इंदिरा का अहंकार चरम पर था… आडवाणी के हाथ में थी जनसंघ की कमान, अटल की मौजूदगी में वो बैठक

नई दिल्ली: यह तस्‍वीर बेहद खास है। इसमें भारतीय राजनीति के दो अहम किरदार हैं। बाईं ओर अटल बिहारी वाजपेयी बैठे हैं। दाहिनी तरफ लालकृष्‍ण आडवाणी हैं। तस्‍वीर देखते ही आपके मन में कई सवाल उमड़ने-घुमड़ने लगे होंगे। आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह तस्‍वीर कब की है? अटल और आडवाणी क्‍या कर रहे हैं? इतने सारे लोग क्‍यों जुटे हैं? ‘तस्‍वीर की कहानी’ की 5वीं कड़ी में आज हम यहां आपको इन सभी सवालों के जवाब देंगे। हम यह भी बताएंगे क‍ि देश में उन दिनों के हालात कैसे थे। राजनीति किस ओर करवट ले रही थी।यह तस्‍वीर जनसंघ के दौर की है। इसे 1973 में 22 अप्रैल को खींच गया था। उस दिन बॉम्‍बे (वर्तमान में मुंबई) में जनसंघ की कार्य समिति की बैठक बुलाई गई थी। पार्टी की कमान उन दिनों लालकृष्‍ण आडवाणी के हाथों में थी। वह जनसंघ के अध्‍यक्ष हुआ करते थे। तस्‍वीर में दाईं ओर चश्‍मा लगाए लालकृष्‍ण आडवाणी दिख रहे हैं। इस बैठक में अटल बिहारी वाजपेयी भी मौजूद थे। वह तस्‍वीर में बाईं तरफ से दूसरे स्‍थान पर बैठे दिखते हैं। ये दोनों ही उन दिनों जनसंघ के सबसे कद्दावर नेता थे।इमर्जेंसी के दौर में इंदिरा गांधी ने लाल किले की प्राचीर से ऐसा क्‍या बोला था जिससे अखबारों में मच गई थी खलबली?इंदिरा ने लोकसभा चुनाव में दर्ज की थी जोरदार जीतइसके पहले 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने जोरदार जीत दर्ज की थी। इसने इंदिरा का अहंकार सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था। भ्रष्टाचार, अहंकार और अत्याचार इंदिरा शासन का पर्याय बन गए थे। जनसंघ के नेता इसका तीखा विरोध कर रहे थे। दिसंबर 1972 में जनसंघ का 18वां सम्मेलन लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में कानपुर में हुआ था।सुषमा स्‍वराज पर ऐसी क्‍या मुसीबत पड़ी थी जब सब भुला मुलायम सिंह खड़े हो गए थे संग?आडवाणी ने जयप्रकाश नारायण को क‍िया था आमंत्र‍ितउन्‍हीं दिनों गुजरात में ‘नव निर्माण आंदोलन’ और बिहार में ‘समग्र क्रांति’ को लेकर देश में मंथन चल रहा था। बाबू जयप्रकाश नारायण आंदोलन के नेता बने थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) आगे बढ़कर आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी। जनसंघ आंदोलन के साथ था। नानाजी देशमुख ने जेपी को आंदोलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जनसंघ के दूसरी बार अध्यक्ष बने लालकृष्ण आडवाणी ने अखिल भारतीय सम्मेलन (19-7 मार्च 1973) में बाबू जयप्रकाश नारायण को आमंत्रित किया था। उस सम्‍मेलन में जयप्रकाश नारायाण ने कहा था, ‘अगर जनसंघ फासिस्ट है तो मैं भी फासिस्ट हूं।’