टोक्यो: छह अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा ने पहला परमाणु बम झेला था। अमेरिका की तरफ से हुए इस हमले में करीब 140,000 लोग मारे गए थे। हमले के 78 साल बाद आज दुनिया फिर रूस यूक्रेन जंग की वजह से परमाणु हमले की खतरे की तरफ बढ़ रही है। हमले की 78वीं बरसी पर जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने रूस पर जमकर भड़ास निकाली है। हिरोशिमा में आयोजित एक कार्यक्रम में किशिदा ने रूस और पूरी दुनिया को याद दिलाया है कि जापान दुनिया का इकलौता देश है जिसने इन हमलों का दर्द झेला है।कुछ लोगों की वजह से रास्ता मुश्किलद्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने के कुछ दिन पहले जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों ने दुनिया को हिलाकर रख दिया था। पीएम किशिदा ने कहा, ‘ जापान, युद्ध में परमाणु बमबारी झेलने वाला इकलौता देश था और इस वजह से परमाणु मुक्त दुनिया की दिशा में प्रयास जारी रखेगा।’ उन्होंने आगे कहा, ‘परमाणु निरस्त्रीकरण और रूस के परमाणु खतरे की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में गहराते मतभेदों की वजह से इस दिशा में रास्ता कठिन होता जा रहा है।’ किशिदा का कहना था कि इस स्थिति को देखते हुए, परमाणु मुक्त दुनिया को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ाना होगा और यह आज के समय में और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है।रूस ने दी है धमकीकिशिदा, हिरोशिमा के ही रहने वाले हैं। उनका कहना था कि परमाणु हथियारों से हिरोशिमा और नागासाकी में हुई तबाही कभी दोहराई नहीं जानी चाहिए। किशिदा का बयान ऐसे समय में आया है जब पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने परमाणु हथियारों के प्रयोग पर बड़ा बयान दिया था। मेदवेदेव ने पिछले दिनों कहा था कि अगर यूक्रेन की तरफ से जवाबी हमले जारी रहेंगे तो फिर रूस को परमाणु हथियार का इस्तेमाल करना होगा। मेदवेदेव राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी हैं। खुद पुतिन भी कई बार परमाणु हथियारों के प्रयोग की धमकी दे चुके हैं।जापान के सुर में सुर मिलाता यूएनकिशिदा की तरह ही संयुक्त राष्ट्र के मुखिया एंटोनियो गुटेरेस ने भी ऐसा ही बयान दिया है। उन्होंने कहा, ‘कुछ देश लापरवाही से एक बार फिर परमाणु हथियारों के रास्ते पर चल रहे हैं और विनाश के इन उपकरणों का उपयोग करने की धमकी दे रहे हैं।’ यूएन में आयोजित कार्यक्रम में 111 देशों के हजारों लोगों ने बमबारी में मारे गए या घायल हुए लोगों के लिए प्रार्थना की और विश्व शांति की अपील की। लेकिन इस कार्यक्रम से रूस और बेलारूस को बाहर रखा गया था।