लंबे अरसे बाद आखिर कांग्रेस को उसकी सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई मिल गई। अगर कांग्रेस की इस सबसे अहम इकाई, यानी कांग्रेस वर्किंग कमिटी का स्ट्रक्चर देखें, तो यह हर तरीके से संतुलन साधने की कवायद नजर आती है। चाहे पार्टी में सत्ता का केंद्र समझे जाने वाले विभिन्न बिंदुओं के बीच संतुलन की बात हो या सामाजिक संतुलन बनाने की और युवा जोश के साथ-साथ अनुभवी और सीनियर नेताओं की टीम को जोड़ने की बात हो या फिर आगामी चुनाव संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए टीम बनाने की, सबका मूल कारक संतुलन में छिपा है। कांग्रेस की यह कार्यकारिणी भले ही कांग्रेस हाईकमान के संयुक्त प्रयासों का परिणाम कही जा रही हो, इसमें मल्लिकार्जुन खरगे की छाप साफ नजर आती है। पार्टी अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद खरगे ने विभिन्न सत्ता केंद्रों के बीच संतुलन बनाते हुए पार्टी में बदलाव करने की कोशिश की है, जिसका असर भी दिखता है। खरगे ने एक झटके में सारे बदलाव कर देने के बजाय रूपांतरण का ऐसा तरीका चुना, जहां बदलाव तो हो, लेकिन सतह पर गुटबाजी न दिखे। इसका एक बड़ा उदाहरण असंतुष्ट गुट जी-23 को CWC में दी गई जगहों में दिखाई देता है। मुकुल वासनिक और आनंद शर्मा जैसे अनुभवी नेता हों या फिर अध्यक्ष पद की रेस में खरगे के प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर, सबको CWC सदस्य के तौर पर जगह दी गई। वहीं मनीष शर्मा और वीरप्पा मोइली को स्थायी आमंत्रितों की सूची में रखकर उनकी आवाज को भी मौका देने की मांग मान ली।पायलट को तवज्जोनई CWC में आगामी चुनावों की आहट साफ सुनाई देती है। राजस्थान में जिस तरह से छह नेताओं को CWC में जगह मिली है, उससे साफ है कि कांग्रेस इस राज्य में अपनी सत्ता वापसी को कितना महत्व दे रही है। पायलट के अलावा भंवर जितेंद्र सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश चौधरी, प्रदेश के जल संसाधन मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय और कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा को जगह दी गई है। CWC के जरिए कहीं न कहीं राज्यों में चल रही गुटबाजी को भी दूर करने की कोशिश है। सचिन पायलट को CWC में रखकर कांग्रेस हाईकमान ने गहलोत और पायलट के बीच चली आ रही रस्साकशी को खत्म करने के लिए उनके बीच संतुलन साधने की कोशिश की है। इसमें गहलोत और पायलट दोनों के लिए ‘फील गुड’ का भाव है। जहां एक ओर CWC में आने से पायलट का कद बढ़ा है और केंद्रीय राजनीति में उनकी भूमिका बढ़ने जा रही है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान में गहलोत के लिए काफी हद तक मैदान खुला छोड़ दिया गया है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में तमाम बड़े नेताओं- कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और दीपेंद्र हुड्डा का CWC में आना संकेत है कि वहां पार्टी अभी भी पूर्व सीएम बीएस हुड्डा पर दांव आजमाना चाहती है।भले विपक्षी एकता के मंच पर कांग्रेस पुरजोर तरीके से ‘इंडिया’ की बात कर रही हो, लेकिन पार्टी अपने हितों को भी नहीं भूली है। वेस्ट बंगाल से CWC में कांग्रेस ने उन दो अहम चेहरों अधीर रंजन चौधरी और दीपा दास मुंशी को जगह दी है, जो सीएम ममता बनर्जी और TMC के मुखर आलोचक माने जाते हैं। इसी तरह दिल्ली में AAP के आलोचक अजय माकन और अलका लांबा को मौका दिया गया है। पार्टी ने कुछ ऐसे युवा चेहरों को भी मौका दिया है, जिनमें पार्टी भविष्य के मद्देनजर संभावनाएं देख रही है। पायलट के अलावा गौरव गोगोई और दीपेंद्र जैसे नाम इसमें लिए जा सकते हैं। चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस ने CWC के जरिए सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश भी की है। सचिन पायलट के जरिए गुर्जरों को खुश करने की कोशिश की है क्योंकि पूर्वी राजस्थान के साथ-साथ मध्य प्रदेश, यूपी, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और जम्मू कश्मीर में गुर्जर समाज रहता है। इनके जरिए इस समाज तक पहुंचने की कोशिश रहेगी। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह, कमलेश्वर पटेल और मीनाक्षी नटराजन को शामिल किया गया है, तो छत्तीसगढ़ से सीनियर नेता ताम्रध्वज साहू और फूलो देवी नेताम को रखा गया है। पार्टी कमलेश्वर पटेल और साहू जैसे चेहरों के जरिए OBC वोट बैंक को देख रही है तो नेताम ST का प्रतिनिधित्व करती हैं।आगे की राहCWC गठन के बाद आने वाले दिनों में देखना अहम होगा कि इनमें से कुछ चेहरों को क्या जिम्मेदारी दी जाती है। मसलन कुछ राज्यों के प्रभारी बदले जाने हैं तो कुछ राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष बदलने हैं। CWC में काफी नामों के पास कोई न कोई संगठनात्मक जिम्मेदारी है, लेकिन इन बदलावों में कई नाम ऐसे भी हैं, जिन्हें आने वाले वक्त में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। इनमें सचिन पायलट, गौरव गोगोई, दीपेंद्र सिंह हुड्डा, दीपा दास मुंशी, नासिर हुसैन, कमलेश्वर पटेल, सुदीप राय बर्मन, मीनाक्षी नटराजन, तारिक अहमद कर्रा जैसे नाम अहम माने जा रहे हैं। वहीं माना जा रहा है कि लंबे समय तक छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों का प्रभार संभाल चुके बीके हरिप्रसाद को एक बार फिर संगठन में अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। CWC के गठन के बाद चर्चा है कि आने वाले कुछ हफ्तों में पार्टी आगामी आम चुनावों के मद्देनजर अपने घर को दुरुस्त कर लेगी। मसलन जिन राज्यों में प्रभारी नहीं हैं या बदले जाने हैं, वहां नए प्रभारी बना दिए जाएंगे। इनमें फिलहाल महाराष्ट्र और पंजाब अहम हैं, जहां प्रभारी बदले जाने हैं। बिहार के प्रभारी भक्त चरणदास को लेकर भी चर्चा है, जहां बदलाव हो सकता है। देश का सबसे बड़ा सूबा यूपी इस बात के लिए चर्चा में है कि वहां की प्रभारी प्रियंका गांधी अपने प्रभार में बदलाव चाहती हैं। कहा जा रहा है कि दिल्ली में भी प्रदेश अध्यक्ष पद पर फैसला होने वाला है।