‘गिग वर्कर्स बिल’ पर राजस्‍थान सरकार की मुहर, कौन होते हैं ये, कैसे बदल सकती है पूरे देश में कहानी?

नई दिल्‍ली: राजस्‍थान सरकार ने बीते महीने प्‍लेटफॉर्म आधारित ‘गिग वर्कर्स बिल’ पारित किया है। इसकी चर्चा हर तरफ है। इसने देशभर के गिग वर्कर्स को उम्‍मीद की किरण दिखाई है। गिग वर्कर्स उन श्रमिकों को कहा जाता है जिनका काम अस्‍थायी होता है। दूसरे शब्‍दों में कहें तो ये किसी काम को टेम्‍परेरी तौर पर करते हैं। फिर बेहतर अवसर मिलने पर ये अपने काम को बदल लेते हैं। स्विगी, जोमैटो, उबर जैसे ऐप के जरिये समान डिलीवर करने वाले वर्कर्स इसका उदाहरण हैं। पूरे देश में गिग वर्कर्स की अच्‍छी खासी संख्‍या हो गई है। ऐसे वर्कर्स के साथ एक सबसे बड़ी दिक्‍कत है। वह यह है कि प्लेटफॉर्म्‍स अपने लिए काम करने वाले वर्कर्स को कर्मचारी न बता पार्टनर कहते हैं। इसके चलते ये वर्कर्स ऐसी तमाम सहूलियतों से दूर हो जाते हैं जो उन्‍हें मिलनी चाहिए। ये सोशल सिक्‍योरिटी के दायरे से बाहर रहते हैं। यानी न तो ये वर्कर्स न्यूनतम मजदूरी, बोनस, पीएफ के लिए कुछ कह सकते हैं। न इनके पास यूनियन बनाने का अधिकार होता है। पार्टनर होने के चलते एक मोबाइल नोटिफिकेशन से आईडी ब्लॉक कर उनकी काम से छुट्टी की जा सकती है। यूनियनों ने राजस्‍थान सरकार के कदम का स्‍वागत किया है। लेकिन, जमीन पर लागू करने में इसके साथ बहुत सारे पेच हैं।देश में कितने गिग वर्कर्स?नीति आयोग के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, देश में 77 लाख गिग वर्कर्स हैं। इनकी औसत मासिक सैलरी 18 हजार रुपये है। काम के घंटों की सीमा तय नहीं होती है। न इन वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा का फायदा मिलता है। राजस्‍थान में ‘प्‍लेटफॉर्म बेस्‍ड गिग वर्कर्स (रेजिस्‍ट्रेशन एंड वेलफेयर) बिल के पास होने से इनके लिए उम्‍मीद जगी है। केंद्र ने 2020 में गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा संहिता का प्रस्‍ताव किया था। लेकिन, अब तब कोड अमल में नहीं आया है।क्‍या कहता है ब‍िल?कुछ ने राजस्‍थान सरकार के इस कदम की आलोचना भी की है। इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। साथ ही कहा है कि इससे उपभोक्‍ताओं पर अतिरिक्‍त भार पड़ेगा। बिल में गिग वर्कर्स के रजिस्‍ट्रेशन का प्रस्‍ताव किया गया है। इन्‍हें सोशल सिक्‍योरिटी स्‍कीमों का फायदा देने की बात कही गई है। इनकी शिकायत सुनने का भी प्रस्‍ताव है। बिल में एक बोर्ड बनाने का प्रस्‍ताव है जिस पर गिग वर्कर्स को विभिन्‍न सोशल सिक्‍योरिटी स्‍कीमों का फायदा सुनिश्चित कराने की जिम्‍मेदारी होगी। इनमें एक्‍सीडेंटल और हेल्‍थ इंश्‍योरेंस के अलावा पेंशन, स्‍कॉलरशिप व अन्‍य चीजें शामिल हैं। डिजिटल प्‍लेटफॉर्म की कमाई का यह 1-2 फीसदी हो सकता है। इसके तहत सभी गिग वर्कर्स का पंजीयन कर कार्ड बनाया जाएगा। इससे वे राजस्थान सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए प्रार्थी हो जाएंगे। इनमें मुख्‍य रूप से ‘मुख्यमंत्री दुर्घटना बीमा योजना’ शामिल है। बोर्ड गिग वर्कर्स की शिकायत सुन उनका निवारण करेगा। साथ ही प्रत्येक प्लेटफॉर्म को 1-2% सेस प्रति ऑर्डर इस बोर्ड को देने होंगे। इसका इस्‍तेमाल गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए किया जाएगा।नीयत और नतीजे देखने की है जरूरतपब्लिक पॉलिसी के क्षेत्र में काम करने वाले तक्षशिला इंस्‍टीट्यूशन में असिस्‍टेंट प्रोफेसर अनुपम मानुर के मुताबिक, इसमें नीयत और नतीजों को देखने की जरूरत है। मसलन, अगर सभी प्रमुख फैसले वेलफेयर बोर्ड पर छोड़ दिए गए तो वह मनमानी शुरू कर सकता है। इससे बोर्ड का राजनीतिकरण होगा। पहले भी वेलफेयर फंड खुले हैं जिनमें सोशल सिक्‍योरिटी के मकसद से पैसा जुटाया गया। लेकिन, इन्‍होंने बढ़‍िया काम नहीं किया।वर्कर्स की क्‍या रही है समस्‍या?वर्कर्स कहते हैं कि प्‍लेटफॉर्म्‍स की ओर से आईडी ब्‍लॉक करना एक बड़ी समस्‍या है। छोटी सी गलती पर इसे ब्‍लॉक कर दिया जाता है। कई बार ऐसे ग्राहक मिल जाते हैं जो बिलकुल बेतुकी बातें करते हैं। इनकी शिकायतों पर भी आईडी ब्‍लॉक कर दी जाती है। फिर आईडी को खुलवाने में पैसे लगते हैं। राजस्‍थान में गिग वर्कर्स बिल के पीछे इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्‍ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आईएफएटी) जैसी यूनियनों का भी काफी हाथ है। मजदूर किसान शक्ति संगठन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता निखिल दुबे ने कहा कि पूरी दुनिया में गिग वर्कर्स की जिंदगी में सुधार के लिए काम हो रहा है। आईएफएटी के नेशनल सेक्रेटरी शेख सलाउद्दीन ने इसे गिग वर्कर्स की पहली जीत करार दिया है।