है कि भारत की जीडीपी चीन की जीडीपी की औसत वार्षिक दर से दोगुना बढ़ रही है।