नई दिल्ली: चीन किसी को बख्शने वाला नहीं है। बीते कुछ दिनों में उसने यह दिखा दिया है। वह किसी का सगा नहीं है। हाल में ड्रैगन ने जो नक्शा जारी किया है, उससे उसके मंसूबे बिल्कुल साफ हो गए हैं। अब भी जिसकी आंख न खुले तो उसका भगवान ही मालिक है। क्या रूस क्या भारत और क्या नेपाल, ताइवान, मलेशिया। उसने तमाम देशों के हिस्सों पर अपना दावा ठोक दिया। उसके नए मैप ने हड़कंप मचा दिया। कुछ समय पहले तक जिन देशों का रुख किसी वजह से नरम था वो भी चीन की इस हरकत से सकते में आ गए। इन सभी ने एक सुर में आपत्ति जताई। इस नक्शे में रूसी द्वीप को अपना बताकर चीन ने उसकी नाराजगी भी मोल ले ली। उसने भारत के अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को भी अपने हिस्से में दिखा दिया। यह कोई गलती-गफलत नहीं है। चीन ने सोच-समझकर ऐसा किया है। सवाल यह है कि आप और हम तो जमीन जायदाद के झगड़े सुलझाने के लिए देश की अलग-अलग अदालतों में चले जाते हैं। लेकिन, जब अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा कोई विवाद होता है तो वह कहां सुलझता है? कोई देश नक्शा कैसे बनाता है? आइए, यहां ऐसे ही सवालों के जवाब जानते हैं।चीन का पड़ोसियों की जमीन पर गंदी नजर रखना नया नहीं है। वह थोड़ा भी चूकने पर उसके गटकने को बिल्कुल तैयार बैठा रहता है। इसके लिए वह माहौल तैयार करता है। इस दिशा में उसका सबसे पहला कदम नक्शा होता है। लेकिन, इस बार तो उसने सभी हदें पार कर दीं। भारत तो भारत उसने रूस को भी नहीं छोड़ा। नए मैप में उसने रूस के एक द्वीप को अपने हिस्से में दिखा डाला। इस द्वीप का नाम बोल्शाई उस्सुरीस्की है। यह द्वीप रूस के खाबरोवस्क के पास है। इसे लेकर रूस और चीन के बीच तनाव भी रह चुका है।चीन के नए नक्शे पर घमासान, काठमांडू के मेयर ने रद की यात्रा, भारत की राह पर बढ़े मलेशिया-फिलीपीन्सचीन ने उठाया है कमी का फायदाहरेक देश की नक्शा बनाने की अलग एजेंसी होती है। इन नक्शों को संयुक्त राष्ट्र में जमा किया जाता है। विवादित सीमाओं को ग्रे डॉट्स के साथ छोड़ दिया जाता है। कुछ सालों में देश अपने-अपने नक्शों को अपडेट या रिवाइज करते हैं। ऐसा एक साइकिल में किया जाता है। इसे मैपिंग साइकिल कहा जाता है। मैपिंग साइकिल में कुछ गलतियों को इरादतन छोड़ा जाता है। चीन इसके लिए कुख्यात रहा है। वह ऐसा इसलिए कर पाता है क्योंकि मैपिंग साइकिल में गड़बड़ियों को ट्रैक करने की कोई अंतरराष्ट्रीय संस्था नहीं है। यह तो हो गया पहले सवाल का जवाब कि नक्शा बनता कैसे है।चीन ने तो अपने दोस्त को भी नहीं छोड़ा! नए नक्शे में रूस के एक द्वीप पर किया दावा, बढ़ सकती है टेंशनआखिर कहां सुलझता है सीमा विवाद?अब अपने दूसरे अहम सवाल की ओर बढ़ते हैं। वह यह है कि सीमा विवाद सुलझता कहां है। इस पर सुनवाई के लिए अंतरराष्ट्रीय कचहरी है। यह नीदरलैंड के हेग में बनी हुई है। इसे इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के नाम से जाना जाता है। हालांकि, दो देशों का सीमा विवाद एक जटिल विषय होता है। यह कोर्ट भी इस पर कठोर या यूं कहें कड़ा रुख नहीं रख पाता है। यह इस कोर्ट की सीमाओं को दर्शाता है। कठोर या सख्त रुख न रख पाने का कारण दो देशों के बीच तनाव बढ़ने की आशंका होती है। कोर्ट सीमा विवाद को लेकर समझौतों को देखकर अपना नजरिया रखता है। जब कोई रास्ता नहीं दिखता है तो इसे सुलझाने का जिम्मा दो देशों पर ही छोड़ दिया जाता है।