Why India becomes in indispensable to US to counter China भारत के बिना चीन का सामना नहीं कर सकता अमेरिका, बाइडन के लिए जरूरी हैं पीएम मोदी, क्‍यों कह रहे व‍िशेषज्ञ

वॉशिंगटन: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक और अमेरिका दौरा 21 जून से शुरू हो रहा है। पीएम मोदी दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिनका व्‍हाइट हाउस में राजकीय स्‍वागत किया जाएगा। विदेश नीति के जानकारों की मानें तो जिस तरह से भारत का कद बढ़ता जा रहा है, उसके बाद अब वह अमेरिका के लिए एक अनिवार्य साथी हो गया है। इकोनॉमिस्‍ट में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक चीन का मुकाबला करने और चीनी आक्रामकता का जवाब देने के लिए अमेरिका को अपनी कोशिशों में भारत का साथ चाहिए ही होगा। द इकोनॉमिस्‍ट में छपे आर्टिकल में इस बात की अहमियत बताई गई है कि किस तरह‍ से अमेरिका से लेकर खाड़ी देशों तक भारतीय समुदाय फैला हुआ है।तेज गति से बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍थाब्रिटिश अखबार इकोनॉमिस्‍ट ने भारत को दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्‍यवस्‍था बताया है। अखबार के मुताबिक भारत की जीडीपी साल 2028 तक जापान और जर्मनी की जगह ले सकती है। अखबार के मुताबिक भारत का निर्यात सेवाओं से जुड़ा है और दुनिया में अब इसकी वजह से यह सांतवा सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में भारत के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर में दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्‍की हुई है। साथ ही मैन्‍युफैक्‍चरिंग में भी तेजी आई है क्‍योंकि यहां की सप्‍लाई चेन, चीन से काफी अलग है। इकोनॉमिस्‍ट ने इस दौरान एप्‍पल का उदाहरण दिया जो अब सात फीसदी आई फोन भारत में बनाने लगा है।पीएम मोदी का अमेरिका दौरा भारत के लिए साबित होगा गेम चेंजर! जानिए क्‍यों विशेषज्ञ चीनी नेता देंग के दौरे से कर रहे हैं तुलनासाफ है चीन के मुकाबले भारत को आर्थिक फायदा ज्‍यादा हो रहा है। ऐसे में चीन का खिलाफ होना लाजिमी है। ऐसे में अमेरिका अपने अनुभवों के बाद चीन के साथ किसी तरह का जोखिम लेगा, इस बात की संभावना जीरो लगती है। अखबार में लिखा है कि भारत और अमेरिका को करीब रहना जरूरी है क्‍योंकि दोनों ही देशों के चीन लिए संदेह एक जैसे हैं। यह रवैया चीन को भारत के साथ सहयोग करने से इनकार करने के लिए मजबूत करेगा। चीन मानता है कि उसका दर्शन और लोकतंत्र पश्चिमी आदर्शों के अनुरूप नहीं है।अमेरिका में भारतीयों का बोलबालाइकोनॉमिस्‍ट ने इस तरफ भी ध्‍यान दिलाया है कि अमेरिका के शीर्ष पांच बिजनेस स्कूलों में से तीन के अध्यक्ष और सीईओ भारतीय हैं। अल्फाबेट, आईबीएम और माइक्रोसॉफ्ट को आज भारतीय मूल के सीईओ चला रहे हैं। इससे ही साफ होता है कि भारतीय अमेरिकियों ने इस देश में क्‍या हासिल कर लिया है। दूसरी तरफ अमेरिका की सामान्‍य आबादी में से 70 फीसदी लोग भारत के बारे में सकारात्‍मक राय रखते हैं। जबकि चीन के मामले में यह आंकड़ा सिर्फ 15 फीसदी है।रूस या अमेरिका कौन भारत के लिए बेहतर, किसके साथ डिफेंस डील है फायदे का सौदा, विशेषज्ञों ने बताया सबकुछक्‍वाड का अहम हिस्‍साभारत उस क्‍वाड सुरक्षा गठबंधन का भी अहम हिस्‍सा है जिसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं। बाइडन प्रशासन ने भारत के साथ टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर को तेज करने में भी बड़ा कदम उठाया है। इकोनॉमिस्‍ट के मुताबिक भारत के रक्षा क्षेत्र का समर्थन करके, अमेरिका उसे रूस के हथियारों से इसे दूर करना चाहता है। साथ ही उसका मकसद बाकी एशियाई देशों को युद्ध से जुड़ी सामग्रियों की एक सस्ती सप्‍लाई मुहैया कराई जा सके। भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी कभी भी बहुत करीबी नहीं रही है। मगर अब अमेरिकी नेता, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट रिश्‍तों में करीबी देखना चाहते हैं।भारत के लिए बड़ा मौकासाथ ही अब भारत की विदेश नीति मुखर हो गई है। अमेरिका भी अब इसे चीन के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता में एक अनिवार्य सहयोगी के रूप में देखता है। पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा को एक ऐसे मौके के तौर पर देखा जा रहा है जो दोनों देशों के बीच बड़े रक्षा सौदों को अंजाम तक ले जा सकता है। इकोनॉमिस्‍ट के मुताबिक पीएम मोदी विंस्टन चर्चिल, नेल्सन मंडेला और वोलोदिमीर जेलेंस्‍की के साथ ही अमेरिकी कांग्रेस को एक से ज्‍यादा बार संबोधित करने वाले कुछ विदेशी नेताओं की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे। भारत की अर्थव्यवस्था भी अब अपनी क्षमता का अहसास कराने लगी है। ऐसे में इसके अमेरिका का आकर्षण बढ़ने पर हैरानी नहीं होनी चाहिए।