PM मोदी के भाषण के दौरान विपक्ष का वॉकआउट सही नहींरामकृपाल सिंह, सीनियर जर्नलिस्टआज की बहस का सबसे खास पहलू?सबसे खास पहलू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण रहा है, जिन्होंने विपक्ष द्वारा उठाए गए हर मुद्दे का पूरी मजबूती के साथ जवाब दिया है। हालांकि उनके भाषण के दौरान विपक्ष का सदन से वॉकआउट करना ठीक नहीं लगा।पूरी बहस में सरकार के सबसे मजबूत पक्ष और कमजोर पक्ष?एक दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह का भाषण और अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरी चर्चा पर जवाब सरकार का सबसे मजबूत पक्ष रहा है। प्रधानमंत्री ने मणिपुर के लोगों को यह संदेश दिया है कि पूरा देश, पूरा सदन उनके साथ है और जल्द ही मणिपुर में स्थिति सामान्य होगी। यह संसद से बड़ा संदेश है। लेकिन प्रधानमंत्री की पूरी स्पीच के दौरान विपक्ष अगर सदन में मौजूद रहता तो इससे और अच्छा संदेश जाता। विपक्ष का वॉकआउट नहीं होना चाहिए था।पूरी बहस में विपक्ष के सबसे मजबूत और कमजोर पक्षमानसून सत्र में जिस तरह से 10 दिन बर्बाद हुए और विपक्ष अपनी शर्तों पर अड़ा रहा कि प्रधानमंत्री को पहले सदन में आना होगा और वे गृह मंत्री का जवाब नहीं सुनेंगे। लेकिन बीते बुधवार को गृह मंत्री ने सरकार का पक्ष रखा और काफी अच्छी चर्चा देखने को मिली। अगर विपक्ष पहले यह मान जाता और गृह मंत्री का जवाब पहले सुन लेता तो फिर सदन में ज्यादा कामकाज हो सकता था। जहां तक मजबूत पक्ष की बात है तो कई वक्ताओं ने अपनी बात प्रमुखता से रखी है और कांग्रेस को अपने कई नेताओं से उम्मीद बढ़ी है।पीएम की स्पीच को किस तरह से देखते हैं?पीएम की स्पीच भावुक रही है और उन्होंने दिल से बोला है। मणिपुर समेत पूरा नॉर्थ ईस्ट सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है, वह यह संदेश देने में कामयाब रहे है। राहुल गांधी की स्पीच में भी भावुकता नजर आई थी।फिर बन रहा राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी वाला माहौलयशवंत देशमुख, सोशल एक्सपर्टआज की बहस का सबसे खास पहलूजाहिर है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पीएम का भाषण ही सबसे खास पहलू होना था। लेकिन इसके अलावा दूसरे स्पीकरों ने भी इंप्रेस किया। खासकर ओवैसी ने दमदार तरीके से अपनी बात रखी। जितना भी वक्त मिला इसमें उन्होंने बात बहुत तथ्यों और लय से रखी। बाकी सारी बातें रिटोरिक ही थी।पूरी बहस में सरकार के सबसे मजबूत और कमजोर पक्षसरकार का सबसे कमजोर पक्ष पीएम मोदी का काउंटर ही होना था। गृह मंत्री अमित शाह भी एक दिन पहले अच्छा और संतुलित बोले। यही दो मजबूत पक्ष था। जहां तक कमजोरी की बात है, बीजेपी अपने बेहतर वक्ताओं को सामने लाने में विफल रही। निशिकांत दुबे ने स्तरीय नहीं बोला। कभी अपने दस में दस बेहतर वक्ताओं को पेश करने वाली बीजेपी ने इसका अभाव दिखाकर कहीं न कही अपनी कमजोरी पेश की। कभी अरुण जेटली और सुषमा स्वराज की विपक्षी टीम भी शानदार वक्ताओं से घिरी रहती थी। बीजेपी अपने वक्ताओं को पेश करने में विफल रही।पूरी बहस में विपक्ष के सबसे मजबूत और कमजोर पक्षविपक्ष के लिए सबसे मजबूत पक्ष रहा राहुल गांधी की वापसी। वह 2019 की सूरत में आ गये हैं जहां विपक्ष कांग्रेस के बगैर नहीं दिख रही है और कांग्रेस राहुल गांधी के बगैर दिख रही है। राहुल के भाषण पर बहस हो सकती है लेकिन यह तथ्य है कि उन्होंने जो उत्सुकता पेश की वह उनके उभरने का संकेत है। जहां तक कमजोरी कहें या मजबूती अब फिर माहौल राहुल गांधी बनाम मोदी हो गया। यही बीजेपी चाहती है लेकिन विपक्षी गठबंधन ऐसा नहीं चाहता है।पीएम की स्पीच को किस तरह देखते हैंपहले से तय था कि मणिपुर को एक पैकेज की रूप में बोलेंगे कि नॉर्थ-ईस्ट के लिए उन्होंने कितना काम किया। ऐसा ही किया। उन्होंने पूरे काम गिनाए। लेकिन इस बहाने उन्होंने अपना सियासी टारगेट भी तय कर लिया कांग्रेस और गांधी परिवार ही है।विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A को सीरियसली ले रहे मोदीरशीद किदवई,सीनियर जर्नलिस्टआज की बहस का सबसे खास पहलू क्या था ?पीएम का भाषण ही खास पहलू था। ऐसा लगा कि पीएम संसद में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपनी स्पीच में राजनीति से प्रेरित बातें कहीं। साथ ही कांग्रेस पर गंभीर किस्म के आरोप लगाए। प्रधानमंत्री के भाषण से लगा कि उन्हें कहीं ना कहीं विरोधी गठबंधन से असुरक्षा तो है। ये बात उनकी स्पीच में साफ दिखाई पड़ी।तीन दिन में सरकार का सबसे मजबूत और कमजोर पक्षबुधवार का गृहमंत्री अमित शाह का भाषण सबसे मजबूत पक्ष रहा है, यूं तो गृहमंत्री खासे गर्म स्वभाव के माने जाते हैं, लेकिन उनकी स्पीच काफी संभली, संतुलित और संजीदा थी। उन्होंने मणिपुर और उसकी समस्याओं का जिक्र किया। विपक्ष को आड़े हाथों तो लिया, लेकिन उसमें तिरस्कार का भाव नहीं था। अमित शाह इस बहस में अच्छे वक्ता के रूप में निकल कर सामने आए। हालांकि सरकार का समर्थन कर रहे बीजेडी और वाईएसआरसीपी जैसे दलों का प्रेजेन्टेशन काफी कमजोर था, उनके भाषणों में क्षेत्रीय शुद्रताएं दिखी।विपक्ष का मजबूत पक्ष और कमजोर पक्षराहुल गांधी का हमला बेहद तीखा था। उन्होंने सरकार पर वहां हमला किया जहां चोट ज्यादा लगती है। मणिपुर में महिलाओं के साथ जो बीती उसे उन्होंने मार्मिक ढंग से रखा। उन बातों ने दिल पर असर डाला । हालांकि जो सवाल उन्होंने मणिपुर के लोगों को लेकर उठाए थे, उनका जवाब सरकार अभी तक नहीं दे पाई। विपक्ष के साथ भी समस्या वही पुरानी रही। विपक्ष के सहयोगी हों या वो दल जो अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर रहे थे, उनके आक्रमण में पैनापन नहीं था। हालांकि टीएमसी की महुआ मोइत्रा और एनसी के फारूक अब्दुल्ला इसके अपवाद रहे ।पीएम की स्पीच को कैसे देखते हैं।पीएम की स्पीच शुद्ध राजनीतिक स्पीच थी , वो इंडिया अलायंस को गंभीरता से ले रहे हैं, ये उनकी की स्पीच से साबित हो गया। इंसान उसी बात को नकारने की कोशिश करता है, जिससे उसे खतरा होता है। पीएम ने भारतीय राज्य और गवर्मेंट ऑफ इंडिया का फर्क ही मिटा दिया है, ऐसा हाल हो गया है कि अगर आप सरकार की आलोचना करते हैं तो उसे देश की आलोचना की तरह दिखाया जाता है। पीएम के भाषण में ये भी साफ दिखा। अविश्वास प्रस्ताव लाना देशद्रोह का काम नहीं होता, इंदिरा गांधी के खिलाफ तो 15 अविश्वास प्रस्ताव आए थे, इसके जरिए विपक्ष सरकार पर दबाव डालने का काम करता है।