Why India Chandrayaan 3 and Russia Luna 25 landing on moon’s South Pole Hidden treasures of this place चंदा मामा के पास है वह ‘दौलत’ जो करेगी किसी एक को मालामाल, भारत या रूस किसके हाथ लगेगा चांद पर छिपा खजाना

मॉस्‍को: भारत और रूस इस समय खबरों में बने हुए हैं। दोनों देशों का चंद्र मिशन भारत का चंद्रयान 3 और रूस का लूना-25 अगले हफ्ते चांद पर लैंडिंग की वजह से खबरों में रहेगा। दोनों ही स्‍पेसक्राफ्ट चांद के साउथ पोल पर उतरेंगे जोकि चंद्रमा की सबसे मुश्किल जगह है। यह वह‍ हिस्‍सा है जहां पर पानी के साथ ही साथ धूप भी है। मगर यह इसे लिखना जितना आसान है, यहां पर लैंडिंग उतनी ही मुश्किल है। दोनों ही देशों ने यहां पर सॉफ्ट लैंडिंग का लक्ष्‍य तय किया है और यह भी काफी मुश्किल है।रहस्‍य है दक्षिणी ध्रुवचंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव वह हिस्‍सा है जो विज्ञान में रूचि रखने वालों के लिए हमेशा से रहस्‍य रहा है। दक्षिणी ध्रुव पर वह जगह है जहां पर कुछ हिस्‍सों में एकदम अंधेरा है तो कुछ पर रोशनी नजर आती है। इसके करीब पानी और धूप दोनों है। स्थायी रूप से कुछ हिस्‍सों में छाया है और यहां पर बर्फ जमा होने की बातें कही गई हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्‍था नासा का दावा है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कुछ गड्ढों पर तो अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है। इन गड्ढों वाली जगह का तापमान -203 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है।क्‍या चांद पर होगी दोस्‍त रूस के साथ भारत की टक्‍कर? चंद्रयान 3 या फिर लूना-25, जानें कौन करेगा पहले लैंडिंगचंद्रमा की बर्फ है अंतरिक्ष का सोनावैज्ञानिकों की मानें तो यह बर्फ दरअसल अंतरिक्ष का सोना है। इसका खनन पीने के पानी के लिए किया जा सकता है। साथ ही साथ या सांस लेने के लिए जरूरी ऑक्सीजन और रॉकेट फ्यूल के लिए भी इसे हाइड्रोजन में बांटा जा सकता है। कुछ लोगों का मानना है कि इस ईंधन का प्रयोग न सिर्फ पारंपरिक अंतरिक्ष यान के लिए किया जाएगा, बल्कि उन हजारों उपग्रहों के लिए भी किया जा सकता है जिन्‍हें अलग-अलग मकसद के लिए अंतरिक्ष में भेजा जाता है। चंद्रमा पर पहली रोबोटिक लैंडिंग को 60 साल हो चुके हैं लेकिन फिर भी इस पर लैंडिंग एक मुश्किल काम है। अभी त‍क जितने भी मिशन लॉन्‍च हुए हैं, उनका सक्‍सेस रेट बहुत कम है। आधे मिशन भी यहां पर लैडिंग में फेल हो गए हैं।लैंडिंग सबसे मुश्किलवैज्ञानिकों के मुताबिक धरती से अलग चंद्रमा का वातावरण बहुत हल्‍का है यानी गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का सिर्फ छठे हिस्‍से के बराबर है। इस वजह से अंतरिक्ष यान की लैंडिंग के समय इसकी स्‍पीड को कम करने के लिए खिंचाव नहीं मिल पाता है। इसके अलावा, चंद्रमा पर किसी भी यान को उसकी लैंडिंग वाली जगह पर जाने के लिए कोई जीपीएस जैसी कोई चीज नहीं है। इन कमियों की भरपाई अंतरिक्षयात्रियों को 239,000 मील दूर से करनी पड़ती है। इस वजह से भी दक्षिणी ध्रुव पर उतरना काफी चुनौतीपूर्ण काम बन जाता है।चांद पर मिलने वाला कीमती पानीचांद पर मौजूद कीमती संसाधन ही भारत और रूस से लेकर हर देश के लिए रूचि का विषय बने हुए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर रॉकेटों को भारी ईंधन से लादा न जाए तो इससे आने वाले समय में अंतरिक्ष यात्रा पर होने वाले खर्च में भारी कमी आ सकती है। इसका मतलब यह भी है कि चंद्रमा एक ब्रह्मांडीय गैस स्टेशन जैसा बन सकता है। जियोलॅजिकल और माइनिंग फर्म वाट्स, ग्रिफिस की मानें तो अगले 30 सालों में सिर्फ चांद पर मिलने वाला पानी ही 206 बिलियन डॉलर की इंडस्‍ट्री बन सकता है।