लेखक: रुचिर शर्माजैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की लहर तकनीक की दुनिया को और अधिक ताकतवर बना रही है, माइक्रोसॉफ्ट और अल्फाबेट जैसे दिग्गज जबर्दस्त फायदा उठा रहे हैं। ये कंपनियां उन तरकीबों से लाभ ले रहे हैं जिनसे तकनीकी प्रगति का पूरा आयाम ही बदल रहा है। डिजिटल एज की पिछली लहरों ने तकनीकी कंपनियों के पसंदीदा शेयरों में कुछ नए नामों को शीर्ष पर ला दिया था, लेकिन वर्ष 2000 में शेयर मार्केट में आए भूचाल ने उन्हें चोट पहुंचाई। हालांकि, कुछ विशालकाय कंपनियों को 2010 के दशक में मोबाइल इंटरनेट क्रांति का फायदा उठाने का मौका मिला और आज वो एआई को लेकर काफी उत्सुक हैं।टेक इंडस्ट्री की बदलती प्रकृतिमैंने इंपीरिकल रिसर्च के ऐताहिसक कार्य को विस्तार से परखते हुए तकनीक की दुनिया में आई बदलाव की लहरों को 1960 के दशक के अंत में मेनफ्रेम के उदय से लेकर 1980 के दशक की शुरुआत में पर्सनल कंप्यूटर, फिर 2000 में इंटरनेट और इस साल एआई तक की क्रांतियों की पड़ताल की है। प्रत्येक लहर के चरम पर सबसे अधिक लाभ उठाने वालों पर गौर करने से पता चलता है कि एआई वेव के अगुवा पुराने लेकिन पहले से कहीं ज्यादा प्रभावशाली हैं।1969 में जब मेनफ्रेम वेव चरम पर थी, तब शेयर मार्केट में केवल 25 टेक कंपनियां लिस्टेड थीं। इनकी अगुवा बरोज और डीईसी जैसी पुरानी और नई कंपनियां थीं। ऑफिस मशीन बनाने वाली पुरानी कंपनी बरोज ने तब हाल ही में कंप्यूटरों में बदलाव लाया था जबकि डीईसी (डिजिटल इक्विपमेंट कॉर्पोरेशन) तो ‘कंप्यूटर’ शब्द का उपयोग करने से बच रही थी क्योंकि तब निवेशकों के बीच कंप्यूटर कंपनियों को लेकर गहरी निराशा थी। उस वक्त टॉप पांच कंपनियों की औसत उम्र 40 वर्ष थी।वर्ष 1983 में कंप्यूटर कंपनियां पीक पर पहुंचीं तो उनकी औसत उम्र 28 साल आंकी गई क्योंकि तब तक एप्पल और टंडन जैसी नई-नई कंपनियों ने झंडा गाड़ दिया था। ऐपल सात साल जबकि टंडन आठ साल पहले स्थापित हुई थी। वर्ष 2000 में इंटरनेट जब धीरे-धीरे पीक पकड़ ही रहा था तब शेयर मार्केट की टॉप टेक कंपनियों की औसत उम्र घटकर 12 साल हो गई। इनमें प्रमुख पांच में से सबसे पुरानी (जेडीएस यूनिफेज) 19 वर्ष जबकि सबसे नई (जुनिपर नेटवर्क) सिर्फ चार वर्ष स्थापित हुई थी। उससे पहले तक, एक से दूसरी लहर तक, कोई भी टेक कंपनियों के शेयर टॉप पांच में नहीं रहे। ध्यान रहे कि हर बार की पीक में सबसे तगड़ा स्टॉक सबसे बड़ी कंपनियों का ही हो, ऐसा नहीं है।हालांकि 2000 के दशक के बाद नई कंपनियों के आने और टेक इंडस्ट्री में छा जाने का दौर थम सा गया। अब वही पुराने नाम ही महफिल लूट रहे हैं। इस साल के पांच सबसे बड़े, सबसे लोकप्रिय नामों में अल्फाबेट और माइक्रोसॉफ्ट शामिल हैं, जिन्होंने लोकप्रिय जनरेटिव एआई ऐप लॉन्च किए हैं। ऐप्पल और ऐमजॉन ने यहां भी जगह बनाई हुई है जिनके बारे में निवेशकों का मानना है कि ये अच्छा प्रदर्शन करेंगे क्योंकि एआई को विकसित करने के लिए विशाल संसाधनों और डेटा के भंडार की आवश्यकता होती है।पुरानी कंपनियों के पांव जमेएआई में भरपूर संभावनाओं की उम्मीद में निवेशक बड़ी टेक कंपनियों पर यह सोचकर दांव लगा रहे हैं कि इन कंपनियों का लंबे समय तक वर्चस्व बना रहेगा। टॉप पांच टेक कंपनियों की औसत उम्र अब बढ़कर 40 वर्ष की हो रही है और कोई नई कंपनी मैदान में नहीं उतर रही है। इनमें सबसे नई कंपनी ऐमजॉन है। ऐमजॉन 25 वर्ष की उम्र में भी वर्ष 2000 की सबसे पुरानी अगुवा कंपनियों के मुकाबले उम्रदराज है। इन शीर्ष कंपनियों का आकार बहुत बड़ा हो चुका है।अतीत में स्टॉक मार्केट में छाईं पांच सबसे बड़ी टेक कंपनियां जब सर्वोच्च स्तर पर पहुंचीं तो उनका कुल मार्केट कैप एसएंडपी 500 इंडेक्स के कुल वैल्यु का 1.3% तक पहुंच गया। यह वर्ष 2000 की बात है। आज शीर्ष पांच की बाजार हिस्सेदारी 20% तक पहुंच गई है जिसमें अकेले ऐपल 7% के करीब है।आम तौर पर, एक कंपनी जितनी बड़ी हो जाती है, उतनी ही तेजी से विकास करना कठिन होता जाता है। लेकिन पिछले साल के अंत से ऐपल और माइक्रोसॉफ्ट, दोनों के शेयर लगभग 50% चढ़ गए हैं। दोनों का कुल बाजार मूल्य 5.7 अरब डॉलर के करीब है जो वर्ष 2000 में स्टॉक मार्केट में लिस्टेड सभी टेक कंपनियों के मार्केट वैल्यु से भी ज्यादा है। उस वक्त कुल 1,850 कंपनियां थीं। दरअसल, कम से कम 1970 के दशक के बाद से किसी भी समय की तुलना में 10 सबसे बड़े शेयरों की बाजार हिस्सेदारी अभी सबसे अधिक है। सरकारों की इस पर नजर है और वो देख रही हैं कि क्या हो रहा है। वो इसे रोकने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं।खराब एकाधिकार, खराब परिणामतकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को नष्ट किए बिना अधिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और कुछ कंपनियों तक केंद्रित नहीं रहना बहुत महत्वपूर्ण है। आखिरकार, बड़े तकनीकी खिलाड़ियों ने बहुत ज्यादा निवेश किए हैं, जिनसे AI को जिंदगी मिल रही है और संभवतः ज्यादा से ज्यादा उत्पादकता और समृद्धि के वादों को पूरा कर रही हैं। इस कारण उनका एकाधिकार अच्छा लगता है जो अर्थव्यवस्था के लिए योगदान के लिहाज से बहुत फायदेमंद है।यदि उन्होंने बाजार पर वर्चस्व की जगह इनोवेशन पर जोर दिया तो स्थिति बहुत खराब नहीं है, लेकिन यह अब हो क्या रहा है? टेक्नॉलजी सेक्टर को रेग्युलेट करने के लिए सरकारी प्रयासों से मौजूदा कंपनियों को ही मजबूती मिलता जान पड़ता है ना कि नए प्रतिस्पर्धियों के फलने-फूलने का आधार तैयार होता है। उदाहरण के लिए, उपभोक्ताओं की गोपनीयता की सुरक्षा को संरक्षित करने के नियम तकनीकी कंपनियों की संचालन लागत बढ़ा देते हैं। ऐसे में बड़े खिलाड़ियों को लॉबिंग के जरिए अपना पांव और मजबूती से जमाने का अवसर मिल जाता है।सिर्फ एक दशक में इंटरनेट बिजनस ने लॉबिंग पर अपना खर्च पांच गुना कर लगभग 10 करोड़ डॉलर तक पहुंचा दिया है। वर्ष 2012 की शुरुआत के समय टॉप 10 अमेरिकी कंपनियों में किसी बड़ी टेक कंपनी का नाम नहीं था। अब तीन हैं; ऐमजॉन और मेटा इनमें क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर हैं। इस पैमाने पर वो खराब एकाधिकार के उदाहरण हैं जिससे राजनीतिक प्रभावों के जरिए उद्योग जगत पर राज करते हैं।चाहे जैसे भी हो, एकाधिकार जितना लंबा होगा, उतनी ही कम गुंजाइश होगी कि एकाधिकारवादी कंपनियां बाजार और प्रतिस्पर्धा के लिहाज से कुछ अच्छा करेंगी। समाज को उनके किसी भी योगदान के एवज में प्रतिस्पर्धा घटाने और सबकुछ केंद्रीकृत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर वैसे उद्योग में जो पुराने के विध्वंस और नए के सृजन पर ही आधारित है। तकनीक के क्षेत्र में इनोवेशन की आई नई लहर पर विशालकाय टेक कंपनियों का ही दबदबा है, यह सिस्टम में गहरी खामी की ओर इशारा करता है।रुचिर शर्मा एक लेखक और वैश्विक निवेशक हैं।