नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष अजय राय के बयान से हड़कंप मच गया है। उन्होंने राहुल गांधी के अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि प्रियंका गांधी चाहें तो वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं। एक-एक कार्यकर्ता उनके लिए जान लगा देगा। लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में बेहद अहम है। यहीं से केंद्र की सत्ता का रास्ता खुलता है। यूपी फतह करने का मतलब आधी जंग जीत लेना होता है। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने लगातार यूपी में अपनी जमीन गंवाई है। यहां तक वह लोकसभा चुनाव में अपने पारंपरिक गढ़ अमेठी जैसे क्षेत्रों को भी बचाने में नाकाम साबित हुई है। अमेठी इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गांधी परिवार और अमेठी एक-दूसरे का पर्याय रहे हैं। इस संसदीय सीट से 1980 में पहली बार संजय गांधी ने जीत हासिल की। संजय गांधी के बाद राजीव गांधी, सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे। लेकिन, 2019 के चुनाव में राहुल को पटखनी देकर केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने पूरा खेल पलट दिया है। जो अमेठी कभी कांग्रेसियों का गढ़ हुआ करती थी, उसे स्मृति ने अपना किला बना लिया है। यही मायने में स्मृति की राजनीतिक पहचान ही अमेठी से बनी है।शुक्रवार को अजय राय ने जैसे ही राहुल गांधी के अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कही, सियासत उबाल मारने लगी। अमेठी संसदीय क्षेत्र गांधी परिवार का गढ़ रहा है। हालांकि, अब स्मृति इरानी इसमें सेंध लगा चुकी हैं। उन्होंने गांधी परिवार से अमेठी के लोगों का मोहभंग कराने के लिए जमीनी स्तर पर मेहनत की है। राहुल गांधी से पहले संजय, राजीव और सोनिया इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे।वायनाड से जोड़ा नाता, अमेठी से तोड़ा, क्या यूपी से दूर हो रहे राहुल गांधी?नहीं होगा राहुल के लिए वापसी का रास्ताराहुल के लिए स्मृति इरानी से अब यहां पार पाना आसान नहीं होगा। इसे पिछले लोकसभा चुनावों के गणित से समझने की कोशिश करते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति इरानी ने राहुल से हार गई थीं। लेकिन, कांग्रेस नेता की जीत का अंतर घट गया था। 2009 में 4 लाख वोटों से जीतने वाले राहुल सिर्फ 1 लाख वोटों से जीते थे। स्मृति इरानी धीरे-धीरे राहुल की जमीन खिसका रही थीं। राहुल को इसका अंदाजा भी नहीं लगा।2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते स्मृति ने अपने लिए अमेठी की पिच तैयार कर ली थी। उन्होंने राहुल की पूरी जगह ले ली थी। स्मृति इरानी ने पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को 55 हजार वोटों से पटखनी दी। राहुल का अमेठी से हार जाना यूपी में कांग्रेस के अस्त हो जाने जैसा था। राहुल ने वायनाड का रुख कर लिया। अमेठी में राहुल को चित करने के बाद स्मृति इरानी ने संसद से लेकर सड़क तक कभी भी उन्हें घेरने का मौका नहीं छोड़ा। उनकी हमेशा कोशिश रही कि राहुल मुड़कर भी अमेठी की तरफ नहीं देखें।अविश्वास प्रस्ताव लाकर क्या विपक्ष ने मारी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी? किसे हुआ फायदा, बता रहा है सर्वेकांग्रेस को अच्छी तरह है इस बात का एहसासहालांकि, कांग्रेस को भी पता है कि यूपी में रास्ता बनाए बगैर केंद्र की सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता है। लिहाजा, उसने दोबारा कोशिश तेज की है कि वह अपने पुराने गढ़ को जिंदा करे। यही कारण है कि अजय राय ने राहुल गांधी के अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। यह भी कहा है कि प्रियंका गांधी चाहें तो वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं। एक-एक कार्यकर्ता उनके लिए जान लगा देगा। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। इसे यूपी में कांग्रेस की पैठ बढ़ाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। लड़ने को कोई कहीं से भी लड़ सकता है। लेकिन, राहुल और प्रियंका दोनों कांग्रेस के बड़े चेहरे हैं। ये एक्सपेरिमेंट फेल हुआ तो फजीहत भी बहुत होगी।