आतंकी संगठन अलकायदा के भीषण हमले के बाद आज से करीब 20 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अफगानिस्तान पर धावा बोल दिया था। बुश के बाद बिल क्लिंटन, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल तक अफगानिस्तान में अमेरिका की अलकायदा और तालिबान के खिलाफ जंग जारी रही। इस बीच नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने अब अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूरी तरह से वापसी का ऐलान कर दिया है। अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान से जैसे-जैसे वापस जा रही हैं, तालिबान ने भीषण जंग शुरू कर दिया है। तालिबान की कोशिश अफगानिस्तान की वर्तमान आधिकारिक सरकार को बंदूकों के बल पर उखाड़ा फेका जाए। अपने इसी उद्देश्य को सफल करने के लिए तालिबान के आतंकी जोरदार हमले कर रहे हैं। हालत यह है कि तालिबान के आतंकी राजधानी काबुल के उत्तर तक पहुंच गए हैं। तालिबान आतंकियों के रक्तपात को रोकने में अफगान सेना काफी कमजोर साबित हो रही है। आइए जानते हैं कि 20 साल अमेरिकी ट्रेनिंग और अरबों डॉलर के सैन्य खर्च के बाद भी अफगान सेना क्यों नाकाम साबित हो रही है….अमेरिका ने सुरक्षा पर खर्च किए 88 अरब डॉलरअफगानिस्तान में युद्ध की समाप्ति का ऐलान करते हुए जो बाइडन ने कहा, ‘यह अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध का अंत है। यह समय अमेरिकी सैनिकों की घर वापसी का है।’ बाइडन ने यह भी कहा कि अमेरिका अफगानिस्तान के सुरक्षाबलों को लंबे समय तक सुरक्षा सहायता मुहैया कराती रहेगी ताकि अफगानिस्तान एक बार फिर से आतंकियों के लिए स्वर्ग न बन जाए। साथ ही आगे चलकर ये आतंकी अमेरिका पर हमला भी न कर सकें। अमेरिका ने इसी वजह से 9/11 हमले के बाद अफगानिस्तान पर हमला बोला था। अमेरिका के रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने पिछले दिनों दावा किया था कि अफगान सेना अपनी सीमा और लोगों की सुरक्षा के लिए ज्यादा सक्षम हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका आने वाले समय में भी अफगानिस्तान की सेना और एयरफोर्स की मदद करता रहेगा। अमेरिका ने पिछले साल दिसंबर तक अफगानिस्तान की सुरक्षा में मदद के लिए 88 अरब डॉलर की मदद की है। इस साल भी 3 अरब डॉलर सुरक्षा के नाम पर खर्च किया जाना है। जानें क्यों नाकाम हो रही अफगानिस्तान की सेनाअफगानिस्तान की सुरक्षा पर अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी अफगान सेना घटिया नेतृत्व, पलायन और अक्षमता से जूझ रही है। अफगान सेना को ट्रेनिंग देने वाले एक अमेकिरी जनरल ने एनपीआर न्यूज वेबसाइट से कहा, ‘दुखद बात यह है कि अभी केक पूरी तरह से पका नहीं है। हम अपना धैर्य खो दिए। हमने एकतरफा वापस जाने का ऐलान कर दिया। हमारे वापस जाने से कई इलाकों में खालीपन पैदा हो गया जिससे तालिबान को वापसी का मौका मिला गया और उस अफगान आर्मी तैयार नहीं थी। अफगान सेना को समय पर वेतन नहीं मिलता है। उनका नेतृत्व कमजोर है। तालिबान के साथ युद्ध अफगान सेना को भारी तादाद में अपने सैनिकों को खोना पड़ा है। इससे अफगान सेना के सैनिकों का मनोबल बहुत गिर गया है।’ तालिबान का दावा है कि उसका 80 फीसदी अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया है। बाइडन के इस ऐलान पर खुद उन्हीं की पार्टी के सदस्य सवाल उठा रहे हैं। पेंटागन में अधिकारी और डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता एलिसा स्लोटकिन ने कहा कि इस ऐलान पर मैं जानना चाहती हूं कि आतंकी फिर से एकजुट न हो जाएं और हमारे या हमारे सहयोगियों के खिलाफ हमले न कर दें, इसके लिए क्या किया जाए। अफगानिस्तान के बाहर से एक्टिव रहेगा अमेरिकाबाइडन ने कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ अभियान अफगानिस्तान के बाहर से चलता रहेगा। बाइडन का इशारा पाकिस्तान या तजाकिस्तान या फारस की खाड़ी में मौजूद युद्धपोतों से आने वाले समय में आतंकवादियों के खिलाफ अभियान जारी रहेगा। बाइडन ने अफगानिसतान से वापसी का ऐलान कर दिया है लेकिन तालिबान ने अभी तक अलकायदा से संबंध नहीं तोड़े हैं जबकि यह दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते में एक शर्त थी। तालिबान अभी भी अलकायदा के साथ मिलकर पूर्वी अफगानिस्तान में हमले कर रहा है। अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में अमेरिकी और अफगानी सेना के हवाई हमले में अलकायदा आतंकियों को निशाना बनाया जा चुका है। सीआईए के पूर्व डायरेक्टर और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का नेतृत्व कर चुके जनरल डेविड पेट्रियस कहते हैं कि आतंकियों की गतिविधियों का विस्तार चिंताजनक बात है। उन्होंने कहा कि चिंता की बात यह भी तालिबान सैन्य रूप से मजबूत होगा और अपने आतंकी गुटों को सक्रिय रहने की अनुमति देगा। एक अन्य अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ फ्रेड कागन कहते हैं कि हम अब रियल टाइम ज्यादा जासूसी नहीं कर पाएंगे। साथ ही अब हमारी हमला करने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।