नई दिल्ली: देश का कैसा विकास हो रहा है, इसके ताजा सरकारी आंकड़े सामने आए हैं। हम दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था की गति अभी संतोषजनक कही जा सकती है, लेकिन इसमें बेहतर करने की गुंजाइश है। सवाल ये उठ रहे हैं कि आने वाले समय में इकॉनमी के लिए किन बातों से खतरे हो सकते हैं?ग्रोथ का पैमानाविकास की गति जानने के लिए हम GDP का सहारा लेते हैं। GDP यानी Gross Domestic Product (सकल घरेलू उत्पाद)। इसका मतलब यह है कि किसी भी देश में बनी सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य कितना है। हम कोई दो अवधि चुन लेते हैं, फिर दोनों अवधि की वैल्यू की तुलना कर विकास मापते हैं। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि अप्रैल से जून के बीच मूल्य 40.37 लाख करोड़ रहा। इसमें एक साल पहले के मुकाबले 7.8% की बढ़ोतरी हुई। पिछले एक साल में यह सबसे तेज विकास दर है। यह मोटे तौर पर जाने-माने अर्थशास्त्रियों की उम्मीद से ज्यादा पीछे नहीं है। रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी ने 8% विकास दर का अनुमान लगाया था। यह उसके भी करीब ही है।G20 समिट से पहले भारत के लिए एक और गुड न्यूज, इन आंकड़ों को देखकर लटक जाएगा चीन का मुंहबाहर से थपेड़ेआर्थिक प्रगति के मामले में विदेशी धरती से जो बुरी हवाएं चली हैं, वह हम पर असर नहीं डाल सकी। IMF यानी International Monetary Fund ने इस साल दुनिया की विकास दर 3% ही होने का अनुमान लगाया है। इसके मुकाबले हमारे यहां आर्थिक गतिविधियों में मजबूती एक अच्छी खबर है। लेकिन इस मजबूती की परीक्षा आने वाली तिमाहियों में होगी।कोविड के बाद लगे लॉकडाउन से इकॉनमी में जिस तरह की कमजोरी आई, दुनिया की अर्थव्यवस्था अब भी उन झटकों से उबरने की कोशिश कर रही है। हाल के समय में हमारा निर्यात कम हुआ है, आयात बढ़ा है। इस स्थिति में सुधार की संभावना कम लग रही है क्योंकि एक्सपोर्ट के लिए चीन हमारा महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन है, लेकिन वहां की अर्थव्यवस्था भी ढलान की ओर जाती दिख रही है।China Economy: कमजोर हो रहा ड्रैगन! चौतरफा मुसीबतों के बीच चीन को मिली एक और बैड न्यूजअंदर का हालअब जरा हमारी इकॉनमी के अलग-अलग हिस्सों पर नजर डालें। विकास के लिए सबसे ज्यादा क्रेडिट दिया जा रहा है सर्विसेज सेक्टर को। फाइनेंशियल, रियल एस्टेट और प्रोफेशनल सर्विसेज में हुई तरक्की ने जीडीपी को मजबूती दी। इसकी वजह ये है कि कर्ज की मांग बढ़ी है। कई मल्टीनैशनल कंपनियों ने लागत घटाने के लिए अपने दफ्तर भारत में शिफ्ट किए हैं।चिंता जताई जा रही है कि यह डिमांड हवा के झोंके की तरह साबित ना हो। निजी खपत जीडीपी का सबसे बड़ा हिस्सा है, लेकिन इसकी रफ्तार जीडीपी की रफ्तार जैसी नहीं है। टैक्स से होने वाली कुल कमाई की जो रफ्तार है, वह भी जीडीपी की रफ्तार से पीछे है। मैन्युफैक्चरिंग में बढ़ोतरी का मामूली होना इसकी वजह समझी जा रही है।GST Collection: भर गई सरकार की झोली, जीडीपी के बाद जीएसटी कलेक्शन में भी उछालमहंगाई पर नजरविकास का ताजा आंकड़ा अप्रैल से जून के बीच का है। इस वक्त सितंबर में हालात काफी बदल गए हैं। जून तक की बारिश अच्छी रही, लेकिन इसके बाद बारिश में कमी दर्ज होती दिखी है। कुछ खाद्य पदार्थों की महंगाई पहले ही चरम पर है। महंगाई में तेजी का आंकड़ा अभी रिजर्व बैंक की सहन सीमा के बाहर है। इस पर काबू करने के लिए उसे जो कदम उठाने पड़ेंगे, उससे ग्रोथ रेट से समझौता करना पड़ सकता है। हो सकता है कि आने वाले समय में हमारे ग्रोथ रेट में कुछ कमी आए। सरकार और रिजर्व बैंक ने पूरे वित्त वर्ष के लिए 6.5% ग्रोथ रेट का ही अनुमान लगाया है।चुनाव का माहौलखाद्य पदार्थों के दाम आगे गिर सकते हैं, लेकिन इससे किसानों की आय कम होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में डिमांड कम होगी। यह बात किसी और बरस होती तो कोई गौर नहीं करता। लेकिन चुनाव करीब हैं। उससे ठीक पहले यह स्थिति राजनीतिक असंतोष पैदा कर सकती है। सरकार के लिए बड़ी चुनौती यह होगी कि वह महंगाई पर काबू तो पाए, लेकिन खेती से जुड़ी आय में एक बैलेंस बनाने की भी कोशिश करे। अभी हाल में LPG के दाम में ₹200 की कटौती का ऐलान हुआ। मुमकिन है कि आगे चलकर पेट्रोल और डीजल के दाम में कटौती हो। इससे वित्तीय व्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा। सरकार का वित्तीय घाटा एक साल पहले के मुकाबले बढ़ा है। इन पेचों को सुलझाया जाए तभी हम सबसे तेज बने रह सकते हैं।