स्वतंत्रता संग्राम की बलि वेदी पर आजादी के अनगिनत दीवानों ने अपने प्राण तक न्यौछावर किए। कई महिलाओं का सुहाग उजड़ा। कई मां की गोंदे सूनी हो गईं। कई बहनों से उनके भाई की वो कलाई छिन गई जिस पर वो राखी बांधतीं आईं थीं। आखिरकार लंबे संर्घष के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ। लेकिन देश का बंटवारा भी हो चुका था। मजहब के आधार पर बंटवारा। भारत से कटकर एक नया मुल्क पाकिस्तान बन चुका था। भारत के दोनों तरफ पाकिस्तान। पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश)। भारत के हिस्से वाले इलाकों में 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतें थीं। कुछ ऐसा ही हाल पाकिस्तान वाले हिस्से का भी था। इन देसी रियासतों का विलय नए-नए आजाद हुए देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती थीं। कुछ रियासतें ऐसी थीं जहां शासक मुस्लिम था मगर ज्यादातर आबादी हिंदू और वहां के शासक पाकिस्तान में विलय चाहते थे। जम्मू-कश्मीर का मसला इससे उलट था। ज्यादातर आबादी मुस्लिम मगर महाराजा हिंदू। शुरुआत में महाराजा विलय के पक्ष में नहीं थे, वह चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर एक अलग देश बने। लेकिन तब की जवाहरलाल नेहरू सरकार ने और खासकर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इन रियासतों का विलय कराया। समझा-बुझाकर, मान-मनौव्वल से और जरूरत पड़ने पर सख्ती दिखाकर। तिनका-तिनका जोड़कर जैसे चिड़ियां घोंसला बनाती है, वैसे ही एक-एक सियासत जोड़कर आधुनिक भारत की नींव रखी गई। आइए एक नजर डालते हैं कश्मीर, हैदराबाद, त्रावणकोर, मणिपुर, जूनागढ़, भोपाल, जोधपुर जैसे कुछ प्रमुख देसी रियासतों के भारत में विलय पर।जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान ने किया हमला तब खुली महाराजा हरि सिंह की आंखदेसी रियासतों के विलय की बात हो तो जम्मू और कश्मीर के विलय की कहानी के बिना अधूरी होगी। रियासत के शासक महाराजा हरि सिंह थे। आजादी के वक्त वह तय ही नहीं कर पा रहे थे कि क्या करें। उनके सामने भारत या पाकिस्तान में विलय का विकल्प था। विलय को लेकर उनकी भारत के साथ बातचीत चल रही थी लेकिन महाराजा असमंजस में थे। वह जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र देश के रूप में देखना चाहते थे। इसी बीच अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने कबाइली लड़ाकों से जम्मू-कश्मीर पर हमला करा दिया। हमले में पाकिस्तानी फौज भी शामिल रही। पाकिस्तानी हमले से महाराजा के हाथ-पांव फूल गए और उन्होंने तत्काल भारत से मदद की भीख मांगी। 27 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में बिना शर्त विलय के समझौते पर दस्तखत किए। भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर से कबाइली लड़ाकों और पाकिस्तानी फौज को खदेड़ना शुरू किया। हालांकि, उसी बीच संयुक्त राष्ट्र में भारत ने संघर्ष-विराम का ऐलान कर दिया, जिस वजह से जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के अवैध कब्जे में चला गया।हैदराबाद के निजाम के खतरनाक प्लान पर ‘ऑपरेशन पोलो’ से फिरा पानीकश्मीर के अलावा हैदराबाद का मामला भी बड़ा दिलचस्प था और संगीन भी। वहां के निजाम राष्ट्रमंडल का सदस्य रहते हुए हैदराबाद को एक अलग देश के तौर पर देखना चाहते थे। निजाम उस वक्त भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे। हैदराबाद की अपनी अलग सेना, रेलवे और डाक तार विभाग भी था। निजाम ने रजाकारों की निजी मिलिशिया यानी प्राइवेट आर्मी भी रखी थी जिसका मुखिया कासिम राजवी था। रियासत की 85 फीसदी आबादी हिंदू थी और शासक मुस्लिम। ज्यादातर लोग भारत में विलय के पक्ष में थे लेकिन निजाम के दिल में कुछ और ही चल रहा था। निजाम मोहम्मद अली जिन्ना के संपर्क में थे। वह गोवा में बंदरगाह बनाने को लेकर पुर्तगाल के साथ भी बातचीत कर रहे थे। मकसद वहां नौसैनिक अड्डा बनाने का था। निजाम ने भारत में विलय से इनकार कर दिया। सितंबर 1947 में निजाम और भारत सरकार में एक साल तक यथास्थिति बनाए रखने का समझौता हुआ। भौगोलिक समीकरण हैदराबाद के पक्ष में नहीं थे। चारों तरफ भारत और बीच में हैदराबाद के रूप में स्वतंत्र देश कतई व्यावहारिक नहीं था। लेकिन भारत संयम के साथ यथास्थिति बरकरार रखते हुए वेट ऐंड वॉच की मुद्रा में था। दूसरी तरफ, निजाम की निजी मिलिशिया यानी रजाकारों ने पूरी रियासत में तांडव मचाना शुरू कर दिया। गैर-मुस्लिमों पर हमले, लूट-पाट, अत्याचार। ट्रेनों को रोककर गैर-मुसलमान यात्रियों पर हमले कर रहे थे। 22 मई 1948 को रजाकारों ने गंगापुर स्टेशन पर ट्रेन में सफर कर रहे हिंदू यात्रियों पर हमला किया। उनकी इन करतूतों से पूरे भारत में आम जनमानस काफी उद्वेलित हुआ। भारत सरकार पर भी सख्त कदम उठाने का दबाव बढ़ने लगा। सरदार पटेल का धैर्य भी जवाब दे गया। आखिरकार उन्होंने सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुना। 13 सितंबर 1948 को भारत ने ‘ऑपरेशन पोलो’ शुरू किया। 5 दिन के अंदर निजाम की हेकड़ी खत्म हो गई। 17 सितंबर को निजाम और उनकी सेना ने सरेंडर किया। राजाकारों पर बैन लगा। 23 सितंबर को निजाम ने हैदराबाद के भारत में विलय का ऐलान कर दिया। (तस्वीर में दिख रहा है कि हैदराबाद के निजाम एयरपोर्ट पर सरदार पटेल का स्वागत करने पहुंचे हैं )जूनागढ़ पर थी पाकिस्तान की नजर, यूं हुआ भारत में विलयआजादी के बाद हिंदू बहुल जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया। इस देसी रियासत की सीमा पाकिस्तान से लगती भी नहीं थी। जूनागढ़ के नवाब की इस चालबाजी से भारत नाखुश था। उसे डर था कि अगर जूनागढ़ पाकिस्तान में गया तो रिसायत में उथल-पुथल मच जाएगी, सांप्रदायिक हिंसा और ज्यादा भड़क जाएगी। समझाने के बाद भी जब जूनागढ़ के नवाब अपने रुख पर अड़े रहे तो सरकार ने जूनागढ़ रियासत के तहत आने वाले दो छोटे-छोटे राज्यों को अपने में मिला लिया। जूनागढ़ रियासत की सप्लाई लाइन काटकर चारों तरफ सेना लगा दी गई। बॉम्बे में जूनागढ़ की एक अंतरिम सरकार भी गठित कर दी गई। दबाव बढ़ने के बाद नवाब कराची भाग गए और जूनागढ़ के भारत में मिलने का रास्ता साफ हुआ। फरवरी 1948 में बाकायदा जनमत संग्रह कराया गया जिसमें 90% से ज्यादा लोगों ने भारत को चुना।भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ने जनआंदोलन को सख्ती से कुचला, पटेल के दखल पर आया होशभोपाल रियासत भी हिंदूबहुल थी। ज्यादातर आबादी हिंदू और शासक मुस्लिम। भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ने कहा कि उनकी रियासत अलग देश के रूप में होगी। वह ऐसी रियासतों को मिलाकर एक अलग देश बनाना चाहते थे जो न भारत में शामिल होना चाहती थीं न पाकिस्तान में। नवाब हमीदुल्ला बॉलीवुड ऐक्टर सैफ अली खान के पिता मंसूर अली खान पटौदी यानी टाइगर पटौदी के सगे नाना थे। नवाब ने योजना के तहत 1948 में पाकिस्तान के कराची में बैंक ऑफ भोपाल की एक ब्रांच खुलवाई और यहां का सारा पैसा वहां भेज दिया। दिसंबर 1948 में नवाब हमीदुल्लाह के खिलाफ रियासत में जनआंदोलन शुरू हुआ। नवाब ने उसे सख्ती से कुचलने की कोशिश की और कई आंदोलनकारियों को क्रूरता से मार डाला गया। इसके बाद आखिरकार सरदार पटेल को दखल देना पड़ा। उन्होंने वीपी मेनन को दूत बनाकर भोपाल भेजा। तब जाकर 1 जून 1949 को भोपाल का भारत में विलय हुआ। नवाब हमीदुल्लाह इंग्लैंड चले गए। उनकी बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान पाकिस्तान में चली गईं। छोटी बेटी साजिदा पटौदी खानदान की बहू थी।जिन्ना के बहकावे में त्रावणकोर के दीवान का बढ़ गया था हौसला1946 आते-आते ये साफ हो चुका था कि भारत ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा नहीं रहेगा। उस वक्त त्रावणकोर के दीवान सीपी रामास्वामी इस बात पर अड़ गए कि अंग्रेजों के जाने के बाद उनका राज्य स्वतंत्र रहेगा। उन्होंने ऐलान किया कि त्रावणकोर के राजा थिरुनल बलराम वर्मा एक अलग देश के पक्ष में हैं। ये रियासत खनिज संपदा के मामले में समृद्ध था। मोहम्मद अली जिन्ना खुलकर त्रावणकोर के दीवान के समर्थन में आ गए जिससे उनका हौसला बढ़ गया। जिन्ना दक्षिण भारत में एक अलग देश की कल्पना करके खुश हो रहे थे। दीवान जिन्ना के बहकावे में आ गए थे। उधर त्रावणकोर की प्रजा में उनके रुख को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा था। जगह-जगह सीपी अय्यर के खिलाफ लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। जुलाई 1947 में उन पर जानलेवा हमला भी हुआ जिसमें वह बाल-बाल बच गए। सच भी है, भय बिनु होई न प्रीत। इसके बाद त्रावणकोर के राजा का दिल बदला और 30 जुलाई 1947 को त्रावणकोर भारत का हिस्सा बन गया।जोधपुर रियासत के राजा को जिन्ना ने दिया था बंदरगाह का लालचआजादी के बाद जोधपुर रियासत के राजा हनवंत सिंह पाकिस्तान के साथ तोल-मोल की कोशिश कर रहे थे। रियासत की ज्यादातर आबादी हिंदू थी और राजा भी हिंदू। लेकिन राजा मौके को भुनाने के लिए सौदेबाजी कर रहे थे। जिन्ना ने उन्हें कराची के बंदरगाह पर पूर्ण नियंत्रण का लालच दिया था इसलिए उनका दिल डोल रहा था। मौके की नजाकत को भांपते हुए सरदार पटेल ने दखल दी। उन्होंने राजा को संदेश भिजवाया और समझाया कि क्यों भारत में रहना उनके और रियासत की प्रजा के लिए फायदेमंद है। अच्छी बात ये रही कि राजा हनवंत सिंह शुरुआती आनाकानी के बाद भारत में विलय को राजी हो गए। इस तरह जोधपुर रियासत का भारत में विलय हुआ।मणिपुर के महाराजा 1949 में रियासत का भारत में विलय के लिए हुए राजीभारत जब आजाद हुआ तब मणिपुर एक स्वतंत्र रियासत थी। हालांकि बाद में मणिपुर के महाराजा ने 1949 में अपनी रियासत का भारत में विलय का फैसला किया। इस तरह मणिपुर भारत का हिस्सा बना। आजकल मणिपुर चर्चा में है लेकिन गलत वजहों से। पूर्वोत्तर का ये सूबा पिछले 3 महीने से ज्यादा वक्त से हिंसा की चपेट में है। जातीय हिंसा में अबतक 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।