नई दिल्ली: इस वर्ष कुछ विधानसभा और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक गहमा-गहमी का एक और मुद्दा तैयार हो गया है। करीब छह साल तक 14 बार कार्यकाल विस्तार के बाद ओबीसी उप-वर्गीकरण आयोग ने सोमवार को अपने कार्यकाल के अंतिम दिन अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इसके साथ ही गेंद अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पाले में चला गया है। अब सरकार को तय करना है कि क्या वह मंडल आयोग द्वारा बनाए गए पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण ढांचे को फिर से परिभाषित करना चाहती है। एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि रोहिणी आयोग ने राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंप दी है। आयोग ने अपनी सिफारिशों में क्या-क्या कहा है, इसकी आधिकारिक जानकारी अभी सामने नहीं आई है। हालांकि अटकलों की कोई कमी नहीं है। रोहिनी आयोग की सिफारिशों को लेकर बहुत पहले से तरह-तरह बातें कही जा रही हैं।…ताकि ओबीसी की दबंग जातियां ही न खाते रहें आरक्षण की मलाईआयोग का गठन अक्टूबर 2017 में इस उम्मीद से किया गया था कि भाजपा सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग के उप-समूहों (OBC Sub-quotas) को चिह्नित करके उनके बीच 27% केंद्रीय कोटा को बांटने को उत्सुक है। उप-वर्गीकरण के पीछे का विचार विभिन्न ओबीसी समुदायों के बीच आरक्षण लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना है। शिकायत यह रहती है कि मजबूत जातियां अपने अच्छे आर्थिक और शैक्षिक स्तर के कारण बेहतर प्रतिस्पर्धी क्षमताओं के दम पर कमजोर जातियों के हिस्से के आरक्षण लाभों को हड़प लेती हैं। हालांकि, उम्मीद की जाती है कि पिछड़े वर्ग के लिए तयशुदा 27 प्रतिशत आरक्षण का हिस्सा हर उप-समूह को उचित मात्रा में मिले। कई लोगों का मानना है कि यह कवायद समाज के ‘सबसे पिछड़े’ लोगों को लुभाने की भाजपाई रणनीति का ही हिस्सा है।Bihar: बिहार में फिर सामने आया जातीय जनगणना का ‘जिन्न’, जानिए नीतीश के करीबी मंत्री ने क्या कहाराजनीतिक बवंडर उठने की आशंकारिटायर्ड जस्टिस जी. रोहिणी की अध्यक्षता वाले पैनल को शुरू में 12 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी, लेकिन तब से 14 बार विस्तार दिया गया। दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में अपनी हार के बाद भाजपा ने इस ओर बढ़ते कदम थोड़े धीमे कर दिए थे। उसे चिंता होने लगी थी कि ओबीसी की जातियों के अंदर उप-जातियों के निर्धारण की कवायद से कहीं विवाद न हो जाए जिसका उसे चुनावी नुकसान उठाना पड़ सकता है।UP Politics: अखिलेश यादव के पीडीए को बीजेपी ने लगाया पलीता, पूरा खेल समझ लीजिएअब मोदी सरकार के पाले में गेंदहालांकि, उप-वर्गीकरण का कोई भी प्रयास ओबीसी की ताकतवर जातियों का गुस्सा भड़का सकता है क्योंकि कुल 27% कोटे में उनका असीमित अधिकार है जो उप-जातियों के आधार पर हिस्सेदारी तय होने पर बहुत छोटे हिस्से तक सीमित हो जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि ये संख्या, संसाधन और राजनीतिक ताकत वाले समुदाय हैं। जब से उप-समूह की बात शुरू हुई है, तब से राजद जैसे मंडलवादी क्षेत्रीय दल मांग कर रहे हैं कि कुल ओबीसी आबादी में प्रत्येक पिछड़ी जाति के हिस्से के साथ-साथ सामान्य आबादी में ओबीसी के हिस्से का अंदाजा लगाने के लिए जाति जनगणना की जानी चाहिए। उनका तर्क है कि केवल जाति जनगणना से ही सरकार उप-वर्गीकरण का उचित काम कर सकती है।टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित मूल खबर यहां पढ़ें