कैलिफोर्नियादुनिया के सबसे शक्तिशाली चुंबक को एक्सपेरिमेंटर फ्यूजन रिएक्टर ITER के कोर में इस्तेमाल करने के लिए फ्रांस भेजा जा रहा है। वैज्ञानिको को उम्मीद है कि आईटीईआर हमारे सूर्य के केंद्र में देखी गई प्रक्रिया को दोहराकर औद्योगिक पैमाने पर संलयन ऊर्जा (फ्यूजन एनर्जी) बनाने की ताकत प्रदान करेगा। इस चुंबक को सेंट्रल सोलनॉइड के नाम से जाना जाता है। इस कृत्रिम चुंबक की ताकत धरती के मैग्नेटिक फील्ड से 280,000 गुना ज्यादा है। धरती के चुंबकीय क्षेत्र से 280000 गुना ज्यादा ताकतवरसेंट्रल सोलनॉइड चुंबक को कई हिस्सों में बांटकर फ्रांस भेजा जा रहा है। सारे पार्ट्स जोड़ने पर यह चुंबक 18 मीटर लंबा और 4.2 मीटर चौड़ा होगा। एक बार पूरी तरह से निर्मित होने के बाद इसका वजन लगभग 1000 टन होगा। इस चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र की ताकत 13 टेस्ला के आसपास है, जो पृथ्वी के अपने चुंबकीय क्षेत्र से लगभग 280,000 गुना अधिक मजबूत होगा। छह माड्यूल को मिलाकर किया गया निर्माणइतने ताकतवर चुंबकीय क्षेत्र पैदा करने के कारण सेंट्रल सोलनॉइड को रिएक्टर के जिस हिस्से में स्थापित किया जाएगा, उसे अंतरिक्ष शटल लिफ्ट-ऑफ के दोगुने जोर के बराबर बल का सामना करना पड़ेगा। इस चुंबक का निर्माण छह मॉड्यूल से मिलाकर किया गया है। प्रत्येक मॉड्यूल में 43 किलोमीटर के कुंडलित नाइओबियम-टिन सुपरकंडक्टर्स मौजूद हैं। एक बार जब ये कॉइल स्थापित हो जाते हैं, तो उन्हें 3800 लीटर एपॉक्सी के साथ सील कर दिया जाएगा।Chinese Nuclear Plant Leak: चीन के परमाणु संयंत्र से लीक हुआ रेडियोएक्टिव पदार्थ! दूसरे चेर्नोबिल की आशंका से डरे लोगहथियार निर्माता कंपनी ने बनाया महाशक्तिशाली चुंबकइस चुंबक का निर्माण अमेरिका की प्रसिद्ध हथियार निर्माता कंपनी जनरल एटॉमिक्स ने किया है। इसी कंपनी ने एमक्यू-9 प्रीडेटर जैसे कई घातक ड्रोन और दूसरे युद्धक हथियारों का निर्माण किया है। कैलिफोर्निया में जनरल एटॉमिक्स फैक्ट्री में बने इस महाशक्तिशाली चुंबक को फ्रांस में आईटीईआर निर्माण स्थल पर भेजने के लिए विशेष तैयारियां की गई है। इसका पहला मॉड्यूल इसी महीने रवाना होगा, जबकि अगला मॉड्यूल अगस्त में भेजा जाएगा।आईटीईआर का 75 फीसदी काम पूराआईटीईआर वैज्ञानिकों का लक्ष्य 2025 तक दुनिया के सबसे बड़े फ्यूजन रिएक्टर को सक्रिय करना है। इस परियोजना में भारत समेत दुनिया के 35 देशों के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। आईटीईआर के 75 फीसदी निर्माण कार्य को पूरा किया जा चुका है। इसके जरिए नाभिकीय संलयन से धरती पर ऊर्जा का निर्माण करना है। इससे हमें सितारों की उत्पत्ति के बारे में भी खास जानकारी मिलेगी।