हाइलाइट्स:एफएटीएफ के एक बार फिर से ग्रे लिस्‍ट में रखने पर पाकिस्‍तान एक नई चाल चलने जा रहा हैपाकिस्‍तान अपने पाले हुए धार्मिक आतंकी गुटों को राजनीति की मुख्‍यधारा में लाने जा रहा हैयही नहीं पाकिस्‍तानी पीएम को ग्रे लिस्‍ट से नहीं निकल पाने पर विपक्ष की आलोचना झेलनी पड़ रही इस्‍लामाबादएफएटीएफ के एक बार फिर से ग्रे लिस्‍ट में रखने से टेंशन में आया पाकिस्‍तान अब एक नई चाल चलने जा रहा है। पाकिस्‍तान अपने पाले हुए धार्मिक आतंकी गुटों को राजनीति की मुख्‍यधारा में लाने जा रहा है। यही नहीं पाकिस्‍तानी पीएम इमरान खान को ग्रे लिस्‍ट से नहीं निकल पाने पर विपक्ष की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ रही है। इससे पहले आतंकी फंडिंग पर 27 में 26 बिंदुओं को पूरा करने के बाद भी एफएटीएफ ने पाकिस्‍तान की उम्‍मीदों पर पानी फेरते हुए उसे ग्रे लिस्‍ट में बरकरार रखा था। पाकिस्‍तान ने एकमात्र आतंकी फंड‍िंग की जांच और संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा आतंकी घोषित किए गए लोगों पर ठोस कार्रवाई नहीं की थी, इसीलिए उसे एक बार फिर से ग्रे लिस्‍ट में डाल दिया गया। अब इमरान खान और पाकिस्‍तानी सेना लगातार इस स्थिति से निकलने के लिए रास्‍ता तलाश रही हैं ताकि एफएटीएफ को संतुष्‍ट किया जा सके। सरकारी सूत्रों ने बताया कि इमरान सरकार अब धार्मिक कट्टरपंथी गुटों को मुख्‍यधारा की राजनीति में लाने के विचार पर सहमत हो गई है। एमएमएल चुनाव आयोग में पंजीकरण के लिए संघर्ष कर रहीइमरान खान सरकार को सबसे पहले इसकी सलाह खुफिया एजेंसी आईएसआई ने दी थी। यही नहीं वर्ष 2017 में आतंकी हाफिज सईद के जमात-उद-दावा गुट की ओर से मिल्‍ली मुस्लिम लीग का गठन किया गया था। हालांकि जनता की ओर से इसे बहुत ज्‍यादा प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। एमएमएल अब पाकिस्‍तान के चुनाव आयोग में पंजीकरण के लिए संघर्ष कर रही है। उसे वर्ष 2018 के आम चुनाव में हिस्‍सा लेने से रोक दिया गया था। जमात उद-दावा की आतंकी सोच को त्‍याग किए बिना ही एमएमएल का निर्माण किया गया था। एक विश्‍लेषक नजरुल इस्‍लाम कहते हैं, ‘आतंकी गुटों को मुख्‍यधारा में लाने को एक कदम के रूप में नहीं बल्कि एक प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिए। मुख्‍यधारा की राजनीति में लाने से पहले आतंकी धार्मिक गुटों की अतिवादी विचारधारा को छोड़ने पर काम किया जाना चाहिए था। वर्तमान स्थिति में अभी तक यह प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।’