इंडोनेशिया में अपने अरबों रुपये के सोने के खजाने के लिए मशहूर साम्राज्य का पता चल गया है। ‘सोने का द्वीप’ कहे जाने वाला यह साम्राज्य देश के सुमात्रा इलाके में पाया गया है। पिछले 5 साल से पालेमबांग के पास मछुआरे घड़ियालों से भरे मूसी नदी में खजाने की तलाश कर रहे थे। अब नदी की गहराई से एक मछुआरे के हाथ सोने का अनमोल खजाना हाथ लगा है। इसमें सोने की रिंग, सिक्के और भगवान बुद्ध की अद्भुत प्रतिमा हाथ लगी है। बताया जा रहा है कि यह मूर्ति 8 शताब्दी की है और इसकी कीमत करोड़ों रुपये है। इस मूर्ति के ऊपर कई अनमोल पत्थर लगाए गए हैं जिससे इसकी कीमत बहुत ज्यादा है। इस साम्राज्य का भारत से बेहद करीबी नाता था। आइए जानते हैं ‘पानी पर बसने वाले’ इस महान साम्राज्य की पूरी कहानी….धरती का अंतिम सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था श्रीविजयाविशेषज्ञों के मुताबिक ये कलाकृतियां श्रीविजया सभ्यता की हैं। इस साम्राज्य ने 7वीं से लेकर 13वीं शताब्दी के बीच में शासन किया था और बहुत ही शक्तिशाली माना जाता था। हालांकि एक सदी बाद यह रहस्यमय तरीके से गायब हो गया। ब्रिटिश पुरातत्वविद डॉक्टर सीन किंग्स्ले ने डेलीमेल को बताया कि श्रीविजया साम्राज्य का पता लगाने के लिए महान खोजकर्ताओं ने थाइलैंड से लेकर भारत तक में इसकी तलाश कर डाली थी। हालांकि उनके हाथ निराशा लगी थी।’ उन्होंने कहा कि अब तक जिसे नष्ट हुए साम्राज्य का परंपरागत पता माना जाता था, उस पालेमबैंग से भी पुरातत्वविद पर्याप्त पुरावशेष नहीं इकट्ठा कर सके। डॉक्टर सीन ने कहा कि धरती के इस अंतिम सबसे शक्तिशाली साम्राज्य ने अपने रहस्यों को पूरी तरह से छिपाकर रखा हुआ था। इस साम्राज्य की राजधानी में ही 20 हजार सैनिक रहते थे। इसके अलावा एक हजार बौद्धभिक्षु भी वहां रहते थे।प्राचीन काल में सुमात्रा को कहा जाता था ‘सोने का द्वीप’डॉक्टर सीन के मुताबिक पिछले 5 साल से असाधारण चीजें मिल रही हैं। सभी कालखंडों के सिक्के, सोना, बुद्ध की मूर्ति, अनमोल रत्न आदि मिल रहे हैं। प्राचीन काल में सुमात्रा को ‘सोने का द्वीप’ का कहा जाता था। इसकी वजह यह थी कि यहां पर सोने के भंडार और प्राकृतिक संसाधन पाए जाते थे। यह दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार के लिए आगमन का शुरुआती केंद्र था। छठवीं और सातवीं शताब्दी में एशियाई समुद्री व्यापार में काफी तेजी आई और चीन का विशाल बाजार खुल गया। बौद्ध परंपरा की भारी मांग के कारण चीन को इंडोनेशिया से भारी मात्रा में निर्यात होने लगा था। डॉक्टर सीन कहते हैं कि सोने और रत्नों की खोज के अलावा नदी की तलहटी में कई टन चीनी सिक्के मिले हैं। इसके अलावा डूबे हुए जहाजों से चीनी मिट्टी के काफी बर्तन मिले हैं। श्रीविजया साम्राज्य में सामानों का आयात भारत और फारस से किया जाता था। नदी के पानी पर बसता था यह अद्भुत साम्राज्यश्रीविजया काल में मंदिर कांसे के बनाए जाते थे और उनके अंदर बौद्ध मूर्तियां सोने की होती थीं। इनके दरवाजों पर राहू का धड़ लगाया जाता था और इंद्र के वज्र की तरह से भी एक पुरावशेष मिला है। तलवार पर लगी सोने की मुठिया, सोने की सैकड़ों रिंग, प्रतीक, सोने के हार आदि इस स्थल से मिले हैं। डॉक्टर सीन ने बताया कि यह अद्भुत साम्राज्य पानी पर रहता था और नदी ही उनका घर थी। उन्होंने कहा कि 14वीं सदी में इस सभ्यता का अंत हो गया। लकड़ी के बने घर, महल और मंदिर सभी उनके सामानों के साथ नदी में डूब गए। अपने साम्राज्य के चरम पर श्रीविजय साम्राज्य समुद्री सिल्क रोड पर नियंत्रण करता था। यहां एक विशाल बाजार था जिसमें स्थानीय, चीनी और अरब से आने वाले सामानों का व्यापार होता था। करीब 300 साल तक श्रीविजया साम्राज्य का सिल्क रोड पर दबदबा बना रहा। इसी वजह से इस साम्राज्य ने काफी संपदा इकट्ठा कर लिया। इस साम्राज्य की आबादी कितनी थी, अभी इसका पता नहीं चल पाया है। श्रीविजया साम्राज्य का भी पोम्पई जैसे हुआ खात्मा?श्रीविजया साम्राज्य का अंत कैसे हुआ, यह अभी भी भी दुनिया के लिए रहस्य बना हुआ है। डॉक्टर सीन ने कहा कि मुझे आश्चर्य नहीं होगा कि यूरोप के पोम्पई की तरह से ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से श्रीविजया साम्राज्य का अंत हो गया हो। उन्होंने कहा कि यह भी हो सकता है कि नदी में भीषण बाढ़ की वजह से इस साम्राज्य का खात्मा हो गया हो। अभी तक नदी में कई बार गोता लगाने के बाद भी कई सवालों का जवाब मिलना बाकी है। इस नदी से मिली कलाकृतियों को स्थानीय व्यापारियों को बेच दिया गया है जिससे उनकी ठीक-ठीक तरीके से जांच नहीं हो पाई है। डॉक्टर सीन ने कहा कि ये कलाकृतियां अब दुनिया में खो गई हैं। इसमें रत्नों से जड़ी भगवान बुद्ध की मूर्ति भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच दी गई है। उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि इतने पुरावशेष मिलने के बाद भी श्रीविजया साम्राज्य के बारे में नई जानकारी नहीं मिल पाई।