क्या है संविधान संशोधन का दायरा, पूर्व सीजेआई के संसद में दिए बयान को लेकर छिड़ी बहस – scope of constitutional amendment

नई दिल्लीः पिछले दिनों संसद में केंद्र की ओर से दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश को पारित कराने के बाद संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। दरअसल, संसद में GNCT एक्ट-2023 पर बहस के दौरान पूर्व चीफ जस्टिस और राज्यसभा के सदस्य रंजन गोगोई ने कहा कि संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर एक बहस योग्य मुद्दा है। इस पर बहस इतनी छिड़ी कि मौजूदा चीफ जस्टिस को कहना पड़ा कि पूर्व और रिटायर जज अगर कुछ कहते हैं तो वह उनका ओपिनियन हो सकता है लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है। आखिर यह पूरी बहस क्या है। यही नहीं पिछले दिनों पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद के मेंबर बिबेक देबरॉय ने नए संविधान की वकालत करते हुए लेख लिखा तो इसपर भी विवाद हुआ। हालांकि बाद में परिषद ने उनके लेख से किनारा कर लिया। आइए जानते हैं पूरी बहस को।क्या कहा गोगोई नेराज्यसभा में 7 अगस्त को GNCT संशोधन विधेयक 2023 पर बहस के दौरान पूर्व CJI रंजन गोगोई ने कहा कि कानून हो सकता है कि किसी को पसंद हो या न हो यह अलग विषय है, लेकिन इससे कानून मनमाना नहीं हो जाता है। संविधान की मूल संरचना का क्या यह उल्लंघन है? मूल संरचना बहस योग्य मुद्दा है और यह न्याय शास्त्रीय आधार है। इसके बाद कांग्रेस ने इस मामले में सवाल किया कि क्या सरकार को लगता है कि लोकतंत्र, स्वतंत्र न्यायपालिका, धर्मनिरपेक्षता, संघीय ढांचा और समानता आदि जो बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है वह बहस योग्य विचार है।पावर और उसका दुरुपयोग दो अलग बातें… आर्टिकल-370 की सुनवाई पर बोला सुप्रीम कोर्टइस मुद्दे का केंद्र है केशवानंद भारती केसजानकारों का कहना है कि जब तक केशवानंद भारती केस में 13 जजों की बेंच के फैसले को इससे बड़ी बेंच नहीं पलटती है, तब तक बेसिक स्ट्रक्चर के साथ कोई छेड़छाड़ संभव नहीं है। इस केस को समझने के लिए पहले 60 और 70 के दशक में चलना होगा। दरअसल हुआ यूं कि इंदिरा गांधी सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो सुप्रीम कोर्ट के सामने में टिक नहीं पा रहे थे। इंदिरा ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। इसके खिलाफ नानी पालकीवाला ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी और सरकार का फैसला निरस्त हो गया। राजा रजवाड़ों को मिलने वाले सरकारी भत्ते को इंदिरा सरकार ने निरस्त कर दिया। इस फैसले को भी चुनौती मिली और पालकीवाला ने सरकार के खिलाफ दलील देकर सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट से खारिज करवा दिया।मौलिक अधिकारों पर दिया था फैसला1967 में गोलकनाथ केस में सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों ने फैसला दे दिया था। जजमेंट में कहा गया कि सरकार मौलिक अधिकार में संशोधन नहीं कर सकती है। इन तीनों फैसलों को इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में 24वें, 25वें और 26वें संशोधन में निरस्त कर दिया। यहीं से केशवानंद भारती केस की दलील का बुनियाद तैयार हो गया था। 1972 में केरल सरकार ने भूमि सुधार कानून बनाए और इसके बाद सरकार ने मठ पर कई सारी पाबंदी लगानी शुरू कर दी। तब मठ प्रमुख केशवानंद भारती ने सरकार के फैसले को चुनौती दी और कहा कि संविधान के आर्टिकल-26 उन्हें धार्मिक कर्म करने का अधिकार देता है। उनके संवैधानिक अधिकार में दखल दिया जा रहा है। केशवानंद भारती की ओर से दाखिल अर्जी में इंदिरा सरकार के संविधान संशोधनों पर भी सवाल उठाया गया।हमें ये देखना है संविधान का उल्लंघन तो नहीं हुआ, सरकार की मंशा चाहे जो रही हो…370 पर दवे की दलील पर सुप्रीम कोर्टइन अहम सवालों पर किया गौरसुप्रीम कोर्ट के सामने कई संवैधानिक सवाल उठाए गए? केशवानंद भारती केस का विषय आर्टिकल-368 के तहत संविधान के संशोधन की शक्तियों का परीक्षण से संबंधित था। यानी आर्टिकल-368 के तहत संसद को संविधान में संशोधन के अधिकार की सीमाएं क्या हैं, इस बात का परीक्षण होना था। क्या संविधान संशोधन के जरिये मौलिक अधिकार वापस लिया जा सकता है? संविधान संशोधन की सीमाएं क्या है? केशवानंद भारती केस से संबंधित वाद की सुनवाई के लिए 13 जजों की संवैधानिक बेंच का गठन किया गया।इंदिरा सरकार-पालकीवाला थे आमने-सामनेतत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि संसद चाहे तो संविधान संशोधन कर सकती है। संविधान यह नहीं कहता है कि संविधान संशोधन नहीं हो सकता है। केशवानंद भारती की ओर से पालकीवाला ने दलील दी कि संविधान कोई निर्जीव दस्तावेज नहीं है, बल्कि उसकी एक आत्मा है। बेसिक स्ट्रक्चर संविधान की आत्मा है। उसे किसी भी हाल में संविधान संशोधन के जरिये छूआ नहीं जा सकता है।Bibek Debroy News: PM मोदी के थिंक टैंक ने बैठे बिठाए लालू यादव को थमाया हथियार, ब्रह्मास्त्र बनाकर 2024 में BJP पर करेंगे वार!कौनसे विषय हैं बेसिक स्ट्रक्चर13 जजों की बेंच ने कहा कि संविधान में संशोधन का अधिकार संसद को है, लेकिन संविधान के मूल संरचना यानी बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं बदला जा सकता। बेसिक स्ट्रक्चर क्या है, यह सुप्रीम कोर्ट देखेगा। पालकीवाला ने मूल संरचना का सिद्धांत दिया था, जिसके आधार पर जजमेंट हुआ वह भारतीय ज्यूडिशयरी के लिए ध्रुव तारा साबित हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान संशोधन कर बेसिक स्ट्रक्चर यानी मूलभूत ढांचे में न तो छेड़छाड़ हो सकता है और न ही उसे खत्म किया जा सकता है। इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि की संविधान की सर्वोच्चता, लोकतांत्रिक गणराज्य, संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका की शक्ति का विभाजन और संघीय ढांचा, बेसिक स्ट्रक्चर कहा जाएगा। ज्यादातर जजों ने प्रस्तावना, मौलिक अधिकार और कर्तव्य को संविधान का मूलभूत ढांचा माना था।