नई दिल्ली: दिसंबर 2022 में हरकेश नगर से एक 16 साल की लड़की अपने घर से गायब हो गई। उसकी परेशान मां कहती हैं, नामालूम कहां चली गई! शायद कोई बहला-फुसलाकर ले गया। पुलिस में शिकायत की, मगर कुछ पता नहीं चला। पुलिसवाले बस कहते हैं, नहीं मिली। पति बीमार हैं, ऑपरेशन होना है, बाकी बच्चे छोटे हैं। घर में पैसे नहीं, खाना-पीने की भी परेशानी है, मुझे काम मिलता है तो कर लेती हूं। इन सबसे बड़ी परेशानी, मेरी बच्ची नहीं मिल रही। हम मजबूरी में जी रहे हैं। ना जाने कहां होगी, दुनिया बहुत खराब है… कहीं फंसी होगी, दुख में होगी, घर आना चाहती होगी, रोती होगी…… क्या-क्या सोचती हूं।दिल्ली ही नहीं देशभर के कई राज्यों की कई लड़कियों और उनके परिवारों की यही कहानी है। वो गुमशुदा हैं, उनकी फाइलें पुलिस थानों में पड़ी हैं, वो ‘मिसिंग केस’ का एक आंकड़ा हैं। देश के आंकड़े (2019-21) कहते हैं कि तीन साल में 13.13 लाख लड़कियां-महिलाएं गायब हुई हैं, यानी हर दिन 1199। दिल्ली में तीन साल का आंकड़ा 84000 से ज्यादा है, यानी एक दिन में औसतन 76 लड़कियां-महिलाएं लापता हुई हैं। देशभर की गुमशुदा लड़कियों-महिलाओं के तार दिल्ली से भी जुड़े हैं। राजधानी में सभी राज्यों से तस्करी कर लड़कियां लाई जाती हैं, दिल्ली ट्रैफिकिंग का हब बन रहा है।Opinion: रेप से घिनौना कुछ भी नहीं, लेकिन इंतकाम या उगाही के लिए फर्जी केस शर्मनाक, असली पीड़ितों का मजाकनैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े कहते हैं कि देशभर में एक साल में तस्करी के मामलों में 21.7% बढ़ोतरी हुई है। दिल्ली में तस्करी के मामलों में एक साल में 73.5% इजाफा हुआ है। तीन साल के आंकड़े कहते हैं कि दिल्ली में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के 238 केस रिपोर्ट हुए हैं। ट्रैफिकिंग के खिलाफ काम कर रही संस्थाओं का कहना है कि कोविड के बाद दिल्ली में तस्करी के मामले काफी बढ़े हैं, खासतौर पर 12 से 18 साल की लड़कियों की तस्करी के मामलों में 60 से 70% इजाफा देखा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग कानून नहीं है, खासतौर पर ट्रैफिकिंग के बड़े सोर्स प्लेसमेंट एजेंसियों के रेगुलेशन के लिए कोई कानून नहीं है।’मिसिंग केस ट्रेस करने के लिए राज्यों में तालमेल नहीं’दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालीवाल का कहना है, दिल्ली ट्रैफिकिंग का हब है। मिसिंग मामलों की बड़ी वजह ट्रैफिकिंग है, चाहे वो सेक्स ट्रैफिकिंग हो या बंधुआ मजदूरी के लिए। लड़कियों को वेश्यावृत्ति के लिए दूसरे राज्यों ही नहीं विदेशों तक बेचा जा रहा है। मिसिंग केस को ट्रेस करने के मामले में पुलिस थका सा काम करती है, जबकि शिकायत मिलते ही जांच शुरू की जाए, तो कई लड़कियां बचाई जा सकती हैं। महिलाओं के मामले में तो पुलिस कई दिन तक एफआईआर ही नहीं करती, यह मानकर कि वो खुद गईं होंगी। दूसरा, सभी राज्यों की पुलिस के बीच तालमेल ही नहीं है। कोई लड़की दूसरे राज्य में मिलती है, तो उसे उसके परिवार से जोड़ने के लिए मजबूत सिस्टम नहीं है। राज्यों के बीच तालमेल और इस खोया-पाया सिस्टम को मजबूत बनाने की जरूरत है। हैरानी की बात है कि देश की 13 लाख महिलाएं-लड़कियां गायब हैं, घरेलू काम, वेश्यावृति के अलावा मेडिकल ऑर्गन क्राइम भी इसके पीछे हो सकता है, तुरंत एसआईटी बनाकर जांच जरूरी है।प्लेसमेंट एजेंसियां ट्रैफिकिंग का बड़ा सोर्सदिल्ली में मानव तस्करी के मामलों में ज्यादातर शिकार लड़कियों की उम्र 12 से 22 की मिलती हैं। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रंस फाउंडेशन के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर राकेश सेंगर बताते हैं, ट्रैफिकिंग का बड़ा हब हैं प्लेसमेंट एजेंसियां। ये ज्यादातर गैरकानूनी हैं। ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए मजबूत कानून नहीं है और प्लेसमेंट एजेंसी के रेगुलेशन के लिए भी कोई नियम कानून नहीं है। 2011 में बचपन बचाओ आंदोलन के एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी के रेगुलेशन के कानून बनाने को कहा था, जिस पर एलजी ने आदेश जारी किया, मगर अब तक यह बतौर ड्राफ्ट पड़ा है। हम अभी भी यह मांग कर रहे है कि संसद में एंटी-ट्रैफिकिंग बिल पास किया जाए। मिशन मुक्ति फाउंडेशन के डायरेक्टर वीरेंदर कुमार कहते हैं, दिल्ली में एक ही लाइसेंस को स्कैन करवा कर कई प्लेसमेंट एजेंसियों ने फेक लाइसेंस रखे हैं, वे लड़कियों के आधार कार्ड में उम्र बदल देते हैं। इन एजेंसियों को सरकार का कंट्रोल नहीं है।Exclusive: मेरा फिगर बेहद हॉट है, मेरी बॉडी आपको… मजबूर कर देगी, पटना में चल रही कॉल गर्ल इंडस्ट्री की सनसनीखेज कहानीएक से ज्यादा बार मिसिंगदिल्ली में चाइल्ड वेलफेयर कमिटी के मेंबर रूप सुदेश कहते हैं, बच्चों के मिसिंग मामलों में ज्यादातर 12 से 18 साल से छोटी लड़कियां होती हैं, जो डोमेस्टिक हेल्प से लेकर वेश्यावृति तक के लिए गायब कर दी जाती हैं। दिल्ली के मिसिंग मामलों में हमने कई मामले ऐसे देखे हैं, जिसमें पुलिस के ट्रेस करने में देरी की वजह से लड़कियां प्रेग्नेंट हो गईं या बच्चे हो गए या वेश्यावृत्ति में फंस गईं, तो घर और समाज के डर से वही जिंदगी अपना लेती हैं। कई मामलों में लड़कियों को रेस्क्यू करके घर लाया गया, मगर कुछ महीने या साल बाद वो फिर से गायब हो जाती हैं। नाबालिग लड़की का मोबाइल नंबर, आधार कार्ड, यहां तक कि नाम भी बदल दिया जाता है। इसके पीछे शिक्षा की कमी और एक बड़ी वजह घर का माहौल भी है। वह कहते हैं, हमारे पास ट्रैफिकिंग के मामले दिल्ली से बहुत कम, दूसरे राज्यों से ज्यादा हैं। दिल्ली से तस्करी के कम मामले रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन में जीआरपी, आरपीएफ की निगरानी की बदौलत भी हैं। जैसे, पिछले हफ्ते ही एक 10 साल की बच्ची को दो आदमी फरीदाबाद से उठा ले गए, उसे बेहोश कर दिया। मगर दिल्ली के रेलवे स्टेशन में पुलिस की मुस्तैदी की वजह से ये दोनों उसे आगे नहीं ले जा पाए।