चांद पर लगी ‘मेक इन इंडिया’ का मुहर, देसी तकनीक से बने विक्रम और प्रज्ञान की सटीक चाल की दुनिया कायल – the stamp of ‘make in india’ on the moon, the precise movements of vikram and pragyan made from indigenous techniques will impress the world

लेखक : एएस किरण कुमारभारत ने बुधवार को चंद्रमा पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान की सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करवाकर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार कर लिया। चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर अब चंद्रमा की दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में अड्डा जमाकर बैठा है और चंद्रमा, उसके आंतरिक भाग और उसके चारों ओर के अत्यंत पतले वायुमंडल के बारे में मूल्यवान जानकारियां जुटाने के लिए तैयार है। उधर, लैंडिंग तक विक्रम में लिपटा छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर अब अपनी गति से लैंडिंग क्षेत्र को पार करते हुए अपना अन्वेषण शुरू कर चुका है।विक्रम को पृथ्वी से 150 किलोमीटर ऊंची चंद्रमा की कक्षा में ले जाने वाला चंद्रयान-3 का प्रॉपल्सन मॉड्यूल अब भी चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है। वहां चंद्रयान-2 का ऑर्बिटल मॉड्यूल भी मौजूद है, जो पिछले चार साल से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है और इसके विभिन्न पहलुओं पर प्रचुर मात्रा में जानकारियां भेज रहा है। हम वास्तव में भाग्यशाली हैं कि चंद्रमा की सतह पर भारत में बने लैंडर और रोवर के साथ-साथ हमारे दो अंतरिक्ष यान चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे हैं। यह सब भारत के गौरवशाली अंतरिक्ष परिवार के हजारों सदस्यों की सूक्ष्म योजना, दृढ़ता और समर्पण का परिणाम है, जिनकी खुशी का ठिकाना नहीं है।चंद्रमा की वायुविहीन सतह पर उतरना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है। यही कारण है कि केवल चार देशों- पूर्व सोवियत संघ (अब का रूस), अमेरिका, चीन और अब भारत ने ही इस लक्ष्य को हासिल किया है। भारत के लिए और भी महत्वपूर्ण बात यह है कि चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में हुआ है, जो बहुत कठिन लेकिन रिसर्च के लिहाज से बहुत आकर्षक क्षेत्र है। इस क्षेत्र में पानी के बर्फ होने की संभावना से वैज्ञानिकों का जोश हाई है।चंद्रयान पर आज फिर गुड न्यूज : और हल्के से ब्रेक लगाकर चांद के और करीब पहुंच गया विक्रमइस क्षेत्र में प्रारंभिक सौर मंडल के अवशेषों की मौजूदगी का भी अनुमान है। यही कारण है कि चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र भारत, अमेरिका, रूस, चीन और जापान के अंतरिक्ष यान का लक्ष्य बन गया है। चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग से पहले के दिनों में रूस ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की भारत से रेस लगा ली। लेकिन भारत चंद्रयान-2 के समय से ही साउथ पोलर एरिया में सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास कर रहा था। उधर, रूस के पास 47 साल के अंतराल के बाद चंद्रमा का एक्सप्लोरेशन फिर से शुरू करने के अपने कारण हैं।चंद्रयान-3 का 3,900 किलोग्राम वजनी लंबा सफर लगभग 40 दिनों तक चला। इस दौरान, इसरो ने बहुत ही सटीकता के साथ सभी योजनाबद्ध घटनाओं को अंजाम दिया, जिसमें इसकी अपनी LVM3 वाहन द्वारा लॉन्च करना, चंद्रमा की सतह पर उतारने के लिए इसे सही रास्ते पर रखना, चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करना, विक्रम को अलग करने और फिर लैंडिंग शामिल थी। यह इसरो के ऐनालिटिकल और मैनेजेरियल स्किल के साथ-साथ खास मौकों पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की क्षमता का भी परिचायक है।चांद पर किस हाल में है रोवर प्रज्ञान? इसरो चीफ सोमनाथ ने बताया अब आगे क्या होगाचंद्रयान-2 ने इन सभी ऑपरेशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था, सिवाय सॉफ्ट लैंडिंग के। इसलिए, लाखों भारतीयों के बीच सबसे अधिक उत्सुकता का विषय सॉफ्ट लैंडिंग ही था। इस तरह का कोई भी अंतरिक्ष यान ऑपरेशन उन लोगों के लिए भी बहुत तनावपूर्ण होता है जो इसे गंभीरता से करते हैं। जब चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर के चार रॉकेट इंजनों के ‘रेट्रो बर्न’ की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू हुई, तो पूरे भारत और दुनियाभर के लोगों ने सांसें थाम लीं।चंद्रयान-2 से सीखे गए सबक के मुताबिक कई तरह के एहतियात, डिजाइन में बदलाव और बैकअप सिस्टम के इंस्टॉलेशन के बावजूद इसरो के वैज्ञानिक लैंडिंग को लेकर आश्वस्त नहीं थे। लेकिन उनकी दृढ़ता और समर्पण रंग लाया, क्योंकि विक्रम ने चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में काफी सॉफ्ट लैंडिंग की। विक्रम लैंडर और उसमें मौजूद सौर ऊर्जा से चलने वाले प्रज्ञान रोवर के ठीक से काम करने के बाद, बाद वाले को उतरने का आदेश दिया गया और उसने एक विस्तारित रैंप से नीचे खिसकने के बाद वफादारी से ऐसा किया। जैसे ही प्रज्ञा चंद्रमा की मिट्टी पर राष्ट्रीय प्रतीक और इसरो के लोगो के लंबे समय तक चलने वाले प्रभावों के साथ अपने पहियों के निशान बनाते हुए प्राचीन दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में घूमना शुरू किया, चंद्रयान-3 के अधिकांश लक्ष्य हासिल हो गए।चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद चांद से आई पहली तस्वीर, विक्रम ने दिखाया चांद का नजाराचंद्रमा पर उतरने और घूमने के लिए आवश्यक स्वदेशी टेक्नॉलजी की क्षमता से दुनिया को वाकिफ करवा देने के बाद इसरो अगले 14 पृथ्वी दिनों के लिए विक्रम के तीन वैज्ञानिक उपकरणों और प्रज्ञान के दो उपकरणों का उपयोग करके इन-सिटू एक्सप्लोरेशन पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह वह अवधि है जब सूर्य लगातार लैंडिंग साइट पर चमकता रहेगा, जिससे विक्रम और प्रज्ञान के सौर पैनल रौशन हो जाएंगे। अब तक, इसरो केवल दूर से ही चंद्रमा का अध्ययन कर सकता था।विक्रम के तीन उपकरण – रामबा-एलपी, चेस्ट और आईएलएसए – चंद्रमा के तीन अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन करेंगे: इसके अत्यंत पतले वायुमंडल का घनत्व और परिवर्तन; चंद्रमा की सतह के तापीय चालकता गुण; और चंद्रमा की कम्पन चांद की आंतरिक संरचना के बारे में क्या बताते हैं। प्रज्ञान के दो स्पेक्ट्रोमीटर हमें चंद्रमा की सतह के रासायनिक, खनिज और तत्व संरचना को समझने में मदद करेंगे।विक्रम और प्रज्ञान ने चांद पर किया ऐसा काम, इसरो का दिल भी हो गया खुशअतीत में चंद्रमा समुद्र में नेविगेशन और समय मापने में बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। आज के अंतरिक्ष युग में यह पृथ्वी और सौर मंडल के विकास को समझने की कुंजी माना जाता है। यह केवल इसके कीमती जल, खनिज और ईंधन संसाधन ही नहीं हैं जो हमें लुभाते हैं, बल्कि एक दिन पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह दूर-दूर तक स्थित दुनिया की खोज के लिए प्राकृतिक आधार बन सकता है। चंद्रयान-3 की सफलता निश्चित रूप से भारत के भविष्य के प्रयासों के लिए एक मजबूत आधार का निर्माण करेगी।लेखक इसरो को पूर्व चेयरमैन हैं। मूल अंग्रेजी लेख हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) में प्रकाशित हुआ है।