क्या चाहते हैं पहाड़ – evaluation of carrying capacity of hill stations

इन दिनों कुदरत हिमाचल और उत्तराखंड में आफत बरसा रही है। मूसलाधार बारिश और लैंड स्लाइड से अब तक 103 लोगों की मौत हो चुकी है। इस बीच हिल स्टेशनों की की कैरीइंग कपैसिटी को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मसले पर सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को ठीक ही कहा कि देश के हिल स्टेशनों की कैरीइंग कपैसिटी का मूल्यांकन बड़ा मसला है। अदालत ने संकेत दिया है कि अगले हफ्ते वह पहाड़ी राज्यों में इस तरह के मूल्यांकन के काम को आगे बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर सकती है। यह मामला ऐसे समय सामने आया है, जब पिछले करीब दो हफ्तों से मॉनसूनी बारिश दो पहाड़ी राज्यों– उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश- में कहर बरपा रही है। भूस्खलन के दिल दहला देने वाले दृश्य सामने आए हैं। कई जगहों से बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें गिरने, रोड और दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षतिग्रस्त होने की खबरें आई हैं। इन घटनाओं में दोनों राज्यों में अब तक 103 लोग मारे जा चुके हैं। जाहिर है, इन घटनाओं की रोशनी में इस मसले की अहमियत काफी बढ़ गई है। लेकिन तथ्य यह है कि वहां हालात काफी पहले से खराब हो रहे थे। खासतौर पर जोशीमठ में जमीन धंसने से कुछ समय पहले ही काफी लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। खैर, ग्रीन ट्राइब्यूनल्स और अलग-अलग अदालतों के सामने अलग-अलग रूपों में यह मसला पहुंचता रहा है। इसी याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बताया कि एक अन्य मामले में उत्तराखंड के अलमोड़ा स्थित जीबी पंत नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन एन्वायरनमेंट एंड सस्टेनेबल डिवेलपमेंट ने हिल स्टेशनों की कैरीइंग कपैसिटी के मूल्यांकन को लेकर दिशानिर्देश तैयार किए थे, जिन्हें 2020 में सुप्रीम कोर्ट में सबमिट किया जा चुका है।हालांकि बेंच ने साफ किया कि इस तरह के मूल्यांकन का काम किसी एक संस्थान पर नहीं छोड़ा जा सकता। निश्चित रूप से देश के प्रमुख संस्थानों से इस क्षेत्र के जाने-माने विशेषज्ञों की देखरेख में ही यह काम होना चाहिए ताकि इस पर तात्कालिकता का प्रभाव एक हद से ज्यादा न हो। हालांकि तात्कालिक घटनाएं बताती हैं कि बरसों से इस संवेदनशील मुद्दे की अनदेखी होती रही है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का इस पर ध्यान देते हुए आवश्यक पहल करना काफी मायने रखता है। लेकिन यह बात भी नहीं भुलाई जा सकती कि पहाड़ की आबोहवा, जलवायु और भौगोलिक बनावट के साथ छेड़छाड़ का सिर्फ एक पहलू नहीं है। टूरिस्टों की बढ़ी हुई संख्या को नियंत्रित करना जरूरी है, लेकिन इन क्षेत्रों के विकास के ढांचे का सवाल भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस पर संपूर्णता में केंद्र और राज्य सरकारों को ही सोचना और फैसला करना है। यह काम विशेषज्ञों की कोई एक समिति गठित कर देने या उसकी सिफारिशें आ जाने भर से नहीं होता। यह सुनिश्चित करना ज्यादा जरूरी है कि ऐसे सिफारिशें पहले की अन्य विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्टों की तरह धूल खाती पड़ी न रह जाएं। अगर सुप्रीम कोर्ट की पहल सरकारों को पहाड़ी क्षेत्रों की खास बनावट और उनकी विशिष्ट जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना सके तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।एनबीटी डेस्क के बारे मेंNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐपलेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें