अमेरिका और ब्रिटेन से तनाव के बीच रूस ने दुनिया की सबसे बड़ी पनडुब्बी बेलगोरोड को पहले सीक्रेट मिशन पर रवाना कर दिया है। 2019 में लॉन्चिंग के बाद यह बेलगोरोड पनडुब्बी का पहला समुद्री मिशन है। रूसी रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस पनडुब्बी के सभी समुद्री ट्रायल पूरे हो चुके हैं। 604 फीट लंबी बेलगोरोड पिछले 30 साल में बनने वाली दुनिया की सबसे बड़ी पनडुब्बी है। विशेषज्ञों को डर है कि इसमें तैनात 79 फीट लंबे पोसीडॉन टॉरपीडो पानी के भीतर विस्फोट कर समुद्र में रेडियोएक्टिव सुनामी पैदा कर सकते हैं। इससे समुद्र के किनारे बसने वाले शहरों को 300 फीट ऊंची समुद्री लहरों का सामना करना पड़ सकता है। अगर, लोग सुनामी की मार से बच भी गए तो उन्हें कई सालों तक रेडियोएक्टिव विकिरण का सामना करना पड़ सकता है। रूस के दुश्मनों के लिए क्यों खतरा है यह पनडुब्बीदरअसल, बेलगोरोड पनडुब्बी रूसी नौसेना का आधिकारिक रूप से हिस्सा नहीं है। जिसका अर्थ है कि इसकी गुप्त और आक्रामक कार्रवाई प्रभावी रूप से अस्वीकार्य होगी। इसके द्वारा किए गए किसी भी हमले को रूस आधिकारिक रूप से स्वीकार करने से इनकार कर सकता है। इस पोत के संचालन की कमान रूस की खुफिया सेवा मेन डायरेक्टरेट ऑफ अंडरसी रिसर्च के हाथों में रहेगी। यह संस्थान रूस के दुश्मनों की खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। इसमें लगे छह टॉरपीडो में से हर एक दो मेगाटन तक के परमाणु धमाका करने में सक्षम है। यह ताकत हिरोशिमा पर गिराए गए अमेरिकी परमाणु बम से 130 गुना ज्यादा है। स्पेशल मिशन को अंजाम देने में माहिर इस पनडुब्बी में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात हैं, जो पलक झपकते वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों को खत्म कर सकती है। 6 परमाणु टॉरपीडो से रेकी और हमला करने में सक्षमबेलगोरोड पनडुब्बी में छह की संख्या में पोसिडन लॉन्ग रेंज स्ट्रैटजिक न्यूक्लियर टॉरपीडो तैनात होते हैं। इस टॉरपीडो के जरिए रूसी नौसेना खुफिया जानकारी ही नहीं बल्कि परमाणु हमला भी कर सकती है। यह एक अनमैंड अंडरवॉटर व्हीकल की तरह काम कर सकता है, जो दुश्मन के इलाके में घुसकर खुफिया जानकारी इकट्ठा करती है। पोसिडन को स्टेटस-6 ओशेनिक मल्टीपरपज सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अंडरवॉटर ड्रोन दुश्मनों के ठिकानों पर परंपरागत और परमाणु मिसाइलों के साथ हमला करने में भी सक्षम है। ऐसी स्थिति में रूस की बेलगोरोड पनडुब्बी दुश्मन के जद से काफी दूर रहते हुए उनके ठिकानों की न केवल रेकी कर सकती है, बल्कि जरूरत पड़ने पर बर्बाद भी कर सकती है। पोसिडन अंडरवॉटर ड्रोन को 2018 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दुनिया के सामने पेश किया था।1700 फीट की गहराई तक गोता लगा सकती है यह पनडुब्बीबेलगोरोड पनडुब्बी समुद्र में 1700 फीट की गहराई तक गोता लगा सकती है। इतनी गहराई पर केवल कुछ ही देशों की पनडुब्बियां जा सकती हैं। 1700 फीट की गहराई तक गोता लगाने के कारण दुश्मन देशों के रडार और सोनार इसका पता बहुत मुश्किल से लगा पाएगें। ऐसे में अगर यह पनडुब्बी अमेरिका के नजदीक पहुंच जाती है तो यूएस नेवी के लिए इसे डिटेक्ट करना मुश्किल हो सकता है। इस पनडुब्बी को आधिकारिक तौर पर प्रोजेक्ट -09852 के तहत बनाया गया था। इसे मूल रूप से मूल रूप से ऑस्कर-2 क्लास की क्रूज मिसाइल पनडुब्बी से विकसित कर स्पेशल मिशन पनडुब्बी के रूप में विकसित किया गया है। इस पनडुब्बी के पानी के विस्थापन अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बियों से 50 फीसदी अधिक है।अंडरवॉटर इंटेलिजेंस एजेंसी के नाम से प्रसिद्ध है यह पनडुब्बीयह पनडुब्बी इतने गुपचुप तरीके से अपने मिशन को अंजाम देगी कि इसे रूस का अंडरवॉटर इंटेलिजेंस एजेंसी नाम दिया गया है। बेलगोरोड पनडुब्बी के कप्तान सीधे राष्ट्रपति पुतिन को रिपोर्ट करेंगे। विशेषज्ञों ने संभावना जताई है कि अगर इन परमाणु तारपीडो में से किसी एक का भी प्रयोग किया जाता है तो समुद्र में रेडियोएक्टिव सुनामी आ सकती है। इस पनडुब्बी की तैनाती अमेरिका समेत कई देशों के लिए खतरा बन सकती है। बेलगोरोड पनडुब्बी 80 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से चल सकती है। जो समुद्र के भीतर 1700 फीट गहराई तक जा सकेगी। इस पनडुब्बी को सोनार से पता लगाना बहुत मुश्किल है।हिरोशिमा से 130 गुना ज्यादा ताकत से परमाणु हमला करने में सक्षमइसमें लगे तारपीडो अपने साथ दो मेगाटन के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं। इनकी क्षमता अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 130 गुना ज्यादा है। सोवियत संघ के विघटित होने के बाद से रूस कमजोर हो गया था। इसके अलावा अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के प्रतिबंधों ने रूसी अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया था। इस समय एक बार फिर दुनिया के कई देशों को हथियारों की सप्लाई कर फिर से अपना प्रभुत्व कायम करने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, अमेरिका काट्सा जैसे नए प्रतिबंधों को लाकर दुनियाभर के देशों को रूप से हथियार न खरीदने की धमकी दे रहा है। यही कारण है कि कुछ दिन पहले अमेरिका ने तुर्की पर प्रतिबंध लगाए थे। अमेरिकी प्रशासन ने भारत को भी परोक्ष रूप से रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम न खरीदने को कहा है।