नई दिल्ली: भारत ने इतिहास रच दिया है। भारत का चंद्रयान-3 मिशन पूरी तरह सफल हुआ है। इस मिशन के आखिरी 17 मिनट को लेकर सबके मन में सवाल था। चंद्रयान-3 की लैंडिंग पर पूरी दुनिया की नजरें थीं। चंद्रयान-3 के लिए सबसे अधिक चुनौती थी सॉफ्ट लैंडिंग के आखिरी 17 मिनट की। इसी 17 मिनट को सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण शुरुआत से बताया गया। चंद्रयान-2 आखिरी वक्त में इसी समय अपने टारगेट से चूक गया था। साल 2019 में सेफ लैंडिंग नहीं हुई थी और इससे सबक लेते हुए चंद्रयान-3 में कई अहम बदलाव किए गए थे। चांद पर उतरने के इन्हीं आखिरी 17 मिनट को टेरर मिनट कहा जाता है और इसके लिए इसरो ने इस बार खास तैयारी की थी।लैंडिंग से पहले लैंडर चांद की सतह से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर था। इस वक्त इसकी गति 1.68 किमी प्रति सेकंड की थी। इसके बाद यह 6.8 किलोमीटर की उंचाई पर आया जहां इसकी गति 350 मीटर प्रति सेकंड की होगी। इसके बाद दो इंजन बंद कर दिए गए। फिर लैंडर दो ही इंजन के साथ नीचे की ओर आया। इसके बाद लैंडर यहां से 6.8 किलोमीटर की उंचाई से 800 मीटर की ऊंचाई तक आया। इस समय स्पीड लगभग जीरो मीटर प्रति सेकंड थी। इसके बाद 150 मीटर तक सीधे उतरा।आखिरी समय में कैमरे और सेंसर से यह सुनिश्चित किया गया कि लैंडिग किया जाए या नहीं। 60 मीटर की ऊंचाई तक जाने के बाद यहां से चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग हुई। 30 किलोमीटर से लैंडिंग तक की पूरी प्रक्रिया ऐसी थी जिसने न सिर्फ वैज्ञानिकों की ही बल्कि देशवासियों की भी धड़कनें बढ़ा दी। इन 17 मिनट को ही मिनट्स ऑफ टेरर कहा जाता है। यही आखिरी 17 मिनट यह डिसाइड करने वाले थे कि चंद्रयान-3 सफल होगा या नहीं। पिछली बार की गलती को ठीक करते हुए इसरो ने इस बार इन्हीं 17 मिनट के फुलप्रूफ प्लान बनाया था।17 मिनट की इस रणनीति ने पूरे मिशन को सफल बना दिया। चंद्रयान -2 अपने अभियान में विफल रहा था क्योंकि इसका लैंडर विक्रम सात सितंबर, 2019 को लैंडिंग का प्रयास करते समय चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। चंद्रयान-3 अभियान चंद्रमा की सतह को छूने में और चार साल में इसरो के दूसरे प्रयास में रोबोटिक लूनर रोवर को लैंड करने में सफलता के बाद भारत चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में महारत रखने वाला अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद चौथा देश बन गया है।भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश और चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया है। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा था कि लैंडर की गति को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया सबसे चुनौतीपूर्ण और महत्वपूर्ण भी है। इसरो के अनुसार चंद्रमा की सतह और आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर के पास एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर) का समय होगा। हालांकि वैज्ञानिकों ने दोनों के एक और चंद्र दिवस तक सक्रिय रहने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है।