अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हक, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला – children born out of void or voidable marriages are entitled to share in the property of their parents, says supreme court

नई दिल्ली: हिंदू विवाह कानून में जिस विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली हो, उससे पैदा हुए बच्चों की भी माता-पिता की पैतृक में संपत्ति में हिस्सेदारी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह साफ कर दिया। इसके साथ ही, हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत प्राप्त यह अधिकार अब अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी मिल गया है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत किसी विवाह को दो आधार पर अमान्य माना जाता है- एक विवाह के दिन से ही, दूसरे जिस दिन अदालत अमान्य घोषित कर दे। ऐसे विवाह से पैदा हुए बच्चों को माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग को लेकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसले में कहा कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी मां-पिता के वैध संतान का दर्जा मिलेगा और इस तरह वो उनकी पैतृक संपत्ति का हकदार होगा।सीजेआई ने सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद कहा कि उनकी बेंच ने फैसला ले लिया है। उन्होंने चार बिंदुओं में अपना फैसला सुनाया। सीजेआई ने कहा-1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 के उप-धारा 1 के तहत अमान्य विवाह के तहत पति-पत्नी के बच्चे कानून की नजर में वैध हैं।2. उप-धारा 2 के तहत अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे वैध हैं।3. चूंकि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे भी वैध हैं, इसलिए उनका अपने माता-पिता की संपत्ति में हक होगा।4. जो बच्चा उप-धारा 1 या 2 के तहत वैध बच्चे का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की नजर में वैध संबंध होगा।हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, अमान्य विवाह को ‘void ab initio’ के रूप में परिभाषित करता है, जिसका अर्थ है कि यह शुरू से ही अमान्य है। अधिनियम निम्नलिखित आधारों पर विवाह को अमान्य घोषित करता है…➤ विवाह बंधन में बंधे लड़का, लड़की या दोनों की उम्र निर्धारित सीमा से कम हो।➤ लड़का या लड़की में से कोई एक पहले से ही किसी अन्य व्यक्ति से विवाहित हो।➤ कोई एक या दोनों का रिश्ता ऐसा हो जिसमें विवाह की अनुमति नहीं दी जा सकती है।➤ विवाह कानून के अनुसार नहीं किया गया हो।➤ किसी भी पक्ष को डरा-धमकाकर या धोखे से विवाह के लिए राजी किया गया हो।ऐसे सभी विवाह शुरू हो से ही अमान्य होते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी विवाह को अदालत अमान्य करार देती है। ऐसे में जब तक अदालत से अमान्य घोषित नहीं हो, विवाह मान्य होता है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत ऐसे विवाह के बारे में कहा गया है…➤ किसी भी पक्ष विवाह के समय मानसिक बीमारी से पीड़ित था और वह अब भी बीमार है।➤ किसी भी पक्ष को जबरन या धोखे से विवाह में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया गया था।➤ किसी भी पक्ष को अस्वस्थ मानसिकता के कारण विवाह के लिए वैध सहमति देने में सक्षम नहीं था।➤ कोई भी पक्ष विवाह के समय नाबालिग था।➤ विवाह किसी भी पक्ष इच्छा के विरुद्ध हुआ था।शुरू से ही अमान्य या अमान्य घोषित विवाह के बच्चे को वैध माना जाता है। इसका मतलब है कि उनके पास वैध विवाह के बच्चों के समान अधिकार है।