आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर कितना बदला? इसका जवाब जानने के लिए कश्मीर जाने पर सबसे पहले जो बात नोटिस में आती है, वह है हर तरफ तैनात सुरक्षा बल के जवान। तस्वीर वही पुरानी, लेकिन कश्मीर की फिजा काफी बदली-बदली भी लग रही है। झेलम के किनारे रात के करीब 9 बजे टहलते युवा। गपशप करती और ठंडी हवा का लुत्फ लेती लड़कियों का ग्रुप, खिलखिलाते बच्चे। भेलपुरी से लेकर गुब्बारे बेचते लोग। कहीं किसी चेहरे पर खौफ नहीं। किसी भी आम शहर की तरह श्रीनगर की गलियां भी लगीं। तो क्या चार साल बाद अब कश्मीर में सब सामान्य है? वहां के हालात बताते हैं कि काफी कुछ हुआ है, लेकिन थोड़े और की जरूरत है।कौन नहीं चाहता शांतिकश्मीर ने वह दौर देखा है जब आए दिन आतंकी बंद की कॉल दे दिया करते थे। घरों से बाहर निकलने में डर लगता था और देश के दूसरे हिस्से के लोग कश्मीर जाने से पहले सोचते थे। कश्मीर का नाम लेते ही जेहन में आतंक और आतंकी शब्द सबसे पहले आता था। लेकिन अब युवा यहां रोजगार की बात कर रहे हैं। झेलम के किनारे एक युवा मिला। बोला, अभी ग्रैजुएशन कर रहा हूं। पहले सोचा था कि नौकरी करूंगा, लेकिन लगता नहीं कि नौकरी मिल पाएगी। इसलिए अब बिजनेस ही करूंगा। उसने बताया कि हमारा हाउस बोट का बिजनेस है। पिछले वक्त में यह काफी डिवेलप हुआ है, क्योंकि बहुत सारे पर्यटक आए हैं। आंकड़ों के हिसाब से भी देखें तो पर्यटकों के मामले में कश्मीर ने रेकॉर्ड बनाया है।प्रशासन से जुड़े लोग और सुरक्षा बलों के अधिकारी भी अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि लोग अब आतंकियों को पनाह नहीं देते। आतंकी के बारे में जानकारी होने पर तुरंत सुरक्षाबलों के साथ उसे साझा करते हैं, इसलिए सुरक्षा बलों का आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट सफल भी रहा। यहां किसी भी युवा से बात करो, वह विकास-रोजगार की बात करता है। आर्टिकल 370 उनके लिए कोई मुद्दा नहीं है। कोई चाहता है कि सरकारी नौकरी मिल जाए, तो किसी ने कहा कि कोल्ड स्टोरेज बनाने में सरकार की तरफ से जो सब्सिडी मिलनी थी, वह नहीं मिली। वह चाहते हैं कि सब्सिडी जल्दी मिल जाए।2019 के बाद विकास की बढ़ी रफ्तारप्रशासन के लोग बताते है कि पहले हालात ऐसे थे कि कोई भी काम करने के लिए टेंडर नहीं निकाला जाता था। दिल्ली या किसी और शहर में बैठकर हम लोग ऐसा सोच नहीं सकते कि सरकारी काम का ठेका बिना टेंडर के ही मिल जाए। लेकिन जम्मू-कश्मीर में लंबे वक्त तक ऐसा ही चलता रहा। अब यहां हर काम के टेंडर निकलते हैं और सारी प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है। इंडस्ट्री आ रही है तो रोजगार के मौके बढ़ने की उम्मीद भी जगी है। यहां के चीफ सेक्रेटरी अरुण कुमार मेहता बताते हैं कि अगर किसी भी काम की ई-टेंडरिंग नहीं हुई है और उसके पूरे होने का प्रूफ नहीं दिया गया है, तो उसकी पेमेंट हो ही नहीं सकती। वह बताते हैं कि श्रीनगर के अंदर जो भी फ्लाईओवर देख रहे हैं, वे 2019 के बाद बने। जो भी स्टेडियम देख रहे हैं सब 2019 के बाद बने हैं। यह बदलता हुआ जम्मू-कश्मीर है। वह ई-गवर्नेंस की बात करते हुए कहते हैं कि करप्शन इससे नहीं रुकता कि आप कितने लोगों को पकड़ लेंगे। करप्शन इससे रुकता है कि आप कितने लोगों को करप्शन करने से रोक लेंगे। टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करके हमने उसे रोक लिया है। वह अपनी बात की पुष्टि के लिए आंकड़े भी देते हैं। वह कहते हैं कि 2018-19 में 9229 के करीब प्रॉजेक्ट पूरे हुए। 2022-23 में 92500 से ज्यादा प्रॉजेक्ट पूरे हुए हैं। यानी 10 गुना, वह भी लगभग उसी खर्चे में। वह कहते हैं कि पारदर्शिता की वजह से करप्शन पर लगाम लगी है। अब कॉन्ट्रैक्टर सचिवालय में भीड़ नहीं लगाते। सारी पेमेंट ऑनलाइन होती है।Article 370: पार्लियामेंट के पास अनुच्छेद 370 को खत्म करने की ताकत नहीं, महबूबा मुफ्ती का वीडियो देखिएज्येष्ठा माता मंदिर के बाहर एक कश्मीरी पंडित परिवार मिला। कुछ साल पहले ये लोग जम्मू से यहां वापस आए। लेकिन अब भी सुरक्षा का डर सताता है। उन्होंने बताया कि टारगेट किलिंग का डर हमेशा लगा रहता है। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि पिछले चार साल में काफी डिवेलपमेंट हुआ है और बहुत सारे टूरिस्ट भी आए हैं। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा एक कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के लोगों से अपील करते हैं, ‘यहां आतंकवाद के जो बचे-खुचे अवशेष हैं, उन्हें आप समाज से अलग करिए। प्रशासन और सिक्यॉरिटी फोर्सेस के लोग उन्हें धरती से विदा करने का काम करेंगे। यह निर्णायक प्रहार का वक्त है। कैटिगराइजेशन करने की जरूरत नहीं है, हमें साफ भाषा में बोलना होगा।’थोड़े की और जरूरत हैकेंद्र सरकार से लेकर स्थानीय प्रशासन तक, हर स्तर पर सरकार लगातार दावा कर रही है कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के हालात बहुत बेहतर हुए हैं। लोग बिना खौफ के जी रहे हैं। यह वहां जाकर दिखता भी है। पोलो-व्यू स्ट्रीट मार्केट में रात 10 बजे तक भी शॉपिंग करते लोग दिख गए। डल झील के किनारे भी पूरी फिजा बेखौफ दिखी। लेकिन सवाल यह भी है कि जब हालात सामान्य हो गए हैं तो हर जगह राइफल हाथ में लिए सुरक्षा बलों के जवान क्या यह शंका पैदा नहीं करते कि अभी भी जम्मू-कश्मीर के हालात दूसरी जगहों से अलग हैं? क्या ये दिमाग में असर नहीं डालते कि शायद सब कुछ सामान्य नहीं है? लेकिन यह तर्क भी अपनी जगह है कि अगर ढील दी, तो कहीं आतंकियों को फिर से सिर उठाने और पैर पसारने का मौका ना मिल जाए।