पाकिस्तान सरकार ने एक सुविचारित फैसले के तहत नैशनल असेंबली को भंग कर दिया है। चूंकि असेंबली का कार्यकाल पूरा होने से तीन दिन पहले इसे भंग किया गया है इसलिए नियमानुसार अगला चुनाव कराने के लिए 30 दिनों का अतिरिक्त समय मिल गया है। हालांकि जानकार बताते हैं कि इस बार चुनाव इस समय सीमा के भीतर भी शायद ही हो पाएं। वजह यह है कि जनगणना के ताजा आंकड़े औपचारिक तौर पर मंजूर किए जा चुके हैं। यानी अब यह संवैधानिक जरूरत हो गई है कि जनगणना के नए आंकड़ों के मुताबिक डीलिमिटेशन का काम पूरा करके ही चुनाव करवाए जाएं। चुनाव आयोग को इसके लिए करीब दो महीने का अतिरिक्त समय चाहिए होगा। नैशनल असेंबली भंग होने के बाद प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को नई व्यवस्था होने तक पदभार संभाले रहने को कहा गया है, लेकिन अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि कार्यवाहक प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी किसे मिलती है। इस बार केयरटेकर पीएम पर सामान्य से ज्यादा जिम्मेदारी होगी जिसकी कई स्पष्ट वजहें हैं।पहली बात तो यही कि नए चुनाव कराने और निर्वाचित सरकार के कार्यभार संभालने में कोई अतिरिक्त विलंब नहीं हुआ तो भी करीब छह महीने लग ही जाएंगे। दूसरी बात, यह सब ऐसे समय हो रहा है जब पाकिस्तान अभूतपूर्व आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में इस केयरटेकर सरकार को अलोकप्रिय होने का खतरा उठाकर भी कुछ कठोर फैसले करने पड़ सकते हैं। देखने वाली बात यह होगी कि कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति करते समय इस राष्ट्रीय जरूरत का कितना ख्याल रखा जाता है। दूसरे शब्दों में इस पद पर किसी गहरी आर्थिक समझ वाले व्यक्ति की नियुक्ति हो पाती है या नहीं।तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि यह चुनावी कवायद शुरू होने से चंद दिन पहले ही पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय विपक्षी नेता बताए जा रहे इमरान खान को तोशाखाना वाले मामले में न केवल तीन साल जेल की सजा हो गई बल्कि पांच साल तक उनके चुनाव लड़ने और कोई पद संभालने पर भी रोक लग गई है। हालांकि इमरान खान इसके खिलाफ कानूनी और राजनीतिक दोनों लड़ाई लड़ रहे हैं। निचली अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है जहां यह मामला चल रहा है। तो एक तो यह बात देखने वाली होगी कि ऊपरी अदालतों से उन्हें कब तक, कितनी और कैसी राहत मिलती है।जहां तक राजनीतिक लड़ाई का मामला है तो पिछली गिरफ्तारी के समय इमरान समर्थकों ने देश में विरोध का जिस तरह का माहौल बना दिया था, वैसा इस दूसरी गिरफ्तारी के समय इमरान की अपील के बावजूद नहीं बन पाया। हालांकि इसके पीछे सरकार की सक्रियता और इमरान की पार्टी के नेताओं के खिलाफ की गई कार्रवाई की भी भूमिका है। ऐसे में यह सवाल बना रहेगा कि सर्वाधिक लोकप्रिय विपक्षी नेता को मुकाबले से बाहर करके करवाया जाने वाला चुनाव कितना लोकतांत्रिक माना जाएगा और इसके नतीजे पाकिस्तान को कितनी स्थिरता दे पाएंगे।