अब नहीं रुकेंगे ISRO के कदम, चांद फतेह के बाद भारत का अब अगला स्टॉप सूर्य – isro to launch aditya l-1 mission next month

क्या है आदित्य L1 मिशन? खर्चा कितना आएगा?आदित्य एल-1 सूर्य के अध्ययन के लिए पहली भारतीय अंतरिक्ष आधारित ऑब्जर्वेटरी (वेधशाला) होगी। इसका काम सूरज पर 24 घंटे नजर रखना होगा। यह वहां होने वाली प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी जुटाएगा। यह इसरो का अब तक का सबसे जटिल मिशन होने वाला है।फिर धरती से ही क्यों नहीं की स्टडी?सूर्य बहुत सी वेवलेंथ की किरणें निकालता है। बहुत सारे ऊर्जा कण उत्सर्जित करता है जो इंसान के लिए नुकसानदयक हैं। धरती का मैग्नेटिक फील्ड और वातावरण सुरक्षा कवच का काम करता है और इन विकिरणों को रोक देता है। अगर धरती से सूर्य की स्टडी की जाती तो उसके बहुत सारे विकिरण का अध्ययन हो ही नहीं पाता। ऐसे में पृथ्वी के गुरुत्व से बाहर जाकर इन्हें देखना जरूरी था।क्या हम सूर्य पर नहीं जा रहे हैं? दूर से ही स्टडी होगी?धरती और सूरज के सिस्टम के बीच पांच Lagrangian point हैं। सूर्ययान Lagrangian point 1 (L1) के चारों ओर एक हेलो ऑर्बिट में तैनात रहेगा। Lagrangian point अंतरिक्ष के पार्किंग स्पेस हैं जहां उपग्रह तैनात किए जा सकते हैं। L1 पॉइंट की धरती से दूरी 1.5 मिलियन किमी है जबकि सूर्य की पृथ्वी से दूरी 150 मिलियन किमी है यानी आदित्य एल-1 पृथ्वी से सूर्य की दूरी के एक फीसदी के करीब तय करेगा। आदित्य सूर्य पर नहीं जा रहा। उससे काफी पहले एक पॉइंट L1 के चारों ओर रहकर अध्ययन करेगा। एल 1 पॉइंट इसलिए चुना गया है क्योंकि यहां से सूर्य पर सातों दिन चौबीसों घंटे नजर रखी जा सकती है, ग्रहण के दौरान भी। आदित्य सात पेलोड लेकर जा रहा है जो सूर्य की अलग-अलग सतहों पर नजर रखेंगे।क्यों कर रहे हैं सूर्य की स्टडी? हासिल क्या होगा?- सूर्य ऐसा तारा है जो हमारी धरती के सबसे करीब है। दूसरे तारों की तुलना में इसका अध्ययन आसान है। सूर्य का अध्ययन करने से हम मिल्की-वे में मौजूद बाकी तारों के बारे में जान सकेंगे।- सूर्य में होने वाली विस्फोटक प्रक्रियाएं पृथ्वी के नजदीकी के स्पेस एरिया में दिक्कत पैदा कर सकती हैं। बहुत से स्पेसक्राफ्ट, संचार उपग्रहों को इससे नुकसान हो सकता है। सूर्य की ऐसी प्रक्रियाओं का पता पहले चल जाए तो बचाव के कदम उठा सकते हैं।- सूर्य पर होने वाली तमाम ऐसी मैग्नेटिक और थर्मल प्रक्रियाएं है जो असामान्य स्तर (Extreme) की हैं। इन्हें लैब बनाकर अध्ययन नहीं किया जा सकता। इन्हें समझने के लिए सूर्य को प्राकृतिक लैब की तरह यूज किया जा सकता है।- तमाम स्पेस मिशनों को चलाने के लिए स्पेस के मौसम को समझना जरूरी है। इस मिशन से स्पेस के मौसम को भी समझने में मदद मिल सकती है।- यह सूर्य के कोरोना की स्टडी करेगा। आदित्य एल 1 के पेलोड में लगा वैज्ञानिक कैमरा सूरज की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें लेगा। सौर हवाओं का जायजा भी लिया जाएगा।कैसे जाएगा?- आदित्य एल1 मिशन को इसरो के श्रीहरिकोटा स्पेस सेटर से PSLV रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा।- पहले पृथ्वी की नजदीकी कक्षाओं में इसे रखा जाएगा। धीरे-धीरे ये कक्षाएं बड़ी और अंडाकार होती जाएंगी।- इसके बाद इसे इसी के अंदर मौजूद प्रॉपल्शन के जरिए एल 1 पॉइंट की ओर तेजी से उछाल दिया जाएगा।- पृथ्वी के गुरुत्व से बाहर होते ही क्रूज फेज शुरू होगा। फिर एल1 पॉइंट की हेलो ऑर्बिट में पहुंचाया जाएगा।- धरती से लॉन्च होने के बाद एल1 की हेलो ऑर्बिट तक पहुंचने में आदित्य L1 को चार महीने का वक्त लगेगा।अब तक कौन-कौन कर चुका है सूर्य का मिशन?सूरज पर अब तक अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने कुल मिलाकर 22 मिशन भेजे हैं। इनमें से एक ही मिशन फेल हुआ है। भारत पहली बार सूर्य पर अपना मिशन भेज रहा है।