कराची: भयानक आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान में महंगाई ने नया रेकॉर्ड बनाया है। देश में महंगाई सन् 1975 के बाद नए स्तर पर पहुंच गई है। जनवरी में पाकिस्तान में खाद्य पदार्थों की कम सप्लाई की वजह से यह स्थिति आई है। पेट्रोलियम उत्पादों की ज्यादा कीमतों की वजह से महंगाई इस स्तर पर पहुंच गई है। पिछले साल उपभोक्ता कीमतें 13 फीसदी पर थीं तो इस साल यह 27.6 फीसदी पर पहुंच गई हैं। फिलहाल देश को राहत का इंतजार है और जल्दी इसके मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। क्यों बढ़ रही महंगाईबुधवार को पाकिस्तान के सांख्यिकी विभाग (PBS) ने महंगाई के आंकड़ें जारी किए। इन आंकड़ों के मुताबिक मई 1975 के बाद यह पहला मौका है जब देश में महंगाई इस कदर बढ़ी। सन् 1975 में पाकिस्तान में महंगाई ने 27.77 फीसदी का आंकड़ा छू लिया था। हर महीने के आधार पर जब आंकड़ों का आकलन किया गया तो पता वला कि इसमें 2.9 फीसदी का इजाफा देखा गया। बंदरगाहों पर 6000 कंटेनर्स फंसे हुए हैं जिनमें हजारों टन कंटेनर्स पोल्ट्री के हैं, अटके हुए हैं। इसकी वजह से चिकन के दामों में इजाफा हुआ है।Pakistan Inflation Today: कश्मीर मांगने वाले पाकिस्तान के लिए प्याज खाना भी मुश्किल, एक किलो के दाम 300 के पार, बिजली-पेट्रोल भी होंगे महंगे!क्या बोला वित्त मंत्रालयजून 2022 के बाद से महंगाई दर अस्थिर बनी हुई है। उस समय देश में शहबाज शरीफ के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार ने जिम्मा संभाला था। कंटेनर्स के फंसे होने से स्थिति काफी विकट हो गई है। सरकार को उम्मीद थी कि कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) 26 फीसदी रहेगा लेकिन यह बढ़ गया है। सरकार ने हालांकि बजट में इसके 11.5 फीसदी का लक्ष्य तय किया था। देश के वित्त मंत्रालय का कहना है कि हर साल के आधार पर महंगाई दर होती है और जनवरी में इसके 24 से 26 फीसदी तक रहने का अनुमान है। IMF भी सख्तएक तरफ पाकिस्तान बड़े संकट में घिर चुका है तो वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) अपना रुख बदलने को तैयार नहीं है। मंगलवार को आईएमएफ के अधिकारियों ने देश का दौरा किया था। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की तरफ से पिछले कई महीनों से टैक्स में इजाफे को रोका जा रह है। साथ ही आईएमएफ की तरफ से दूसरी मांगों पर भी उन्होंने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। हाल के कुछ दिनों में पाकिस्तान पर दिवालिया होने का खतरा बढ़ गया है। कोई मित्र देश भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा है। ऐसे में अब शहबाज सरकार के पास आईएमएफ की मांगों को मानने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।