नई दिल्ली : कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे ने पार्टी की कमान संभालने के करीब दस महीने बाद रविवार को अपनी सबसे अहम टीम कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की तस्वीर साफ कर दी। पहली नजर में CWC की लिस्ट देखकर समझ में आता है कि लिस्ट बनाने को लेकर न सिर्फ भरपूर मंथन किया गया, बल्कि तमाम खेमों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश भी की गई। यह बात और है कि इस कवायद में CWC अपने आप में जंबो टीम बन गई। हालांकि रायपुर के संकल्प शिविर में कांग्रेस सदस्यता, पीसीसी और एआईसीसी डेलिगेट्स के बढ़ती संख्या के आधार पर तय हुआ था कि नई CWC में 23 की बजाय 30 सदस्य होंगे, लेकिन विभिन्न बिंदुओं के बीच संतुलन साधने की कवायद में यह संख्या 39 तक पहुंच गई। हालांकि इस टीम में ज्यादातर चेहरे पुराने ही हैं, लेकिन कुछ चेहरों को जगह देकर नयापन लाने की कोशिश की गई है।पायलट की नाराजगी कम करने की कोशिशइसमें सबसे अहम नाम राजस्थान के युवा नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का है। वहां सीएम अशोक गहलोत और पायलट के बीच चल रही खींचतान को खत्म करने के लिए जो फॉर्म्युला निकाला गया था, उसमें पायलट को केंद्र में लाना था। पायलट को CWC में जगह देकर कहीं ना कहीं उनकी नाराजगी को कम करने की कोशिश की गई है। वैसे तो कांग्रेस के असंतुष्ट गुट G-23 की नाराजगी खरगे के नामांकन के दौरान ही कम होने लगी थी, लेकिन हालिया CWC में उस गुट के कई अहम चेहरों को जगह देकर असंतुष्टों की नाराजगी को मिटाने की कोशिश की गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा और शशि थरूर को भी जगह मिली है। थरूर ने तो खरगे के खिलाफ अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा था। थरूर के अलावा, मनीष तिवारी और वीरप्पा मोइली को भी रखा गया है। वहीं नए चेहरों में अशोक चौहान, दीपक बावरिया, गौरव गोगोई, सैयद नासिर हुसैन का नाम नया है।राहुल और सोनिया गांधी से कई मीटिंग हुईंसूत्रों के मुताबिक, CWC की तस्वीर को लेकर खरगे की राहुल गांधी और सोनिया गांधी से कई दौर की मीटिंग हुई, जिसके बाद यह फैसला लिया गया। कांग्रेस की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई में पार्टी के किसी भी मुख्यमंत्री को जगह नहीं मिली है। हालांकि नई टीम का ऐलान करते समय हाईकमान ने चुनाव संभावित राज्यों और वहां के विभिन्न समीकरणों का बखूबी ध्यान रखा है। राजस्थान में अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए चुनाव में उतरने वाली कांग्रेस ने CWC में सबसे ज्यादा चेहरे इसी राज्य से दिए हैं। राजस्थान के कोटे से पायलट के अलावा भंवर जितेंद्र सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश चौधरी, प्रदेश के जल संसाधन मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय और कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा को जगह दी गई है। जबकि मध्य प्रदेश से दिग्विजय सिंह, कमलेश्वर पटेल और मीनाक्षी नटराजन को शामिल किया गया है तो वहीं छत्तीसगढ़ से सीनियर नेता ताम्रध्वज साहू और फूलो देवी नेताम को रखा गया है।पार्टी में हर वर्ग को साधने की कोशिश50 साल या उससे कम उम्र के चेहरों में पायलट के अलावा, गौरव गोगोई, दीपेंद्र हुड्डा, मीनाक्षी नटराजन, अलका लांबा, प्रणीति शिंदे, सचिन राव, यशोमती ठाकुर, सुप्रिया श्रीनेत शामिल हैं तो वहीं सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, अंबिका सोनी, मीरा कुमार, कुमारी सैलजा, दीपा दास मुंशी, प्रतिभा सिंह, मीनाक्षी नटराजन, फूलो देवी नेताम, रजनी पाटिल, यशोमती ठाकुर, सुप्रिया श्रीनेत, प्रणीति शिंदे और अलका लांबा को जगह देकर महिलाओं के प्रतिनिधित्व को रेखांकित करने की कोशिश की गई है। दूसरी ओर दलित कोटे में खरगे के अलावा, मुकुल वासनिक, मीरा कुमार, चरणजीत सिंह चन्नी, कुमारी शैलजा, के राजू और प्रणीति शिंदे को जगह मिली है। जबकि मुस्लिम चेहरों में तारिक अनवर, सलमान खुर्शीद, तारिक हमीद कर्रा, गुलाम अहमद मीर, सैयद नासिर हुसैन शामिल हैं।CWC: सचिन पायलट, G-23 गुट के नेता और चुनावी राज्यों का खास ख्याल, कांग्रेस की सबसे पावरफुल कमेटी में कौनपार्टी के अंदर नाराजगी और सवाल भीसूत्रों के मुताबिक, CWC की इस तस्वीर को लेकर पार्टी के अंदर थोड़ी नाराजगी और सवाल भी हैं। पंजाब के पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी पर चल रहे मामलों को देखते हुए पार्टी के अंदर सवाल उठ रहा है कि आखिर इन्हें CWC में जगह देने के पीछे क्या मजबूरी रही होगी? कुछ ऐसी ही नाराजगी अशोक चव्हाण को लेकर भी है। जबकि पार्टी में कुछ समय पहले शामिल होने वाले चेहरों को CWC में जगह मिलने पर भी असंतोष है। कन्हैया कुमार जैसे नामों के मद्देनजर यह असंतोष दिखाई दिया।संकल्प और प्रस्तावों को पीछे छोड़ा?पिछले साल उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में संगठन को लेकर प्रस्ताव पास किया गया था कि बूथ स्तर पर लेकर पार्टी की सर्वोच्च इकाई तक जो भी टीम तैयार होगी, उसमें 50 फीसदी प्रतिनिधित्व 50 साल से कम उम्र के युवाओं और महिलाओं को मिलेगा। इसके अलावा टीम ने दलित, ट्राइबल, ओबीसी और अल्पसंख्यकों को भी मौके दिए जाएंगे। चर्चा यह भी थी एक पद पर काम कर चुके नेता को पांच साल का कूलिंग पीरियड बिताना होगा, तभी उसे अगली जिम्मेदारी मिलेगी। उदयपुर के इस प्रस्ताव पर इस साल कांग्रेस के संकल्प शिविर में एक बार फिर सहमति की मोहर लगी, लेकिन लंबे इंतजार के बाद जब मलिकार्जुन खरगे की टीम सामने आई, तो वह पार्टी के अपने ही संकल्प और प्रस्तावों पीछे छोड़ती नजर आई। लोगों में CWC को लेकर काफी उत्सुकता और उम्मीदें थीं कि कांग्रेस का बदला हुआ और नया रूप दिखाई देगा, लेकिन इससे उलट CWC नई बोतल में पुरानी शराब की तरह नजर आई।