नई दिल्ली: यह तस्वीर ऐतिहासिक है। इसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ मोहम्मद अली जिन्ना हैं। नेताजी उन दिनों कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे। वह देश की सबसे कद्दावर हस्तियों में शुमार थे। इस बीच जिन्ना की महत्वाकांक्षाएं हिलोरे मार रही थीं। उनके सिर पर मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान का भूत सवार हो गया था। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए भारत के उत्तर-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में अलग देश की मांग उठानी शुरू कर दी थी। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर जिन्ना के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस क्या कर रहे हैं? यह तस्वीर कब की है? इस तस्वीर से किस तरह का इतिहास जुड़ा है? ‘तस्वीर की कहानी’ की 9वीं कड़ी में यहां आज हम आपको इन सभी सवालों के जवाब देने जा रहे हैं। साथ ही हम यह भी बताएंगे कि इस मुलाकात के बाद स्थितियों ने कैसे करवट ली।नेताजी के साथ मोहम्मद अली जिन्ना की यह ऐतिहासिक तस्वीर 1935 की है। इसमें व्हाइट सूट में जिन्ना दाईं ओर बैठे हैं। यह वह वक्त था जब मुस्लिम लीग की कमान संभालने जिन्ना भारत लौटे थे। मुस्लिम लीग के मंसूबों का नेताजी को एहसास था। 1920 से ही कांग्रेस से जिन्ना को कड़ी टक्कर मिल रही थी। मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग उठाने लगी थी। पहले तो उसे बहुत समर्थन नहीं मिल रहा था। लेकिन, समय गुजरने के साथ इसके पक्ष में लोग आने लगे थे।जिस नहर से दुनिया में अमेरिका की शान, भारतीयों का था उसमें योगदान… दिलचस्प है इस तस्वीर की कहानी!अलग पाकिस्तान की मांग पर खुलकर बोलने लगे थे जिन्नाकांग्रेस और नेताजी भारत का किसी हाल में विभाजन नहीं चाहते थे। 1940 आते-आते जिन्ना की सोच खुली किताब बन चुकी थी। उन्होंने पाकिस्तान के गठन के लिए प्रस्ताव पारित किया था। लाहौर में बादशाही मस्जिद के पास मिंटो पार्क में जिन्ना ने बड़ी रैली को संबोधित किया था। इसमें जिन्ना ने हिंदुओं के खिलाफ खूब जहर उगला था। उन्होंने 2 घंटे भाषण दिया था। इसमें वह बोले थे कि हिंदू और मुसलमान हर नजरिये से अलग हैं। ऐसे में इनका साथ रह पाना मुमकिन नहीं है।शिमला समझौते पर हो रही थी बात कि अचानक शुरू हुई बारिश, इंदिरा गांधी ने अटल के सिर पर रखा था छाताजिन्ना को दिया गया था बड़ा ऑफर1940 के प्रस्ताव के बाद कांग्रेस ने जिन्ना को समझाने की कोशिश बढ़ा दी थी। नेताजी उस समय कांग्रेस अध्यक्ष थे। उन्होंने जिन्ना को बहुत बड़ा ऑफर किया था। नेताजी ने जिन्ना को आजाद भारत के पहले पीएम पद की पेशकश की थी। हालांकि, इसके साथ यह भी शर्त लगाई थी कि जिन्ना भारत के विभाजन की जिद छोड़ दें। फारूक अहमद डार की किताब ‘Jinnah’s Pakistan: Formation and Challenges of a State’ में इसका जिक्र मिलता है। इस पेशकश ने बहुतों को चौंका दिया था। यह और बात है कि जिन्ना ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था।