वॉशिंगटन: साल 1969 में अमेरिका ने अपोलो 11 के नाम से मून मिशन लॉन्च किया था। मिशन सफल भी हुआ और दो अंतरिक्ष यात्री-नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन ने चांद पर कदम रखा। चांद आपको जैसा दिखता है, यह उससे काफी अलग है। अपोलो 11 के बाद भी चांद के कुछ ऐसे रहस्य हैं जो अभी तक सुलझ नहीं सके हैं। वैज्ञानिक आज तक इन रहस्यों को समझने की कोशिशों में लगे हैं। लेकिन माना जा रहा है कि ये कुछ ऐसी पहेलियां हैं जो हमेशा से अनसुलझी ही रहेंगी। वैज्ञानिक आज तक रात में चमकने वाले चांद की इन पहेलियों के बारे में सोचने में लगे हैं।अरबों साल पुराना चांदवैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा स्वयं 4.51 अरब वर्ष पुराना है। यह कैसे बना, यह भी एक रहस्य है। कहा जाता है कि चंद्रमा का निर्माण पृथ्वी और मंगल ग्रह के आकार के एक अन्य छोटे ग्रह के बीच टकराव के दौरान हुआ था। इस प्रभाव से निकला मलबा पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में एकत्रित होकर चंद्रमा का निर्माण हुआ। लेकिन यह बात भी कई लोगों के लिए रहस्य ही है कि आखिर चंद्रमा बना कैसे। अपोलो मिशन ने कुछ रहस्यों को सुलझाने में मदद मिली थी। लेकिन अभी भी कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब तलाशा जा रहा है। कुछ सवाल तो ऐसे हैं जो आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन की तरफ से चांद से लाए गए नमूनों की वजह से पैदा हुए हैं। नासा साल 2024 में एक बार फिर अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने की तैयारी कर रहा है। चांद पर है पानीअपोलो 15 मिशन की तरफ से जो नमूने लाए गए उसमें चट्टान के अंदर पानी मिला था। साल 2009 में जो खोज हुई उसने चांद पर रिसर्च को एक नई दिशा दी। इससे पता चला कि चंद्रमा के निर्माण के बाद से ही उस पर पानी मौजूद रहा होगा। भविष्य की रिसर्च के लिए चंद्रमा पर पानी होना जरूरी है। इसका उपयोग पीने के पानी और रॉकेट ईंधन के लिए किया जा सकता है। नोबल ने कहा चंद्रमा पर एक पूरी वॉटर साइकिल है जिसके बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम है कि यह यह कैसे काम करती है। वर्तमान समय में इसे समझने के लिए उपकरण मौजूद हैं।ज्वालामुखी तक चंद्रमा परपानी के अलावा, हाल के सबूतों से पता चला है कि चंद्रमा पर बर्फ है। साल 2018 की एक रिसर्च में इस बात की पुष्टि होती है कि चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों में जमीन पर जमी हुई चीजें थीं। कोलोराडो यूनिवर्सिटी खगोल भौतिकी और ग्रह विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर पॉल हेने ने कहा, ‘ यह एक ऐसा सवाल है जो काफी दिलचस्प है कि यहां पर बर्फ और पानी कैसे है। हम जानना चाहेंगे कि वहां कितनी बर्फ है और कहां है, और इसकी जांच के लिए नए डेटा एकत्र करेंगे।’ अपोलो मिशन की तरफ से लाए गए बेसाल्टिक चट्टानों या ठोस पिघले हुए लावा के नमूने ज्यादातर पुराने थे। वैज्ञानिक मानते हैं कि ज्वालामुखी विस्फोट चंद्रमा की सतह पर हुए थे, लेकिन वे अभी भी इस बारे में अनिश्चित हैं कि ये विस्फोट किस समय पर हुए और चंद्रमा ने ज्वालामुखी सक्रिय करना कब बंद किया।गर्म और ठंडा होता चांदहाल के शोध से पता चला है कि चंद्रमा की चट्टानें यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ से समृद्ध हैं। मैगजीन नेचर के साल 2014 के एक पेपर पर अगर यकीन करें तो यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम जैसे गर्मी पैदा करने वाले तत्व चंद्रमा की सतह का विस्तार करते हैं और फिर उसे छोटा कर देते हैं। चंद्रमा गर्म और ठंडा हो जाता है। इस वजह से सतह पर बनी दरारें लावा को उनके माध्यम से बहने की अनुमति देतीं। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि चंद्रमा अभी तक टेक्टोनिक रूप से सक्रिय है। जबकि कुछ मानते हैं कि बहुत पहले यह सक्रिय होना बंद हो गया है।